– राजस्थान सरकार के केबिनेट और भाजपा संगठन में फेरबदल को लेकर विधायकों व नेताओं में चिंता बढ़ी। 


– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। राजस्थान की भाजपा सरकार और संगठन में जल्द ही नया नजारा देखने को मिल सकता है। सत्ता-संगठन में जहां पुराने चेहरे हट सकते हैं तो युवा, स्फूर्ति वाले नए और अनुभवी चेहरे भी दिख सकते हैं। वहीं ढाई साल में निष्क्रिय रहने वाले मंत्री-पदाधिकारी की विदाई हो सकती है तो कुछ के विभाग भी बदले जा सकते हैं तो कुछ भरोसेमंद मंत्रियों को मजबूत विभाग देकर उपकृत किए जा सकते हैं। संभवतया: दिवाली के बाद राज्य मंत्रिमण्डल और भाजपा संगठन में यह बदलाव देखा जा सकता है। इसमें जहां कुछ मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है या उनके विभागों को बदला जा सकता है, वहीं कुछ नए मंत्री भी सामने आएंगे। इसी तरह संगठन में सक्रियता और तेजी लाने के लिए यहां भी बड़ा बदलाव हो सकता है। दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन से जुड़े नेताओं को तवज्जों मिल सकती है। संघनिष्ट नेताओं को भी मंत्रीमण्डल और संगठन में स्थान मिल सकता है। हालांकि किसे क्या मिलेगा, यह भविष्य के गर्त में हैं, लेकिन इतना जरुर है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से हरी झण्डी मिलने के बाद फेरबदल व बदलाव की अनुमति सरकार और संगठन को मिल चुकी है। राजस्थान के प्रभारी वी.सतीश भी प्रदेश अध्यक्ष भाजपा अशोक परनामी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ बैठकें कर चुके हैं, साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों से भी मंत्रिमण्डल व संगठन में फेरबदल के संबंध में मंत्रणा हो चुकी है। यह भी सामने आ रहा है कि मंत्रिमण्डल व संगठन में किसे क्या पद और विभाग देने हैं, उस पर भी करीब-करीब सभी में सहमति बन चुकी है। इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण निगमों में भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और विधायकों की भी नियुक्ति भी हो सकती है। लम्बे समय से अधिकांश निगम-बोर्ड बिना अध्यक्ष के ही चल रहे हैं। पार्टी नेताओं और विधायकों का दबाव उन्हें भरने के लिए आ रहा है। ऐसे में कुछ बोर्डों में नियुक्ति हो सकती है। राजस्थान आवासन मण्डल, राजस्थान पर्यटन विकास निगम, राजस्थान बीज निगम समेत कई जिलों की यूआईटी खाली पड़ी है। इन पर अध्यक्ष पद की घोषणा हो सकती है। इसके अलावा इनमें सदस्यों व दूसरे विभागों में भी सदस्यों की नियुक्ति देकर कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया जा सकता है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस समेत दूसरे दलों से कई नेता भाजपा में शामिल हुए थे। तब उन्हें आश्वासन दिया था कि राज आने पर उन्हें सत्ता और संगठन में उन्हें शामिल किया जाएगा। ढाई साल में सिर्फ जनार्दन सिंह गहलोत ही ऐसे नेता रहे, जिन्हें बोर्ड चैयरमैन बनाकर उपकृत किया है। ऐसे ओर भी नेता हैं, जो यह आस संजोए हुए हैं। अगर उनकी आस पूरी नहीं होती है तो वे बगावती मूड में भी आ सकते हैं। इसी तरह पार्टी में भी ऐसे बहुत से वरिष्ठ विधायक और नेता हैं, जो बोर्डों और मंत्रिमण्डल में लालबत्ती का सपना संजोए हुए हैं। वहीं कुछ ऐसे भी वरिष्ठ नेता है, जो चुनाव तो हार गए, लेकिन अपने क्षेत्र और समाज में बड़ा वजूद रखते हैं। वे भी इस उम्मीद में है कि पार्टी और राज उन्हें तवज्जों देगा। कुछ नेता ऐसे भी है, जो इस फेरबदल में कुछ नहीं मिलने पर पार्टी और राज के खिलाफ सुर मिला सकते हैं। अभी तक वे इसी उम्मीद में थे कि कहीं ना कहीं उन्हें एडजस्ट कर दिया जाएगा। अगर इस फेरबदल में उनकी मंशा पूरी नहीं हो पाती है तो ऐसे नेता कुछ भी गुल खिला सकते हैं। अब देखना है कि दिवाली के बाद या उससे पहले किन नेताओं और विधायकों के सिर पर लालबत्ती का ताज होता है। साथ ही सत्ता और संगठन में किन मंत्रियों व नेताओं की छुट्टी होती है। इस फेरबदल को सवा दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के तौर पर भी देखा जा रहा है। उस हिसाब से अनुभवी और वजूद वाले नेताओं को सत्ता-संगठन में अच्छी हिस्सेदारी मिलने की संभावनाएं जताई जा रही है।

