• रमेश सराफ

जयपुर। कोचिंग हब बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है। अपनी आंखों में चमकते सपने लेकर आए छह दर्जन से अधिक प्रतियोगी पिछले पांच साल में अपनी जीवन-लीला समाप्त कर चुके हैं। कोटा एक तरफ जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश प रीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है, वहीं इन दिनों कोटा छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर सुर्खियों में है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, साल 2015 में यहां 19 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया था। वर्ष 2014 में कोटा में 45 छात्रों ने आत्महत्या की जो 2013 की अपेक्षा लगभग 61.3 प्रतिशत ज्यादा थी। जबकि 2016 में छ: छात्र खुदुकुशी कर चुके हैं। राजस्थान का कोटा शहर आज आइआइटी-जेईई में दाखिले की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों का एक केंद्र बन चुका है। आज की तारीख में कोटा कोचिंग का सुपरमार्केट है। पिछले जे ई ई के परीक्षा परिणाम में टॉप रैंक में 100 में 30 छात्र कोटा के इन कोचिंग सेन्टरों से ही निकले हैं। एक अनुमान के हिसाब से एक हजार पांच सौ करोड़ का सालाना टर्नओवर कोचिंग के इस मार्केट में है। कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को सालाना 130 करोड रूपया टैक्स के तौर पर दिया जाता है। देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे मोटे 120 कोचिंग संस्थान यहां चल रहे हैं, जो प्रवेश परीक्षा का प्रशिक्षण दे रहे हैैंं। आज की तारीख में यहां लगभग डेढ लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं और इस कामयाबी का स्याह पक्ष यह है कि देश भर में कोचिंग के लिए बढ़ती इस शहर की शोहरत के साथ यहां कोचिंग के लिए पहुंच रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या की अधिक ख़बरें आने लगी हैं।
शिक्षा नगरी के रूप में प्रसिद्ध कोटा में कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ आत्महत्याओं के ग्राफ में भी वृद्धि हो रही है। पिछले महीने पांचवी मंजिल से कूद कर सुसाइड करने वाली कोचिंग छात्रा कीर्ति त्रिपाठी के सुसाइड नोट की कुछ और बातें सामने आई हैं। सूत्रों के मुताबिक इसमें उसने लिखा है कि मैं जेईई-मेंस में कम नम्बर होने के कारण जान नहीं दे रही हूं, मुझे तो इससे भी खराब रिजल्ट की आशंका थी। बल्कि मैं तो खुद से ही ऊब गई हूं इसलिए जान दे रही हूं। कीर्ति के जेईई-मेंस में 144 अंक आए थे, जो जनरल के कट ऑफ से 44 अंक अधिक थे। उसने गत 28 अप्रैल को पांच मंजिला इमारत से कूदकर जान दे दी थी। परिवार और मित्रों को संबोधित सुसाइड नोट में उसने अपने तनाव और दिक्कतों के बारे में लिखा है। इस नोट के मुताबिक वह अपने आस-पास के माहौल से तनाव में थी।
इस सुसाइड नोट में कीर्ति ने लिखा है कि भारत सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को जल्द से जल्द इन कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यहां बच्चों को तनाव मिल रहा है। उसने लिखा है कि मैंने कई लोगों को तनाव से बाहर आने में मदद की, लेकिन कितना हास्यास्पद है कि मैं खुद को इससे नहीं बचा पाई। कीर्ति ने सुसाइड नोट में मां को संबोधित करते हुए लिखा है कि मैं साइंस नहीं पढऩा चाहती थी। मेरा इंट्रेस्ट तो फिजिक्स में था। मैं बीएससी करना चाहती थी।
किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों की भूमिका आज किसी से छिपी नहीं है। आज हालत यह है कि शिक्षा जगत के दायरे में इसे कोचिंग उद्योग के नाम से जाना जाने लगा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक मोबाइल पोर्टल और ऐप लाने का इरादा जताया है, ताकि इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए कोचिंग की मजबूरी खत्म की जा सके। चूंकि इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, आयु, अवसर और परीक्षा का ढांचा कुछ ऐसा है कि विद्यार्थियों के सामने कम अवधि में कामयाब होने की कोशिश एक बाध्यता होती है इसलिए वे सीधे-सीधे कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं।
