-बाल मुकुन्द ओझा
बुजुर्गों को लेकर इन दिनों सियासत में गर्माहट है। घर परिवार में अपनों से उपेक्षित रहने के बाद अब सरकार ने भी बुजुर्गों से पल्ला झाड़ लिया है। बुजुर्ग सरकार पर बोझ बन गए है। सरकार की माने तो अब बुजुर्ग किसी रियायत या सहायता के हक़दार नहीं है। लगभग 1500 करोड़ रूपये सालाना की सहायता से बुजुर्गों ने सरकार को घाटे की स्थिति में ला दिया। हजारों लाखों करोड़ रूपये नेताओं की शान शौकत पर खर्च करने वाली सरकार के लिए निश्चय ही यह शर्मनाक है। न मालुम कितनी राशि लेकर भगोड़े विदेशों में ऐश कर रहे है। अनगिनत धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। नेताओं के यहाँ छापों में अवैध राशि बरामद होती है। हाल ही बंगाल में एक मंत्री और उसकी चहेती अभिनेत्री के यहाँ छापों में करोड़ों की राशि बरामद की गई। फिर भी बुजुर्गों को लेकर सरकार ने जो रवैया अख्तियार किया है वह सही प्रतीत नहीं होता लोक कल्याणकारी सरकार का दावा करने वाली मोदी सरकार को तुरंत हस्तक्षेप कर बुजुर्गों को न्याय दिलाना
चाहिए।
बुजुर्ग अब सरकार पर बोझ बन चुके है। सीनियर सिटीजन को रेलवे से मिलने वाला लाभ अब नही मिल सकेगा। । ये हम नही कह रहे बल्कि रेलवे विभाग कह रहा है। सरकार ने साफ किया है कि बुजुर्ग को किराए में छूट नहीं मिलेगी। सरकार ने संसद में यह जानकारी दी है। साल 2017-18 में बुजुर्गों को छूट से सरकार पर 1491 करोड़ का बोझ पड़ा। साल 2019-20 में बुजुर्गों को छूट से सरकार पर 1667 करोड़ का बोझ पड़ा। सीनियर सिटीजन को कोरोना से पहले रेल टिकट के किराए में 50 फीसदी तक छूट मिलती थी। कोरोना संकट के दौर में इस सुविधा को बंद कर दिया गया। कोरोना संकट कम होने के बाद जब रेल सेवा फिर शुरू हुई तो बुजुर्गों को छूट नहीं मिली।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में साल 2021 में बुजुर्गों की संख्या 13.8 करोड़ पर पहुंच गयी है। इनमें 6.7 करोड़ पुरुष और 7.1 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। बुजुर्गों की आबादी बढ़ने की वजह मृत्यु दर में कमी आना बताई गई है। इस अध्ययन में 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले लोगों को बुजुर्ग माना गया है। सांख्यिकी अध्ययन में कहा गया है कि 2011 में भारत में बुजुर्गों की आबादी 10.38 करोड़ थी, जिसमें 5.28 करोड़ पुरुष और 5.11 करोड़ महिलाएं शामिल थीं। वही साल 2031 में बुजुर्गों की संख्या 19.38 करोड़ पर पहुंचने का अनुमान है। बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के मधे नज़र यह देखना भी जरुरी है की बुजुर्ग आज किस स्थिति में अपना जीवन यापन कर रहे है। बुजुर्ग देश और समाज के लिए एक समस्या है या गौरव है। बुजुर्गों की बढ़ती संख्या देखकर ख़ुशी होती है की व्यक्ति की औसत आयु में वृद्धि हो रही है मगर बुजुर्गों की उपेक्षा को देखकर दुःख भी होता है। हर एक को याद रखना चाहिए की बुढ़ापा एक दिन सब को आएगा। जिस दिन यह सच्चाई हम स्वीकार कर लेंगे उस दिन समाज बुजुर्गों की इज्जत और सम्मान करना सीख लेंगा। बुजुर्गजन वटवृक्ष के समान हैं। इनकी छाया में रहने वाले लोग धूप, बरसात, आंधी और असामान्य
विपत्तियों से बचे रहते हैं। हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराओं का इतिहास गौरवशाली रहा है। हमारे संस्कार में माता-पिता, गुरु, बुजुर्ग को देवताओं की श्रेणी दी गई है। तभी तो हमारी सामाजिक परंपरा में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव का ज्ञान परिवार की पाठशाला में ही सिखाया जाता है। जिदगी के हर बड़े फैसले या हर खुशखबरी के वक्त बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद लेने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। बुजुर्गों का सम्मान करना हमारी समृद्ध परंपरा है। वृद्धजनों से हमें सदैव मार्गदर्शन मिलता है। देश में सर्वाधिक युवा है, बुजुर्ग उन्हें मार्गदर्शन देते रहें तो भारत को अग्रणी देश बनाया जा सकता है। हर समाज अपनी नई पीढ़ी को बुजुर्गों का सम्मान और आदर करना सिखाता है। इस बेहतरीन संबंध को पीढ़ी दर पीढ़ी बनाए रखा जाना चाहिए। बुजुर्गो की सेवा पुण्य सामान है, जो बिरलों को ही नसीब होता है। जिस समाज में बुजुर्गो का सम्मान न हो, उन्हें परायों से नहीं, अपनों से ही प्रताड़ना मिले, उस समाज को धिक्कार है। अब स्थिति यह हो गई है कि लाचार और बुजुर्ग ही क्यों, अच्छे-खासे, चलते- फिरते माता-पिता को भी बच्चे अपने साथ रखना नहीं चाहते।
मानव जीवन का फलसफा इतना उलझा हुआ है कि हम चाहकर भी इन उलझनों से स्वयं को अलग नहीं का सकते। ताजिंदगी जिन्होंने अपनों को पैरों पर खड़ा करने के लिए खून पसीना बहाया, समय आने पर अब वे ही उन्हें भूला बैठेंगे ऐसा उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। उम्र के जिस पड़ाव में अपनों की जरूरत होती है, उसमें वे बेहद एकांकी जीवन जीने को मजबूर हैं। कोई अपने सुनहरे दिनों को याद करता है तो कोई अपनों को दिल में बसाये अपनी बाकी जिन्दगी काटने की ओर कदम बढ़ता है। अब बस यही यादें हैं जो वरिष्ठ नागरिकों के जीने का सहारा बनी हैं। बुजुर्गों की देखभाल और उनके सम्मान की बहाली के लिए समाज में चेतना जगाने की जरूरत है। सद्व्यवहार से हम इनका दिल जीत सकते हैं।

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