– मंत्रियों और नेताओं में टेंशन

पार्टी आलाकमान अमित शाह से सत्ता-संगठन में फेरबदल और बोर्डों में नियुक्ति की हरी झण्डी मिली है, तब से जहां वरिष्ठ नेताओं व विधायकों में खुशी की लहर है कि उनके सिर पर राज का ताज आ सकता है, वहीं मंत्रियों और संगठन के उन पदाधिकारियों में टेंशन भी शुरु हो गई है, जो यह समझते हैं कि ठीक तरह से कार्य नहीं कर पाने के कारण उनकी छुट्टी हो सकती है। सबसे ज्यादा उन मंत्रियों के टेंशन शुरु हो गई है, जिनका कामकाज सुस्त है और कार्यकर्ताओं और विधायकों की सबसे ज्यादा शिकायतें भी रहती हैं। वहीं केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं को ठीक से प्रदेश में लागू नहीं कर पाएं और इस वजह से कई मौकों पर राज्य सरकार की फजीहत भी हो चुकी है और जनता व कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी झेलनी भी पड़ चुकी है। वैसे तो केबिनेट में ऐसे चार मंत्री है, जिनको या तो बदला जा सकता है या उनका पोर्टपोलियो कमतर हो सकता है। इसी तरह कुछ मंत्री ऐसे भी है, जिन्होंने कमतर विभाग होने के बावजूद अच्छा कार्य किया है, वे प्रमोट किए जा सकते हैं। अभी मंत्रिमण्डल में संगठन से जुड़े विधायकों की हिस्सेदारी कम है। ऐसे में संघ और संगठन निष्ठ दो-तीन विधायकों को मंत्रिमण्डल में शामिल किया जा सकता है।
जिन्हें लगता है कि फेरबदल में अपना पत्ता कट सकता है, वे सभी लॉबिंग में लग गए हैं। पार्टी आलाकमान से लेकर संघ पदाधिकारियों और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तक अपनी लॉबिंग करने में लगे हुए हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे भी है, जिनका कामकाज तो अच्छा है, लेकिन विभाग कमतर है, ऐसे मंत्री भी मजबूत और जनाधार वाले विभागों के मंत्री बनने की कवायद में लगे हुए हैं। इसके लिए पूरी लॉबिंग में लगे हैं। इसके लिए समाज और वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं से भी लॉबिंग करवाई जा रही है। इन सबके बीच में उन विधायकों के चेहरे खिले हुए हैं, जो ढाई साल से मंत्री पद के इंतजार में है और उन्हें फेरबदल की स्थिति में लालबत्ती का सुख मिल सकता है। जो हार गए, उनमें एकाध को भी किसी बोर्ड में चेयरमैन बनाया जा सकता है। इसके अलावा संगठन को दुरुरस्त करने के लिए भी युवा और अनुभवी नेताओं व विधायकों को संगठन की जिम्मेदारी दी जा सकती है। बताया जाता है कि सत्ता और संगठन में बदलाव की पूरी तैयारी हो चुकी है। दिवाली से पहले टेंशन नहीं हो, इसलिए यह बदलाव संभवतया त्यौहार के बाद कभी भी हो सकता है। गौरतलब है कि मंत्रिमण्डल का विस्तार दो साल पहले अक्टूब, 2014 में हुआ। तब केबिनेट और राज्य मंत्री समेत पच्चीस मंत्री बनाए गए। इनमें पांच संसदीय सचिव भी शामिल है। अब नए मंत्रियों की गुंजाइश कम है। कानूनन पन्द्रह फीसदी ही मंत्री बन सकते हैं, विधानसभा में सदस्यों के अनुपात के हिसाब से। पांच को ओर मंत्री पद की शपथ मिल सकती है, जबकि दावेदारों की संख्या इससे पांच से सात गुणा है। ऐसे में बोर्ड और संसदीय सचिव बनाकर अधिकाधिक को संतुष्ठ किया जा सकता है। इसके लिए पार्टी और सत्ता कवायद में ले हुए हैं। अब देखना है कि यह दिवाली किसके लिए शुभ रहती है और किसके लिए नहीं।

