– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। राजस्थान शक्तिपीठों, राधा-कृष्ण, राम-हनुमान के मंदिरों के लिए तो ख्यात है, वहीं यहां उन देवताओं के भी मंदिर है, जिनकी आराधना तो सब करते हैं, लेकिन मंदिर देश-दुनिया में बहुत ही कम है। जिस तरह से ब्रह्माजी भगवान का एकमात्र मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले स्थित पुष्कर में बताया जाता है, वैसे ही भगवान सूर्यदेव का मंदिर जयपुर में काफी जाना जाता है। विग्रह रहित भगवान सूर्य देव का यह प्राचीन मंदिर प्रसिद्ध तीर्थस्थल गलताजी की पहाडिय़ों में है। मंदिर स्थापना के समय भगवान सूर्य की प्रतिमा मंदिर में स्थापित थी, लेकिन आजादी के बाद महंत की हत्या करके चोर इस प्रतिमा को चुरा ले गए थे। तभी से यह मंदिर विग्रह रहित हो गया, हालांकि यहां सूर्यदेव का चित्र और चिन्ह की पूजा अर्चना होती है।
ऋषि गालव और पयोहारी महाराज की तपोस्थली गलताजी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने गलता की पहाडिय़ों में भगवान सूर्यदेव के मंदिर की स्थापना की थी। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी की चोटी पर है। ऊंचाई पर होने के कारण जयपुर के परकोटे से भी इसे देखा जा सकता है। हालांकि शहर में काफी ऊंची इमारतें बन जाने के कारण दूर से इसके दर्शन होना बंद हो गया है, लेकिन फिर भी सिटी पैलेस, ईसरलाट, हवामहल की छत आदि ऊंचाई वाले स्थानों से यह मंदिर आसानी से देखा जा सकता है। सूर्य मंदिर जाने के लिए सूरजपोल गेट से आगे बढ़ते ही काफी ऊंचा खुर्रा आता है। जयपुर दिल्ली हाइवे को पार करने के बाद गलताजी की तरफ जाने वाले मार्ग में काले और लाल मुंह के काफी बंदरों से सामना करना पड़ता है। यह खुर्रानुमा मार्ग ही मंदिर तक जाता है। भगवान सूर्यदेव का मंदिर पूर्वाभिमुखी है। मंदिर में भगवान सूर्य की प्रतिमा विराजमान नहीं है। इनकी जगह एक बड़ा चित्र देवालय में रखा हुआ है। राजे-रजवाड़ों के समय का एक चिन्ह (जिसमें भगवान सूर्य की प्रतिमा बनी हुई है) स्थापित है। इस चिन्ह और चित्र की सेवा-पूजा और अर्चना की जाती है। सवाई जयसिंह द्वितीय के समय यहां भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित की गई थी। आठ इंच ऊंची अष्ट धातु की यह प्रतिमा बड़ी सुंदर और आकर्षण से भरपूर थी। 1979 में चोरों ने यहां के पुजारी मूलचंद की हत्या करके इस बेशकीमती प्रतिमा को चुरा लिया। तभी से यह मंदिर विग्रह रहित है। वहां बने सूर्यदेव के चिन्ह और चित्र की पूजा की जाती है।
माह शुक्ला सप्तमी को भगवान सूर्य का जन्मदिन मनाया जाता है। राजे-रजवाड़ों के समय से ही पूरे शहर में भगवान सूर्य की पूजा होती थी और हर घर में पुए-पकौड़ी बनाकर भोग लगाया जाता था। सूर्य देव के जन्मदिन पर जयपुर शासकों की तरफ से एक विशेष मंदिर तक आया करती थी, जिसमें भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा को विराजमान किया जाता था। यह पालकी विशेष पहरे में सूरजपोल गेट तक आया करती थी, जहां चार घोड़ों का एक रथ तैयार खड़ा रहता था। फुटे खुर्रे पर इस सवारी को रोका जाता था, वहां हजारों नागरिक सूर्य देव प्रतिमा का पूजन करके भोग लगती थी। यहीं पर जयपुर राजघराने के सभी सदस्य, सामंत और राजसेवक भी सूर्यदेव की पूजा-अर्चना किया करते थे। एक घंटे तक घोड़ों की यह शोभायात्रा खड़ी रहती थी। वहीं जयपुर रियासत की हथियार बंद सेना भगवान सूर्यदेव को गार्ड ऑफ ऑर्नर दिया करती थी। इसके बाद यह शोभायात्रा छोटी चौपड़ पहुंचती थी, जहां गलता तीर्थ के आचार्य और पण्डित भगवान की आरती करते थे। रास्ते में आने वाले नृसिंह मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, बलदाऊ मंदिर, प्रवीण राय मंदिर में भगवान सूर्यदेव की आरती हुआ करती थी। उस वक्त सूरजपोल दरवाजे से लेकर छोटी चौपड़ तक मेला भरता था, जिसमें पूरा जयपुर शहर और आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग उमड़ पड़ते थे। यह मेला सुबह भरता था, जो देर रात तक चलता था। सवारी का समय सूर्योदय का होने के कारण सुबह से ही लोगों का तामझाम शुरु हो जाता था। आजादी के बाद जयपुर की यह परम्परा धीरे-धीरे बंद हो गई। मंदिर से प्रतिमा चोरी होने के बाद तो थोड़ी-बहुत परम्परा थी, वो भी बंद हो गई। अब मंदिर परिसर में ही विशेष पूजा अर्चना करके और धार्मिक आयोजन कर भगवान सूर्य देव का जन्मदिन मना लिया जाता है। गलताजी तीर्थ में स्नान व पूजा अर्चना हो जाती है। प्रतिमा को ढूंढने और हत्यारों का पता लगाने के लिए पुलिस ने काफी प्रयास किए, लेकिन वे पकड़ में नहीं आ पाए। इन सबके बावजूद मंदिर के प्रति भक्तों का आकर्ष बना हुआ है। आज भी रोजाना बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में आते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। सूर्यदेव के जन्मदिवस पर हजारों की तादाद में भक्त पहुंचते हैं। गलताजी की पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसका आकर्षण भी है। विदेशी पर्यटक भी मंदिर दर्शन के लिए आते हैं। गलताजी की पहाडिय़ों में रहने वाले बंदरों का मंदिर परिसर में भी काफी धमा-चौकड़ी रहती है।

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