अब अगर मोबाइल पोर्टल और ऐप की सुविधा उपलब्ध होती है, तो इससे इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी के लिए विद्यार्थियों के सामने कोचिंग के मुकाबले बेहतर विकल्प खुलेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल इंजीयिरिंग के क्षेत्र में भविष्य बनाने के प्रति बढ़ते आकर्षण को देखते हुए इसकी तैयारी को पूरी तरह बाजार आधारित बना देने वाले कोचिंग संस्थानों के वर्चस्व को तोडऩे में सहायक साबित होगी। इस संदर्भ में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने शिक्षा के व्यवसायीकरण पर भी चिंता ताई है। कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कह रहे हों लेकिन कोटा के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें ऐसा संभव नहीं। कोचिंग में प्रतिदिन डेढ़-डेढ़ घंटे की तीन क्लास लगती हैं। 5 घंटे कोचिंग में ही चले जाते हैं। कभी-कभी तो सुबह पांच बजे कोचिंग पहुंचना होता है तो कभी कोचिंग वाले अपनी सुविधानुसार दोपहर या शाम को क्लास के लिए बुलाते हैं। एक तय समय नहीं होता जिस कारण एक छात्र के लिए अपनी दिनचर्या के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है। वह अपने लिए पढ़ाई और मनोरंजन की गतिविधियों के लिए एक निश्चित समय निर्धारित ही नहीं कर पाता, जिससे उस पर तनाव हावी होता है। ऊपर से 500-600 बच्चों का एक बैच होता है, जिसमें शिक्षक और छात्र का तो इंटरेक्शन हो ही नहीं पाता। अगर एक छात्र को कुछ समझ न भी आए तो वह इतनी भीड़ में पूछने में भी संकोच करता है। विषय को लेकर उसकी जिज्ञासाएं शांत नहीं हो पातीं। तब धीरे-धीरे उस पर दबाव बढ़ता जाता है। ऐसे ही अधिकांश छात्र आत्महत्या करते हैं।
कोटा जिला के कलेक्टर रवि कुमार सुरपुर ने पांच पृष्ठों का यह पत्र शहर के कोचिंग संस्थानों को भेजा है, जिसे हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित करवा के छात्रों के माता पिता को भेजा जाएगा। युवा छात्रों की खुदकुशी की घटनाओं का हवाला देते हुए जिला कलेक्टर ने लिखा कि इन बच्चों के माता पिता की उनसे जो कुछ भी उम्मीदें थीं उनकी बनावटी दुविधा में जीने के बजाय उन्होंने मौत को गले लगाना आसान समझा। उन्होंने लिखा, उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए डराने धमकाने के बजाय आपके सांत्वना के बोल और नतीजों को भूलकर बेहतर करने के लिए प्रेरित करना, उनकी कीमती जानें बच सकता है।
रवि कुमार सुरपुर ने लिखा, क्या माता पिता को भी बच्चों की तरह अपरिपक्वता दिखानी चाहिए? ऐसा नहीं होना चाहिए। सुरपुर ने अपने पत्र में भावुक अपील करते हुए इन छात्रों के माता पिता से कहा, अपनी अपेक्षाओं और सपनों को जबरन अपने बच्चों पर नहीं थोपें, बल्कि वे जो करना चाहते हैं, जिसे करने के वे काबिल हैं उन्हें वही करने दें। इसके अलावा जिला प्रशासन ने विभिन्न संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के तनाव के स्तर को जानने और छात्रों की परेशानी के संकेत मिलने पर ऐसे संस्थानों से उसकी जांच पड़ताल करने को कहा। सुरपुर ने हाल में खुदकुशी करने वाली एक युवा छात्रा कीर्ति के पत्र का भी उल्लेख किया। सुरपुर ने अपने पत्र में छात्रों से कहा कि उन्हें इंजीनियरिंग और मेडिसीन को अपना करियर बनाने के अलावा अन्य विकल्पों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। राजस्थान हाईकोर्ट ने कोचिंग करने वाले छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के मामले में कोचिंग संस्थानों से जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। कोटा में कोचिंग करने वाले छात्रों के लगातार आत्महत्या करने की घटनाओं पर हाईकोर्ट ने स्व:प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर जनहित याचिका दर्ज की थी। कोर्ट ने छात्रों में आत्महत्या करने की बढ़ती घटनाओं को बेहद गंभीर मानते हुए कहा था कि कोचिंग हब के रुप में जाना जाने वाला कोटा शहर छात्रों की लगातार बढ़ती आत्महत्याओं के कारण सुसाईड हब होता जा रहा है। कोर्ट ने कहा था कि बच्चों की असामयिक मृत्यु होने से उसके माता-पिता का कभी पूरा नही होने वाला नुकसान होता है। इसके कारणों का पता लगाकर इस प्रवृत्ति पर रोक लगाना जरुरी है।

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