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जयपुर. मॉ चम्बल के किनारे बसे कोटा को अपनी कर्मभूमि बनाकर पिछले कई वषोर्ं से स्वरोजगार करते हुए अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे अनेक परिवारों का कोरोना महामारी ने सब कुछ छीन लिया। हजारों प्रवासी श्रमिक अब अपने घरों को लौट जाने के लिए उतावले हो रहे है। जिला प्रशासन द्वारा बनाये गये कोरोना वाररूम में बैठे अधिकारी तीन पारियों में लगातार अपने घरों को जाने के लिए ऑन लाइन पंजीयन करा चुके नागरिकों से दूरभाष पर जानकारी लेने में अहर्निश जुटे है। कोई सरकार के इंतजाम के इंतजार में बैठा है तो कोई अब तक के संघर्ष के बाद कोटा ही रूकना चाह रहा है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इन प्रवासी श्रमिकों की पीड़ा को समझा एवं राजधानी जयपुर से लेकर जिलों में बैठे अधिकारी श्रमिकों के सकुशल घरों तक वापसी अथवा स्थानीय स्तर पर पुनः रोजगार शुरू कर जीवन पटरी पर लाने में जुटें है। प्रवासी श्रमिकों के लिए मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिला मुख्यालय से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक सरकारी विद्यालयों अथवा राजकीय भवनों को कोरेंटाइन सेन्टर बनाये गये है। जहां भोजन, पानी व आवश्यक सुविधाऎं सरकारी स्तर पर प्रदान की जा रही है। श्रमिकों को इस अनचाही परेशानी के समय राज्य सरकार सहारा बनकर तैयार खड़ी हुई है। श्रमिकों में विश्वास बहाल हुआ है कि उनकी पूंछने वाला कोई बैठा हुआ है। कुछ परिवारों की कहानियां मार्मिक रूप लिये हुए सामने आ रही है।

सब कुछ उजड़ा अब घर जाकर खेती करेंगे

कोटा में पिछले 10 सालों से रहकर विज्ञान नगर के एक होटल में खाना बनाकर अपने परिवार को पालन पोषण कर रहे 28 वर्षीय शिवा पहलीबार कोटा को अलविदा कहेगा। शिक्षा नगरी में पत्नि राधा के साथ रहकर अपनी 5 वर्षीय बेटी वैष्णवी को विद्यालय भेजते समय उसने अनेक सपने संजोये थे, बेटा वंश की परवरिश भी अच्छी प्रकार चल रही थी। प्रतिमाह 10 से 12 हजार रूपये की आमदनी हो रही थी। लॉक-डाउन से रोजगार छिन जाने के साथ जमा पूंजी भी परिवार को पालने में खर्च हो गई। शिवा कहता है ’’जीवन में अनेक उतार-चढाव आये लेकिन चम्बल की धरा पर कभी रोजगार की समस्या नहीं रही पहली बार वह दुखी मन से कोटा को छोडकर जा रहा है अब माता पिता के साथ अपने गांव सोढाचूंबी जिला दतिया मध्यप्रदेश में जाकर खेती का कार्य करेगा।’’

अब खेती में देखेंगे रोजगार

कोटा को पिछले 12 सालों को कर्मभूमि बनाकर परिवार को सहारा दे रहे मध्यप्रदेश के दतिया जिले के सेंगूआ गांव निवासी विमलेश गुर्जर सब्जीमंडी क्षेत्र में खोमचे व पानी पतासी बेचकर स्वरोजगार कर रहा था। पत्नि नीलू व ढाई वर्षीय बेटा सागर के साथ विमलेश कोटा के चौथमाता मन्दिर के पास किराये के मकान में रहकर कार्य करता था। लॉक-डाउन के कारण उसका रोजगार छिनने से बेरोजगार होने के कारण जमा सारी पूंजी भी खर्च हो गई, ऎसे में मकान का किराया तथा आवश्यक सामग्री के लिए परेशानी को देखते हुए उसने कोटा को अलविदा कहने का निर्णय लिया। विमलेश कहता है ’’कोटा में पिछले 12 साल से बदल-बदल कर तीन बडे भाइयों के साथ खोमचे व पानी पतासी का ठेला लगा रहे थे अब लॉक-डाउन ने सब कुछ उजाड दिया ज्यादा दिन तक इंतजार नहीं कर सकते। सरकार द्वारा हमको घर भेजने की व्यवस्था की है तो राज्य सरकार को धन्यवाद देते हुए उन्होंने बतायाकि उससे बडा सहारा मिला है, अब घर जाकर खेती के कार्य में रोजगार तलाश करेंगे।’’

कोटा में ही रहकर करेंगे रोजगार

मध्यप्रदेश के गुना जिले के निवासी मुकेश लोधा कोटा में कोचिंग विद्यार्थियों के लिए बने छात्रावासों में भोजन बनाने का कार्य करते हुए पिछले 10 सालों से कोटा में अकेले रहते हुए रोजगार कर रहा था। लॉक-डाउन के कारण उसके रोजगार पर असर पड़ा लेकिन उसने हार नहीं मानी तथा कोटा में ही रहने का निर्णय लिया है। मुकेश कहता है ’’चम्बल की धरा कोटा में रोजगार की कमी नहीं है वह परिवार का एकमात्र सहारा है लॉक-डाउन के बावजूद उसको रोजगार मिलता रहा पुराने स्वरूप में दिनचर्या लौटने का इंतजार है कोटा में ही रहकर कार्य करेंगे।’’

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