gugar history
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अजमेर। राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सरदार जसबीर सिंह ने कहा की मुस्लिम आक्रान्ताओं के विरोध में गुर्जर समाज की महत्वपूर्ण रही थी। गुर्जर समाज का आठवीं से ग्याहरवीं शताब्दी के बीच लगभग 288 वर्षांे का साम्राज्य रहा था। 1857 की क्रांति में भी गुर्जरों का बलिदान इतिहास में अविस्मरणीय रहा है। महर्षि दयानन्द सरस्वती विष्वविद्यालय में पृथ्वीराज चैहान ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक शोध केन्द्र व अखिल भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में इतिहास में गुर्जर समाज: पुनरावलोकन विषय आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए जसबीर सिंह ने कहा की देष की विभिन्न जातियों व गुर्जर समाज के इतिहास को जानने के लिए भारत के गौरवशाली इतिहास का पुनरावलोकन जरूरी है। भारत की जीवनषैली, संस्कृति व सामाजिक व्यवस्था विष्व में अद्वितीय है। यह देष के लिए गौरव का विषय है कि विष्व के मुख्य 9 धर्मों में से 6 धर्मों का अविर्भाव भारत में हुआ है। उन्होंने कहा की जातियों के इतिहास से ही संस्कृति व मूल्यों की पुख्ता जानकारी हासिल हो सकती है।

उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप  में संबोधित करते हुए इतिहास एवं भारतीय संस्कृति विभाग राजस्थान विष्वविद्यालय जयपुर की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विभा उपाध्याय ने कहा की भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा पर रही है। हमारी संस्कृति पर इस्लाम व ईसायत ने अनेक प्रहार किए है। हमें इस सदमे से उभर कर जीवन मूल्यों की खोज करनी पडे़गी। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्यवादी शासक रहे है। गुर्जर विषुद्ध आर्य थे। कला व साहित्य की विरासत में भी गुर्जर समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह इतिहासकारो का दायित्व है कि वह जातियों के इतिहास को सच्चाई व ईमानदारी के साथ प्रस्तुत करंे। सत्र की अध्यक्षता करते हुए म.द.स. विवि. के कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह ने कहा कि मूल्य एवं संस्कृति हमारे समाज में महत्वपूर्ण है। गुर्जरों के इतिहास को सही रूप  से प्रस्तुत नही किया गया है। इतिहासकार उपेक्षित व पिछड़ी जातियांे के इतिहास लेखन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें ताकि भावी पीढ़ी को सही मार्ग दर्षन मिल सके। अखिल भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान के सचिव कैलाष चन्द्र गुर्जर ने सत्र के समापन पर आभार व्यक्त किया कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष अतिथि द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। सत्र का संचालन डाॅ. एन.के. उपाध्याय ने किया।प्रथम दिन तीन तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। प्रथम तकनीकी सत्र गुर्जरों की उत्पति के विभिन्न मत एवं भौगोलिक विस्तार पर आधारित था। इस सत्र की अध्यक्षता मोहनलाल सुखाड़िया विष्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.पी. शर्मा ने की तथा मुख्य वक्ता राजकीय के.आर.जी स्नातकोŸार महाविद्यालय ग्वालियर की डाॅ. मधुबाला कुलश्रेष्ठ रही।

सह सत्राध्यक्ष प्रो. आर.पी.पाण्डे जीवाजी विष्वविद्यालय ग्वालियर थे। इस सत्र में तीन शोधार्थियो ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। द्वितीय तकनीकी सत्र गुर्जर समाज का सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास आधारित था। इस सत्र की अध्यक्षता डाॅ जसबीर सिंह ने की तथा मुख्य वक्ता राजकीय स्नातकोŸार महाविद्यालय झालावाड़ की डाॅ. सज्जन पोषवाल रही। सह सत्राध्यक्ष राजस्थान विष्वविद्यालय के आर.के गुर्जर थे। इस सत्र में चार शोधार्थियो ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। तृतीय तकनीकी सत्र विदेषी आक्रान्ता और गुर्जर प्रतिरोध (मध्यकाल) विषय आधारित था। इस सत्र अध्यक्षता माध्यमिक षिक्षा बोर्ड राजस्थान के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. चैधरी ने की तथा मुख्य वक्ता राजकीय स्नातकोŸार महाविद्यालय बाजपुर उधमसिंह नगर उŸाराखण्ड के डाॅ. सुषील भाटी रहे। इस सत्र में चार शोधार्थियो ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। साकार हुई राजस्थानी संस्कृति: संगोष्ठी के दौरान प्रथम दिन सांयकालीन सत्र में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में राजस्थान की संस्कृति साकार हो उठी।

सांस्कृतिक कार्यक्रम में राजस्थानी फाग रंग मत डाले रे सवारियां, नीले घोड़े रा असवार जैसे गीतो पर दर्षक झूम उठे वहीं सूफी गीत छाप तिलक सब छोड़ी गीत ने कार्यक्रम को आध्यात्मिक रंग में रंग दिया। इसमे डाॅ. रजनीष कुमार चारण विभागाध्यक्ष संगीत विभाग संस्कृति द स्कूल ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की शुरुआत में राजस्थानी परम्परा के साथ आवोनी आवो म्हारा हिवडे़ रा पावणा गीत ने दर्षकांे को रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम में तबला वादक राजकुमार आॅक्टोपेड पर रमेष सोलंकी सिंथेसाइजर पर शेखर कुमार ने संगत दी। इसके साथ ही विष्वविद्यालय के छात्रों एवं सोफिया काॅलेज की छात्राओं ने राजस्थानी एवं मराठी लोक नृत्य पर अपनी आकर्षक प्रस्तुतियाँ दी।समापन आज: दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन समारोह रविवार को दोपहर 1 बजे स्वराज सभागार में आयोजित किया जाएगा। समापन समारोह के मुख्य अतिथि सांस्कृतिक प्रवाह के मुख्य संपादक प्रो. रामस्वरूप अग्रवाल होंगे तथा अध्यक्षता अखिल भारतीय विधि एवं निधि प्रमुख धर्मजागरण समन्वय केन्द्र जयपुर के रामप्रसाद करेंगे इससे पूर्व  गुर्जर समाज के आस्था केन्द्र एवं वंषावालियाँ तथा गुर्जर समाज का ऐतिहासिक अध्ययन: बिखराव एवं चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ विषय आधारित सत्र होंगे। इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमषः राजस्थान वंषावली अकादमी अध्यक्ष राव महेन्द्रसिंह बोराज व गोविन्द गुरु जनजातीय विष्वविद्यालय बांसवाड़ा के कुलपति प्रो. कैलाष सोडानी करेंगे।

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