-बाल मुकुंद ओझा
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन से निकले नेता एक एक कर भ्रष्टाचार के चंगुल में फंसते जा रहे है। केजरीवाल सरकार के पांच मंत्रियों को अब तक गिरफ्तार किया गया है। इनमें दो मंत्री तो रिश्वत लेने के मामले में पकड़े गए। तीसरे मंत्री को फर्जी डिग्री के मामले में वहीँ चौथे मंत्री को हवाला में और पांचवा मंत्री शराब घोटाले में अरेस्ट हुआ है। रविवार को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई द्वारा दिल्ली आबकारी नीति घोटाला मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी और भाजपा में संघर्ष तेज हो गया है और देश की राजधानी सियासी दंगल में परिवर्तित हो गई है। इससे पूर्व सीबीआई द्वारा 19 फरवरी को पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर सिसोदिया ने दिल्ली का बजट पेश करने को लेकर दूसरी तारीख देने का अनुरोध किया था। जिसके बाद सीबीआई ने पूछताछ के लिए 26 फरवरी की तारीख दी थी। आम आदमी पार्टी ने गुजरात चुनाव से पहले ही यह कहना शुरू कर दिया था की मोदी सरकार उन्हें गिरफतार करेगी। जुलाई 2022 में दिल्ली के उप- राज्यपाल वीके सक्सेना ने मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की। सक्सेना ने सिसोदिया पर नियमों को नजरअंदाज कर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए थे। इसके बाद ईडी और सीबीआई ने सिसोदिया के खिलाफ जांच शुरू की। इस मामले में भाजपा ने नए टेंडर के बाद गलत तरीके से
शराब ठेकेदारों के 144 करोड़ माफ करने के आरोप लगाए । मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीबीआई ने कहा कि सिसोदिया ने कई अहम सवालों के जवाब टाल दिए। सबूत भी पेश किए मगर उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया।
इसी बीच आम आदमी पार्टी ने सिसोदिया की गिरफ़्तारी के खिलाफ भाजपा के खिलाफ देशव्यापी संघर्ष का ऐलान कर दिया है। अनेक स्थानों पर प्रदर्शन, धरना शुरू हो गया है। सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान ने भाजपा पर कई आरोप लगाया। आप नेताओं का कहना है शिक्षा में सबसे बढ़िया काम करने वाले को जेल भेजा गया है। वहीँ भाजपा का कहना है बात शिक्षा की नहीं शराब घोटाले की हो रही है। कानून अपना काम कर रहा है। दिल्ली में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। आरोप प्रत्यारोप के बीच भाजपा के नेताओं ने कहा है की सिसोदिया के बाद अब केजरीवाल की बारी है।
यह सच है आम आदमी पार्टी जन आंदोलन की उपज है और आंदोलन से निकली पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल है। दिल्ली की जनता ने भारी बहुमत से उन्हें सिंहासन पर बैठाया है । इसे भी मान लेने में कोई गुरेज नहीं है कि केजरीवाल को राज चलाना नहीं आता। यही कारण है उसके निकटस्थ साथी एक एक कर उसका साथ छोड़ गए । दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। यहाँ राज करने वाले को केंद्र से अपने सम्बन्ध बनाकर ही चलना पड़ता है। मोदी सरकार की आँखों की किरकिरी शुरू से ही केजरीवाल है। फिर केजरीवाल ने भी मोदी पर हमला करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जिसका खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना है। आम आदमी पार्टी नेताओं का कहना है केजरीवाल बेईमान नहीं है। वे दिल्लीवासियों के कल्याण के लिए तत्पर है। मगर भाजपा कभी एलजी के जरिये तो कभी उनके नेताओं के खिलाफ कार्यवाही कर दिल्ली के विकास में रोड़ा लगा रही है। गौरतलब है कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिये अरविन्द केजरीवाल 2011 में अन्ना हजारे के
आंदोलन से जुड़ गये और एक प्रमुख रणनीतिकार के रूप में जनलोकपाल बिल आंदोलन में शामिल हो गये। जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के उपवास के दौरान किरण बेदी, संतोष हेगड़े, शांति भूषण, प्रशान्त भूषण, कुमार विश्वास, बाबा रामदेव और मनीष सिसोदिया आदि के साथ वे अग्रिम पंक्ति में खड़े हो गये। अन्ना हजारे अपने आंदोलन को राजनीति से दूर रखना चाहते थे। इन्हीं मतभेदों के चलते केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास, संजय सिंह और गोपाल राय आदि के साथ अपनी अलग राह पकड़ी और इण्डिया अगेन्स्ट करप्शन के बैनर तले भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई शुरूआत की। बाद में 2 अक्टूबर 2012 को उन्होंने आम आदमी पार्टी की स्थापना की और घोषणा की कि राजनीति में स्वच्छता लाने के लिये वे निरन्तर आंदोलनरत रहकर आम आदमी को जगाएंगे। इसी बीच उनके प्रनुख सहयोगी रहे किरण बेदी, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और कुमार विश्वास सरीखे साथी उनका साथ छोड़ गए। अन्ना हज़ारे ने अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक मुहिम से ख़ुद को दूर करते हुए कहा था कि आम आदमी पार्टी को उनके नाम या छवि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

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