galtaji temple

जयपुर। बिहार समाज संगठन व गलता तीर्थ के पीठाधीश्वर महाराज श्री अवधेशाचार्य जी के सान्निध्य में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा । चार दिवसीय महापर्व का पहला दिन नहाय खाय से शुरू हुआ । अगले चार दिन तक सूर्य देव की उपासना की जाएगी । इस पर्व की खास रौनक बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बम्बई, दिल्ली, गुजरात, और पड़ोसी देश नेपाल मे देखने को मिलती है । गुरुवार को नहाय खाय से शुरू होकर 3 नवम्बर रविवार को सम्पन्न होगा।

बिहार समाज संगठन के मीडिया प्रभारी रोशन झा ने बताया कि चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत, नहाय खाय से शुरू हुआ यह व्रत बिहार का सबसे बड़ा व्रत है ? यह बहुत ही कठिन साधना के साथ की जाती है । भाई दूज के दिन मिट्टी के चूल्हे बनाए जाते हैं , उसी दिन गेहूं भी धोए जाते हैं । पवित्रता इतनी रखनी पड़ती है जो किसी बच्चे का हाथ नहीं लगे या कोई जानवर नहीं आ जाए । बिहार समाज संगठन के मुख्य आयोजन गलता जी तीर्थ पर होगा । डाला छठ पूजा महोत्सव समिति के महासचिव सुरेश पंडित ने बताया कि यह व्रत एक ऐसा व्रत जिसमें अमीर- गरीब का कोई भेद – भाव नहीं है। किसी को किसी तरह की बड़ी परेशानी होती है तो यह कहते हैं , परेशानी खत्म हो जाएगी तब पांच साल तक भीख मांग कर हम यह व्रत करेंगे । आस्था इतनी होती है जैसे ही मनोकामना पूरी हुई वैसे ही नहाए – खाए के दिन सुबह – सुबह पांच घरों में भीख मांगने पहुंच जाते हैं । देने वाले भी बिना कुछ पूछे दे देते हैं । आपसी प्रेम को भी दर्शाता हुआ यह बहुत बड़ा व्रत है । गांव में व्रत में यूज आने वाले जो भी समान किसी एक के पास है वह अपने आसपास के लोगों को भी दे देते हैं और यदि किसी कारणवश भूल गए तो वह खुद मांग कर ले जाते हैं ।

अब समय के बदलाव ने बहुत कुछ चेंज कर दिया है । पहले गरीबों को नई साड़ी और धोती व्रती को दुकान वाले भी देते थे लेकिन अब समय के अनुसार यह सब बदल गया है । अब कुछ लोग कहते हैं सेवा करने वाले को यह व्रत का फल मिलेगा , इस लिए पैसे से सामान लेने चाहिए। बिहार समाज संगठन के मिडिया प्रभारी रोशन झा ने कहा कि अभी बिजनेस का बाजार भी खुब चमक जाता है । डाला सूप पहले बांस के बने हुए घर – घर में खरीदे जाते थे अब पीतल के बने हुए बर्तन ने अपनी जगह बना ली है । मौसमी फलों और पूजा के सामान का व्यापारी सुबह पांच लगा देता था । नहाए – खाए के दिन लौकी सब्जी की प्रधानता दी गई है । इस दिन तो चावल चने की दाल लौकी की सब्जी खाते हैं । दूसरे दिन निर्जला रह कर रात को एक बार खीर रोटी से पूजा कर खरना करते हैं । खरना मे केला के पता पर कच्चा चावल से बनी खीर,सुखी रोटी, केला, घी की दीपक जलाकर, अगरबत्ती ,तुलसी के पत्ते आदि रखकर भगवान दीनानाथ सूर्य देव व छठी मईया को भोग लगाया जाता है । उसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते है । इस प्रसाद की बहुत ही महत्व है। जिसके घर में यह पर्व नही होता है लोग प्रसाद मांग कर खाते है । इसके बाद निर्जला निराहार उपवास शुरू हो जाता है तीसरे दिन शनिवार को पहला अर्घ्य अस्ताचलगामि सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है ।प्रसाद रखने के लिए बांस की बनी टोकरी व सूप जिसमे में रखने वाले प्रसाद के रूप से ठेकुआ, गन्ना, गागर (बड़ा नीबू ), नाशपाती, सेव ,केला ,हल्दी, अदरक, मूली,नारियल, केराव, पान,सुपारी एवं मिठाई आदि शामिल होते है । चौथे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है ।

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