– पीयूष पांडे

जयपुर। अरे ओ सांभा, होली कब है? कब है होली? जेल से छूटकर लौटे गब्बर ने बौखला कर सांभा से पूछा।
सरदार, होली 23 मार्च को है। लेकिन, अचानक होली का ख्याल कैसे आया। बसंती तो गाँव छोड़कर जा चुकी है, और ठाकुर भी अब जिंदा नहीं है। फि र, होली किसके साथ खेलोगे?
धत् तेरे की। लेकिन, वीरु-जय उनका क्या हुआ?
सरदार, तंबाकू चबाते चबाते तुम्हारी याददाश्त भी चली गई है। जय को तुमने ही ठिकाने लगा दिया था, और वीरु बसंती को लेकर मुंबई चला गया था। जे बात…। जेल में बहुत साल गुजारने के बाद फ्लैशबैक में जाने में दिक्कत हो रही है। खैर, ये बताओ बाकी सब कहाँ हैं। कौन बाकी? तुम और हम बचे हैं। कालिया को जैसे तुमने मारा था, उसके बाद सारे साथी भाग लिए थे। बचे कुचे जय-वीरु ने टपका दिए थे। तो रामगढ़ में हमारी कोई औकात नहीं अब ? कोई डरता नहीं हमसे? एक ज़माना था कि यहाँ से पचास पचास मील दूर कोई बच्चा रोता था तो माँ कहती थी कि…..
अरे, कितनी बार मारोगे ये डायलॉग। इन दिनों बच्चे रोते नहीं। माँ-बाप रोते हैं। बच्चे हर दूसरे दिन मैक्डोनाल्ड जाने की जिद करते हैं। मल्टीप्लेक्स में फि ल्म देखने की माँग करते हैं। बंगी जंपिग के लिए प्रेशर डालते हैं। एक बार बच्चों को घुमाने गए माँ-बाप शाम तक दो-तीन हजार का फटका खाकर लौटते हैं….।
सांभा,छोड़ो बच्चों को। बसंती की बहुत याद आ रही है। बसंती नहीं है धन्नो के पास ही ले चलो।
अरे सरदार…कौन जमाने में जी रहे हो तुम। धन्नो बसंती की याद में टहल गई थी। और धन्नो की बेटी बन्नो धन्नों की याद में निकल ली। अब, धन्नो नहीं सेंट्रो, स्विफ्ट, नैनो, एसएक्स-4,सफ ारी वगैरह से सड़कें पटी पड़ी हैं
अरे, ये कौन से हथियार हैं?
ये हथियार नहीं। मोटर कार हैं। तुम्हारे जमाने में तो एम्बेसेडर भी बमुश्किल दिखती थी। अब नये नये ब्रांड की कारें आ गई हैं।
सांभा. होली आ रही है। रामगढ़ की होली देखे जमाना हो गया। होली कार में बैठकर देखेंगे। आओ कार खरीदकर लाते हैं।
अरे तुम्हारी औकात नहीं है कार खरीदने की।
जुबान संभाल सांभा। पता नहीं है सरकार कित्ते का इनाम रखे है हम पर।
भटा इनाम। कोई इनाम नहीं है तुम पर अब। और जो था न पचास हजार का ! उसमें गाड़ी का एक पहिया नहीं आए। सबसे छोटी गाड़ी भी तीन-चार लाख की है। तुम तो साइकिल पर होली देख लो-यही गनीमत है।
सांभा,बहुत बदल गया रे रामगढ़। अब कौन सी चक्की का आटा खाते हैं ये रामगढ़ वाले?”
अरे, काई की चक्की। चक्की बंद हो लीं सारी सालों पहले। अब तो पिज्जा-बर्गर खाते हैं। गरीब टाइप के रामगढ़ वाले कोक के साथ सैंडविच वगैरह खा लेते हैं। इन दिनों गरीबों के लिए कंपनी ने कोक के साथ सैंडविच फ्र ी की स्कीम निकाली है।

सांभा, खाने की बात से भूख लग गई। होली पर गुझिया वगैरह तो अब भी बनाते होंगे ये लोग?

गब्बर बुढय़िा गए हो तुम। आज के बच्चों को गुझिया का नाम भी पता नहीं। बीकानेरवाला, हल्दीरामवाला, गुप्तावाला वगैरह वगैरह मिठाईवाले धाँसू डिब्बों में मिठाई बेचते हैं। बस, वो ही खरीदी जाती हैं। एक-एक डिब्बा सात-सौ-आठ-सौ का आता है। तुमाई औकात मिठाई खाने की भी नहीं है।
सांभा, तूने बोहत बरसों तक हमारा नमक खाया है न..?
जी सरदार
तो अब गोली खा। गोली खाकर फि र जेल जाऊँगा। वहाँ अब भी होली पर रंग-गुलाल उड़ता है, दाढ़ी वाले गाल पर ही सही पर बाकी कैदी प्यार से रंग मलते हैं तो दिल खुश हो जाता है। जेल में दुश्मन पुलिसवाले भी गले लगा लेते हैं होली पर। ठंडाई छनती है खूब। और मिठाई मिलती है अलग से। सांभा, रामगढ़ हमारा नहीं रहा। तू जीकर क्या करेगा।
धाँय…

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