– राय-मशविरों का दौर अंतिम चरण में

मंत्रिमण्डल और संगठन में फेरबदल को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी और प्रभारी वी.सतीश का पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, कार्यकर्ताओं और आरएसएस के पदाधिकारियों मंत्रणाों का दौर चल रहा है। किस मंत्री को बदला जाए, किसका विभाग चेंज करके दूसरा दिया जाए और किन वरिष्ठों को मंत्री पद दिया जाए, उस पर गहन मंथन हो रहा है। यह मंथन सवा दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मैसेज देने के हिसाब से भी हो रहा है, ताकि सूबे के सभी क्षेत्रों व मजबूत नेताओं को मंत्री बनाकर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में अच्छा मैसेज दिया जा सके। पार्टी के वरिष्ठ नेता और केबिनेट मंत्री गुलाब चंद कटारिया, अरुण चतुर्वेदी, राजेन्द्र राठौड़ आदि वरिष्ठ नेताओं से भी राय-मशविरा किया जा रहा है कि किसे क्या पद दिया जाए और किसे नहीं। जातिगत और सूबे की राजनीति को भी ध्यान में रखकर समीकरण समझे जा रहे हैं। मंत्री बनने और बोर्डों में नियुक्ति की आस संजोए नेताओं और विधायकों से भी बातचीत की जा रही है। उन्हें यह भी समझाया जा रहा है कि पद तो कम है, लेकिन दावेदार अधिक है। ऐसे में हर किसी को मंत्री पद या बोर्ड में नियुक्ति नहीं मिल सकती है। ऐसे में नाराजगी जाहिर करने या कोई विरोध करने के बजाय पार्टी हित में कार्य किया जाए। कुछ वरिष्ठ नेताओं को संगठन में अच्छा पद देकर संतुष्ठ करने का प्रयास किया जा रहा है, हालांकि अभी तक इन वरिष्ठ नेताओं ने अपने पत्ते खोले नहीं है। संगठन में जाने की हामी नहीं भरी। इससे प्रदेश आलाकमान व सरकार को लगता है कि अगर एडजस्ट सही नहीं हुआ तो विरोध सामने आ सकता है। ऐसे में सभी वरिष्ठ नेताओं से राय-मशविरा की जा रहा है ताकि ज्यादा बवाल सामने नहीं आ सके। उधर, संगठन में भी भारी फेरबदल की संभावना है। कई निष्क्रिय पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। सूबे के जातिगत और क्षेत्र के हिसाब से मजबूत और अनुभवी नेताओं को संगठन में जगह दी जाएगी, ताकि संगठन को मजबूती दी जा सके और कार्यकर्ताओं में अच्छा मैसेज दिया जा सके। संगठन में प्रवक्ताओं को बदला जा सकता है। कैलाश नाथ भट्ट के प्रवक्ता पद से इस्तीफा देने के बाद से यह विभाग विपक्ष पर उस आक्रामक तरीके से प्रहार नहीं कर पा रहा है, जैसे पहले होता था। ना ही पार्टी के कार्यक्रमों और सरकार की योजनाओं को कार्यकर्ताओं और जनता के साथ मीडिया में पहुंचाने का कार्य ठीक से हो पा रहा है। बताया जाता है कि करीब-करीब मंत्रिमण्डल और सत्ता में फेरबदल और नए लोगों को जोडऩे को लेकर नाम तय हो चुके हैं। अब बस इनकी घोषणा की जानी है। यह घोषणा कब की जाती है और उसके बाद क्या प्रतिक्रिया रहती है, पार्टी उससे थोड़ी चिन्तित दिख रही है। क्योंकि पद तो कम है, लेकिन दावेदार कई गुणा होने से असंतुष्ठ नेता नाराजगी जाहिर कर सकते हैं और जो दूसरे दलों से आए नेता वे फिर से बगावत पर उतर सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर आए जाट नेता डॉ. हरिसिंह ने भाजपा का दामन छोड़ दिया है। वे फिर से कांग्रेस में जा पहुंचे है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी व दूसरे वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकात हो चुकी है। इसी तरह के कुछ दूसरे नेता भी है, जो विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में यह सोचकर आए थे कि सत्ता में आए तो पार्टी उन्हें राज और संगठन में जिम्मेदारी देगी, लेकिन ढाई साल से अधिक होने पर भी किसी को कोई फायदा नहीं हुआ है। डॉ. हरिसिंह का कहना है कि उन्हें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राज्यसभा का टिकट देने का वादा किया था, लेकिन बाद में वह मुकर गई। सत्ता-संगठन में फेरबदल में मौका नहीं मिलने पर चुनाव से पहले आए ऐसे कई नेता फिर से पुरानी पार्टी में जा सकते हैं। इसका खामियाजा भाजपा को हो सकता है और इससे पार्टी के पक्ष में नकारात्मक माहौल खड़ा हो सकता है।

