-बाल मुकुन्द ओझा
प्रगति और विकास के साथ न केवल हमारी जीवनशैली बदली अपितु हमारा खान-पान भी पूरी तरह से बदल गया। चार पांच दशक पहले मोटा अनाज हमारे आहार का मुख्य घटक था। हरित क्रांति के दौरान गेहूं और धान की खेती को सबसे अधिक महत्व दिया गया और इसके परिणामस्वरूप हमने गेहूं और चावल को अपनी भोजन की थाली में सजा लिया तथा मोटे अनाज को खाद्य शृंखला से बाहर कर दिया। जिन अनाज को हमारी कई पीढ़ियां खाती आ रही थीं, उनसे हमने मुंह मोड़ लिया। वह भी एक समय था जब लोग हाथ चक्की में पीसे मोटे अनाज का सेवन कर स्वस्थ रहते थे। मोटे अनाज के एक नहीं अनेक फायदे है। पौष्टिक तत्वों की भरमार होने से अनेक बीमारियां दूर भागती थी। अब एक बार फिर देश का ध्यान मोटे अनाज की ओर गया है। यह अनाज देश में बहुतायत से उत्पन्न होता है। चीन में एक बार फिर कोरोना महामारी को लेकर देशवासी चिंतित है और इससे निपटने के उपायों पर घर घर में चर्चा हो रही है। मीडिया में आ रही नितनई घोषणाएं आमजन में हिम्मत और साहस बढ़ाने के विपरीत घबराहट ज्यादा उत्पन्न कर रही है। इस बीच कोरोना का मुकाबला करने के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है ताकि इम्युनिटी मज़बूत हो और किसी भी संभावित विपदा का मुकाबला किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटा अनाज के भोजन को जन आंदोलन बनाने पर जोर दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे देश में पोषण अभियान को बढ़ावा मिल सकता है। भाजपा संसदीय
दल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत में जी-20 से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए लाखों लोग भारत आएंगे। सरकार की कोशिश होगी कि उन्हें जो भोजन परोसा जाएगा, उसमें मिलेट्स से बना खाना भी होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने मिलेट्स को लेकर स्कूल-कॉलेजों में चर्चा और देश भर में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता का आयोजन करने का आह्वान करते हुए इसे एक जनांदोलन बनाने की भी बात बैठक में कही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया है। मोटा अनाज यानि मिलेट्स के पोषक तत्वों को देखते हुए देश विदेश की सरकारों द्वारा इन्हे बढ़ावा दिया जा रहा है। क्योंकि मिलेट्स का अधिक उत्पादन भूख और कुपोषण की समस्या हल करने मे बहुत सहायक हो सकता है। कई रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि अगर देश में मोटा
अनाज फिर से चलन में आ जाए तो 70 फीसदी लोग कुपोषण से मुक्त हो जाएंगे। इसके अलावा आमजन मोटापा, बदहजमी, डॉयबिटीज, एनीमिया, हार्ट, कोलेस्ट्राल,जैसी 36 बीमारियों से मुक्त हो सकते है। मोटा अनाज पौष्टिकता का खजाना है। रागी में भी कई पोषक तत्व मौजूद हैं। आहार विशेषज्ञों की मानें तो रागी डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत ही लाभकारी है। वहीं बाजरे में भी प्रोटिन की प्रचूर मात्रा पाई जाती है जो स्वास्थ्य के साथ आंखों के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। ज्वार की खेती पूरे विश्व में 5वें नंबर पर उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है जो लगभग आधे अरब की जनसंख्या का मुख्य आहार है। हमारे देश में आज भी घर घर में लोग गेहूं के साथ मक्के, बाजरा और चंने की रोटी पसंद करते हैं। सर्दियों में तो लोग इसे बड़े ही चाव के साथ न केवल खाते है अपितु मेहमानों की परोसगारी भी करते है। इसे मोटा अनाज कहा जाता है, जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू शामिल है। सर्दी के दिनों में ठंड से शरीर को बचाने के लिए ज्वार और बाजरा खाने की सलाह भी दी जाती है। गेहूं और चावल की तुलना में मोटे अनाज में मिनरल, विटामिन, एंजाइम और इन सॉल्युबल फाइबर भी ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ ही मोटे अनाज में मैक्रो और माइक्रो जैसे पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं। इस तरह मोटे अनाज को खाने से शरीर में कई पोषक तत्वों की पूर्ति होती है साथ ही यह कुपोषण से भी बचाव करेगा। मोटे अनाजों में बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

LEAVE A REPLY