जयपुर। वर्ष 1998 में फिल्म हम साथ-साथ है की शूटिंग के दौरान जोधपुर के घोड़ा फार्म हाउस और भवाद में चिंकारा हिरण का शिकार करने के मामले में मुख्य आरोपी फिल्म अभिनेता सलमान खान को 25 जुलाई को जोधपुर हाईकोर्ट से राहत मिल गई। हाईकोर्ट ने इस मामले में अधीनस्थ अदालत के फैसले को पलटते हुए सलमान खान को सभी आरोपों से बरी कर दिया। ताजा फैसले के बाद इस मामले को एक बिग कंट्रोवर्सी के तौर पर देखा जा रहा है। मामले में अहम गवाह को गायब होना बताया गया लेकिन, मीडिय़ा में इस गवाह का सामने आना और यह बयान देना कि उसे तो गवाही के लिए बुलाया ही नहीं गया, कई सवाल खड़े करता है। इसी तरह केस दर्ज करते समय जो सबूत पेश किए थे वे भी 18 साल में बदल गए। अभी इस अहम सवाल का जबाव भी अभी बाकी है कि हिरण को किसने मारा था? वैसे देखा जाए तो वन्यजीव अपराध संबंधी मामलों में अक्सर ऐसा होता है। अलबत्ता मामला दर्ज नहीं होता है और यदि हो भी जाए तो सजा महज 10-11 फीसदी मामलों में ही हो पाती है। सलमान खान प्रकरण तो इसका उदाहरण मात्र है। सितम्बर 1998 में जोधपुर के मथानिया थाने में दर्ज इस प्रकरण में निचली अदालत ने 2006 में सलमान खान को चिंकारा के शिकार का दोषी मानकर पांच साल की सजा सुनाई थी। कुछ समय खान को जेल में भी रहना पड़ा और बाद में उन्होंने हाईकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की। जहां से उन्हें जमानत मिल गई। इस मामले का फैसला हाल ही में 25 जुलाई को आया है। यह फैसला चौकाने वाला है। दरअसल अदालत ने अपर्याप्त सबूतों के आधार पर सलमान खान को बरी कर दिया गया। फैसले के बाद सॉशियल मीडिया पर भी सलमान के खिलाफ जमकर लोगों ने गुस्सा जाहिर किया। इन सबका एक ही सवाल था कि जब हिरण को सलमान खान नहीं मारा तो फिर किसने मारा? वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक शिकार सलमान खान ने ही किया था। जांच अधिकारी ललित बोड़ा की रिपोर्ट के अनुसार हिरणों का शिकार करने से पहले सलमान खान तथा अन्य ने राइफल से निशाना साधने की प्रैक्टिस की थी। इस दौरान वहां एक व्यक्ति दिनेश गावरे मौजूद था जो मुकदमा दर्ज होने के बाद से गायब है। एक अन्य गवाह हरीश दुलानी भी गायब होने की बात की जा रही है। जबकि यह फैसला आने के अगले दिन एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में दुलानी का कहना है कि उसे कभी बुलाया ही नहीं। वह गायब नहीं है। उसके मुताबिक शिकार सलमान खान ने किया था। इसी तरह जिप्सी,होटल और मौके से लिए गए ब्लड़ सेम्पल भी मैच नहीं हुए। अभियोजन पक्ष यह भी साबित करने में विफल रहा कि शिकार रिवाल्वर से किया गया था या फिर एयरगन से। क्योंकि होटल में एयरगन और रिवाल्वर दोनों ही बरामद हुई थी। जिप्सी में जो छर्रे थे वह किसी एयरगन के नहीं थे। जो चाकू बरामद दिखाया गया उससे हिरण की गर्दन नहीं काटी जा सकती। जानकारों की मानें तो इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर ऐसी कई खामियां छोड़ी गई जिसका लाभ आरोपियों को मिला। जबकि निचली अदालत ने भी वन विभाग और पुलिस की जांच, जिप्सी में खून, टायर के मार्क, जिप्सी से बरामद छर्रे  और चश्मदीद गवाह के बयान के आधार पर ही सलमान खान को सजा सुनाई थी। वन विभाग के एक अधिकारी के मानें तो सरकार ने कानून तो बना दिए लेकिन, उन्हें लागू कराने के लिए कोई मजबूत व्यवस्था नहीं की। नतीजा मुकदमा दर्ज करते वक्त कई बार जानबूझकर तो कहीं बार अज्ञानता से ऐसी खामियां छोड़ दी जाती है जिससे केस कमजोर हो जाता है और अभियुक्त बरी हो जाते है या उसे उसके अपराध मुताबिक सजा नहीं मिल पाती। इस कमी को दूर करने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से रणथंभौर, सरिस्का जैसे स्थानों पर वनकर्मियों की लीगल अवेयरनेस ट्रेनिंग भी कराई गई लेकिन, उसका भी ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वन्यजीव अपराध के जितने भी मामले दर्ज होते है उनमें से सजा मात्र 11 फीसदी में ही हो पाती है।

इसी तरह का एक उदाहरण रणथंभौर में भी सामने आ चुका है। रणथंभौर बाघ परियोजना में वर्ष 2010 में दो बाघ शावकों के शव मिले थे। जांच में सामने आया कि इन शावकों की ग्रामीणों ने जहर देकर हत्या कर दी थी। मामला दर्ज हुआ और तहकीकात के बाद दो जनों की गिरफ्तारी हुई लेकिन, आरोपियों के खिलाफ अदालत में विभाग तय समय में चार्ज शीट पेश नहीं कर सका। नतीजा केस कमजोर हो गया। सरिस्का में भी कुछ इसी तरह की कार्रवाई हुई जिसका नतीजा यह रहा कि सरिस्का में अंधाधुंध शिकार हुए  और वहां बाघों का सफाया हो गया। मीडिय़ा में खुलासे के बाद वन विभाग सक्रिय हुआ और उसने केवल कुख्यात तस्कर संसार चन्द समेत कुछ शिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की। इन आरोपियों तक पहुंचने में ही कई महीनें लग गए। अपनी इस लापरवाही को वन विभाग ने साधनों की कमी से ढकने का पूरा प्रयास किया।

