Coaching Classes

– राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। आ धुनिक शिक्षा के इस प्रतियोगी युग में बढ़ते तनाव, कोचिंगों के जंजाल व मकडज़ाल में फंसकर आत्महत्या को मजबूर होते छात्र-छात्राओं को तनावमुक्त शिक्षा प्रणाली उपलब्ध कराने तथा कोचिंग संस्थाओं पर लगाम कसने के लिए लोकसभा में निजी विधेयक पेश किया गया है। लोकसभा में भाजपा के सांसद देवजी एम.पटेल ने यह विधेयक पेश किया है, जिसमें कोचिंग संस्थाओं एवं उससे जुड़े विषयों का नियमन करने के लिए एक बोर्ड गठित करने का प्रस्ताव है। संसद में सांसद पटेल ने गैर सरकारी विधेयक निजी कोचिंग केंद्र नियामक बोर्ड विधेयक 2016 को पेश करते हुए उसके उद्देश्य व प्रस्ताव के बारे में बताते हुए कहा कि देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए अलग-अलग तरह के दावे करने वाले कोचिंग संस्थानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ये कोचिंग संस्थान आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में तो शानदार सफ लता दिलाने की गारंटी का झूठा दावा करते हैं। साथ ही सरकारी नौकरियों चाहे वह अधिकारी वर्ग की हो या लिपिकीय वर्ग की, इनमें भी शत-प्रतिशत प्लेसमेन्ट का दावा करने से नहीं चूकते हैं। मेडिकल व आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में उपस्थित होने वाले उम्मीदवारों की संख्या करीब 14 लाख होती है, जबकि सीटें मात्र दस हजार ही होती है।

ऐसी स्थिति में सफ लता दिलाने की गारंटी के साथ कोचिंग संस्थान छात्रों व उनके अभिभावकों से भारी रकम वसूलते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफ लता के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा का माहौल है। ‘करो या मरोÓ की स्थिति में छात्रों का मानसिक मार्गदर्शन करने के लिए कोचिंग संस्थाओं में व्यवस्था नहीं देखी जाती। विधेयक में आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2014 में 45 छात्रों ने आत्महत्या की। यह आंकडा लगातार बढ़ ही रहा है।  राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 की तुलना में 2014 में छात्रों की आत्महत्या की दर में 63.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। आत्महत्या करने वालों में 40.17 प्रतिशत 30 वर्ष से कम आयु के हैं और इनमें से 17.2 प्रतिशत लड़कियां हैं। देश में कोचिंग संस्थानों पर नियंत्रण के लिए कोई बहुत स्पष्ट और बाध्यकारी कानून भी नहीं है। इस विषय को लेकर आईआईटी रूड़की के प्रो. अशोक मिश्रा के नेतृत्व वाली एक विशेषज्ञ समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पिछले साल नवम्बर में एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें ऑल इंडिया काउंसिल फ ॉर कोचिंग फ ॉर एंट्रेंस एक्जाम गठित किए जाने का सुझाव दिया था जो फीस का नियमन करने के साथ कोचिंग के संबंध में श्रेष्ठ पहल और स्वस्थ माहौल सुनिश्चित करने का काम करे।

देश में कोचिंग नगरी के लिए मशहूर कोटा में पिछले कुछ सालों में छात्रों की आत्महत्याओं की घटनाओं ने देश-प्रदेश को हिला दिया था। इसे देखते हुए देश की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। संसद सत्र के दौरान लोकसभा में कई सदस्यों ने कोटा समेत देश की कोचिंग संस्थाओं में छात्रों की समस्याओं को उठाया है। राजस्थान से भाजपा सांसद सुमेधा नंद सरस्वती ने कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल नौकरी पाना या दिलाना नहीं है। शिक्षा का संबंध व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास से होता है। शिक्षा को लेकर न तो माता-पिता को अपने बच्चों पर अपनी आकांक्षा थोपनी चाहिए और न ही दुनियावी प्रतिस्पर्धा का दबाव डालना चाहिए। बच्चों को कोचिंग संस्थाओं के जाल से भी बचाने की जरूरत है। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, कोचिंग संस्थाओं का सालाना राजस्व 24 हजार करोड़ रुपए है।

शिक्षाविद पी.के.मित्तल का कहना है कि कोटा से पहले दक्षिण भारत प्रतियोगी परीक्षाओं का एकमात्र केन्द्र था। वहां से भी आत्महत्याओं की खबरें आती थीं। समय के साथ आज राजस्थान का कोटा शहर इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का गढ़ बन गया है। इन संस्थानों का हाल यह है कि इन्हें बेहतर परीक्षा परिणाम लाने पर ही ढेर सारे छात्र मिलते हैं और इसके लिए अच्छे से अच्छे अध्यापकों को मोटा वेतन देकर ले आते हैं।  छात्रों का कहना है कि अध्यापक कक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को न सिर्फ आगे की बेंचों पर बैठा कर उन पर ज्यादा ध्यान देते हैं बल्कि औसत दर्जे के छात्रों को धिक्कारने से भी नहीं चूकते। इन पर ज्यादा मेहनत करने का दबाव बनाते हैं या फि र उनका बैच ही बदल देते हैं। कोटा के कोचिंग संचालक इस स्थिति के लिए अभिभावकों को दोषी ठहराते हैं। लेकिन दोषी चाहे जो हो, ऐसी स्थिति में दो पाटों के बीच पिसता मासूम छात्र ही है।

अध्यापकों पर ज्यादा से ज्यादा छात्रों को सफ ल बनाने का दबाव रहता है और इसके लिए वे हर तरह के उपाय अपनाते हैं। कोचिंग संस्थानों पर नियंत्रण के  लिए कोई बहुत स्पष्ट और बाध्यकारी कानून भी नहीं हैं। शिक्षाविदों समेत विभिन्न वर्गों ने कोचिंग संस्थाओं पर नियमन के लिए केंद्रीय कानून बनाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता ई.सी. अग्रवाल ने कहा कि देश में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा पद्धति में विरोधाभास और दुविधा की स्थिति है। नतीजतन इससे उबरने के अब तक जितने भी उपाए सोचे गए, वे शिक्षा के निजीकरण और व्यवसायीकरण पर सिमटते दिखे।  उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा में सुधार लाने के लिए समय-समय पर कई समितियां और आयोग बने, इनकी रिपोर्ट भी आईं, लेकिन इन पर अमल होता नहीं दिखा। इन्हीं दुष्चक्रों में फ ंसी हमारी शिक्षा पद्धति की परिणति छात्रों की आत्महत्याओं के रूप में भी सामने आ रही है। ऐसी स्थिति में देश के निजी कोचिंग संस्थाओं की कार्यप्रणाली का नियमन करने की जरूरत है।

LEAVE A REPLY