– डिप्टी सीएम पद मिल सकता है कटारिया को

दिवाली के बाद संभावित फेरबदल में डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है, साथ ही कुछ मंत्री हट सकते हैं तो कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं। जातिगत समीकरणों को भी ध्यान में रखकर मंत्री पद दिए जाएंगे। भाजपा सूत्रों के मुताबिक सवा दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मैसेज देने के लिए डिप्टी सीएम पद सृजित किया जा सकता है। इस पर पार्टी के वरिष्ठ नेता और केबिनेट मंत्री गुलाब चंद कटारिया को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है। संगठन और संघनिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं को संतुष्ठ करने के हिसाब यह कवायद की जा रही है, साथ ही पार्टी के कार्यक्रम और योजनाओं का लाभ जनता को मिले, इसलिए भी डिप्टी सीएम पद लाया जा रहा है। इसके अलावा जो निष्क्रिय चल रहे और जिन विभागों का कार्य ठीक से नहीं चल रहा है और भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं, उन मंत्रियों को बदला जा सकता है या हटाया भी जा सकता है। जलदाय विभाग में एक के बाद एक कई घोटालों के सामने आने और एसीबी की गिरफ्त में कई अफसरों के आने से जलदाय मंत्री किरण माहेश्वरी और उनका महकमा पार्टी, सरकार और संघ के निशाने पर है। एसीबी की कार्रवाई में गिरफ्तार मुख्य अभियंताओं, ठेकेदारों व दलालों के बीच हुई वार्ताओं में लेन-देन के छींटे मंत्री और उनके कार्यालय के अफसरों पर भी आए है। कहीं ना कहीं उनके भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप मीडिया व राजनीतिक गलियारों में लगते रहे हैं। ऐसी संभावना है कि किरण माहेश्वरी से उनका महकमा छीन सकता है और उन्हें दूसरा विभाग दिया जा सकता है। साथ ही यह भी संभावना है कि उन्हें हटाया भी जा सकता है। इसी तरह महिला व बाल विकास मंत्री अनिता भदेल के महकमे में भी कामकाज की रफ्तार धीमी होने के कारण वह भी फेरबदल की शिकार हो सकती है। इसके अलावा सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी, उच्च शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ, प्राथमिक शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी, कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी, स्वायत्त शासन मंत्री राजपाल सिंह शेखावत के विभागों में भी फेरबदल हो सकता है। पेंशन योजनाएं लागू करने में शिथिलता, ओबीसी आयोग की वैधानिकता पर हाईकोर्ट की फटकार व आयोग भंग के आदेश, मीना-मीणा विवाद निस्तारण में देरी, जाट आरक्षण आंदोलन जैसे मामलों में शिथिलता और इससे पार्टी व सरकार की कई मौकों पर किरकिरी