-संसदीय सचिव नियुक्तियां मामले में पेश हुआ जवाब
जयपुर। 1० विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्ति करने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में सोमवार को राज्य सरकार की ओर से जवाब पेश कर दिया गया। जवाब में सरकार ने संसदीय सचिवों को केवल मंत्रियों का सहायक बताया है। न्यायाधीश के एस झवेरी और न्यायाधीश वी के व्यास की खंडपीठ ने जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए याची दिपेश ओसवाल को 3० अप्रैल तक अपना पक्ष रखने को कहा है।
एजी एन एम लोढ़ा ने हाईकोर्ट को बताया कि याचिका दायर करने से पहले दिपेश ने डिमांड ऑफ जस्टिस का कोई नोटिस नहीं दिया है। संसदीय सचिवों को भी पक्षकार नहीं बनाया गया है। विधायकों की संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक मंत्रियों की संख्या नहीं रखने के संबंध में 2००4 में प्रावधान हुआ था। जबकि सरकार 1968 में एक आदेश जारी कर संसदीय सचिवों के कार्य व अधिकार तय कर चुकी है। संसदीय सचिव मंत्रियों के सहायक के रूप में काम करते हैं। ये केबिनेट की बैठक में भी भाग नहीं लेते हैं और ना ही कोई नीतिगत निर्णय लेते हैं। संसदीय सचिव विधानसभा में किसी नीतिगत निर्णय की घोषणा या मंत्री की तरफ से भी कोई घोषणा नहीं कर सकते हैं। असम और सिक्किम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए कानून बनाया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया है। राज्य में इनकी नियुक्ति के संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है।
ज्ञातव्य है कि सरकार ने 18 जनवरी, 2०16 की अधिसूचना से एमएलए सुरेश रावत, जितेन्द्ग गोठवाल, विश्वनाथ मेघवाल, लादूराम विश्नोई और भैराराम सियोल तथा 1० दिसंबर, 2०16 को नरेन्द्ग नागर, भीमा भाई डामोर, शत्रुघन गौतम, ओमप्रकाश हुडला और कैलाश वर्मा को संसदीय सचिव नियुक्त कर उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है।