रिपोर्ट दर्ज करते समय खामी

वन एवं वन्यजीव अपराध की सूचना मिलने पर वन विभाग के क्षेत्रीय वन अधिकारी कार्यालय का दायित्व बनता है कि वह मामले की रिपोर्ट दर्ज करे और जांच के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी करें एवं सक्षम न्यायालय में प्रकरण को पेश करें। आरोप साबित करने के लिए गवाह, सबूत आदि जुटाए जाते है। अदालत समूचे प्रकरण की अपने स्तर पर जांच कर आरोप साबित होने पर सजा के आदेश देती है। आमतौर पर वन विभाग का गश्ती दल जंगलों में गश्त के नाम पर खानापूर्ति करता है। ऐसे में अधिकतर मामले जनता की सूचना या एनजीओ के दबाव में दर्ज होते है। मामला दर्ज करते समय जो सेम्पल लिए जाते है वे सही तरीके से नहीं लिए जाते है। मसलन उनकी सील नहीं लगाई जाती। विसरा आदि के नमूने लेने के बाद उन्हें निर्धारित सीमा में एफएसएल नहीं पहुंचाया जाता है। इससे एफएसएल जांच में ये सेम्पल फेल हो जाते है। इसकी वजह अधिकारियों एवं कर्मचारियों में जानकारी का अभाव तो होता ही है साथ ही कई बार मिलीभगत से भी ये खामियां छोड़ दी जाती है।

इसी तरह अवैध लकड़ी, कोयला आदि के परिवहन के मामलों जब्त वाहनों पर सीजर मार्का नियमानुसार नहीं लगाया जाता है। बाद में अदालत से वे विभिन्न आधार पर छूट जाते है। यहां तक कि कई दफा धाराएं ही गलत लगा दी जाती है। कई मामलों में सामने आया है कि अभियोजन पक्ष की ओर से समय पर चार्ज शीट पेश नहीं की जाती है। इसका फायदा अभियुक्तों को मिल जाता है और वे अदालत से बरी हो जाते है। अवैध लकड़ी परिवहन, अवैध कटान, वनभूमि पर अतिक्रमण जैसे मामलों में अक्सर ऐसा होता है।

संसाधनों की कमी

वन विभाग के क्षेत्रीय वन कार्यालयों में संसाधनों की कमी है। कम्प्युटर, बिजली जैसी सुविधाओं के अभाव में आज भी कई जगह काम परम्परागत तरीके से होता है। इन्वेस्टीगेशन की नई तकनीक वन विभाग में दूर की कौड़ी है। हार्डकोर अपराधियों से पूछताछ के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण तक नहीं दिलवाया गया है। शातिर अपराधी पूछताछ में बयान बदलते रहते है और ऐसे में वन विभाग उन पर आरोप साबित करने में विफल रहता है। अधूरा रिकॉर्ड भी केस को कमजोर करता है। जंगलता की जमीन पर कब्जे और अवैध परिवहन के मामलों में अक्सर सीमाओं को लेकर विवाद होता है। विभाग अधूरे रिकॉर्ड के कारण अपना पक्ष साबित नहीं कर पाता है। जयपुर समेत कुछ अन्य शहरों में जमीन पर कब्जों के ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें विभाग की ओर से समय पर अदालत में जबाव ही पेश नहीं किया गया। इसी का नतीजा है कि हमारा राष्ट्रीय पशु बाघ संकट में है। राष्ट्रीय पक्षी मोर भी सुरक्षित नहीं है। राज्य पक्षी गोड़ावण गिने-चुने रह गए हैं। राज्य पशु चिंकारा का भी कमोबेश यही हाल है। रेगिस्तानी इलाकों में मरू बिल्ली कहीं-कहीं ही नजर नहीं आती है। राजस्थान में जंगली कुत्ता, जंगली भैंसा, जंगली गधा जैसे वन्यजीवों का नामोनिशान मिट चुका है। दूसरे वन्यजीवों का भी यहीं हाल है। देखा जाए तो वन्यजीव अपने घर में सुरक्षित नहीं है। राजस्थान का सरिस्का और मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर नेशनल पार्क का उदाहरण हमारे सामने है, जिन्हें शिकारियों ने बाघ विहिन कर दिया था।

सलमान का राजनीतिक कनेक्शन

फिल्म अभिनेता सलमान खान राजनीति में नहीं रहे लेकिन, उनका राजनीतिक कनेक्शन मजबूत माना जाता है। हिरण शिकार मामले के समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और उस समय विश्नाई समाज के दबाव को देखते हुए इस मामलें में सबूत जुटाने में सरकार ने तेजी दिखाई थी। बाद में जब कांग्रेस पुन: सत्ता में आई और और बीना काक वन मंत्री बनी तो विभागीय स्तर पर जांच प्रभावित होने के आरोप लगे। दरअसल बीना काक ने सलमान खान की फिल्मों में भूमिका निभाई थी। उस समय वन विभाग के एक अभियुक्त के साथ महकमे के मंत्री के रिश्तों को लेकर खासी चर्चाएं भी थी। इसको लेकर कुछ अफसरों ने उस समय मौखिक आपत्ति भी जताई थी जिसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा।

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