हो चुकी है। इसी तरह दोनों शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ और वासुदेव देवनानी के महकमों में भी तबादलों में भ्रष्टाचार, तबादला नीति नहीं बन पाने और भाई-भतीजावाद के आरोप लग चुके हैं। कई विधायक व कार्यकर्ता भी इस तरह के आरोप लगा चुके है। विपक्ष भी इन मुद्दों पर घेर चुका है। कृषि व पशुपालन प्रधान प्रदेश होने के बाद भी इस महकमे की तरफ से ऐसी कोई योजना व कार्यक्रम सामने नहीं आया है, जिससे किसानों व पशुपालकों को लाभ मिल सका हो और पार्टी व सरकार को फायदा पहुंचा हो। बल्कि हिंगोनिया गौशाला में हजारों गायों की मौत मामले में पार्टी व सरकार दोनों को ही कठघरे में खड़े हो चुके हैं। राज्यमंत्रियों में भी बाबूलाल वर्मा, ओटाराम देवासी, जीतमल खांट, अर्जुनलाल गर्ग के भी महकमे बदले जा सकते हैं या इनके स्थान पर दूसरों को मौका मिल सकता है।

– यह भी बड़ी चर्चा है…..

राजनीतिक गलियारों में यह भी बड़ी चर्चा है कि खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे फिलहाल मंत्रिमण्डल और संगठन में फेरबदल और बोर्डों में नियुक्ति के पक्ष में नहीं बताई जाती है। छह महीने बाद इस तरह के फैसले लेने के पक्ष में थी। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और संघ पदाधिकारियों के दबाव और लगातार आ रही शिकायतों के आधार पर आलाकमान को सत्ता-संगठन में फेरबदल को हरी झण्ड़ी देनी पड़ी, साथ ही वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को बोर्डों में नियुक्ति देने को भी कहा गया है। आलाकमान से तो हरी झण्डी मिल गई, लेकिन सत्ता और संगठन को डर है कि अभी कोई भी फेरबदल किया तो विरोध सामने आ सकता है। 163 विधायक है। दो दर्जन से अधिक ऐसे वरिष्ठ नेता और पदाधिकारी है, जिसमें कुछ तो पिछला विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन अपने क्षेत्र और समाज में अच्छी पकड़ रखते हैं, उन्हें मंत्री पद देकर संतुष्ठ करना जरुरी है। चुनाव से पहले कई पदाधिकारियों ने पार्टी हित में काफी काम किया, वे भी इस कतार में है और कई बार गुहार भी लगा चुके हैं। दूसरे दलों से भी आए एक दर्जन ऐसे नेता है, जो लाभ का पद चाहते हैं। ऐसे में पद तो कम हैं, लेकिन दावेदार अधिक होने के कारण हर किसी को उपकृत या संतुष्ठ नहीं किया जा सकता है। इस वजह से मुख्यमंत्री की तरफ से इस फेरबदल को टाला जा रहा था। बाद में फेरबदल होने से ज्यादा विरोध नहीं होता और विधायक व पदाधिकारी टिकट की दौड़ में लग जाते। अभी फेरबदल हुआ तो विरोध सामने आ सकता है, जो पार्टी और सरकार के हित में नहीं हो सकता है।

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