जयपुर। आजादी के समर में देश के तकरीबन हर कोने से क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति देकर माटी का कर्ज चुकाया। वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे। जिन्होंने अपने हर संभव स्तर पर आजादी के इन सिपाहियों का साथ देकर देश प्रेम की भावना को जगाए रखा। किसी ने उनको अपने यहां गुपचुप शरण दी तो किसी ने खुले में आकर क्रांतिकारियों का साथ दिया।

इसी कड़ी में जयपुर रियासत के तत्कालिन महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय के राजवैद्य पं. मुक्तिनारायण शुक्ल का नाम भी शामिल है। जिन्होंने क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को जयपुर में सुरक्षित पनाह देने में एक बड़ी भूमिका निभाई। पं. शुक्ल क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के बड़े ही अच्छे मित्र थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने शुक्ल से अनुरोध किया कि वे क्रांतिकारियों को गुप्त ठिकाना उपलब्ध कराए तो शुक्ल उनके इस अनुरोध को टाल न सके और अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए गुप्त ठिकाना उपलब्ध कराया।

-किताब में किया खुलासा
पं.मुक्तिनारायण शुक्ल के पुत्र स्व. अवधेश नारायण शुक्ल ने अपनी पुस्तक सत्यमेव जयते में इसका खुलासा करते हुए लिखा कि जौहरी बाजार व बाबा हरीशचंद्र मार्ग शिवनारायण मिश्र की गली स्थित शुक्ल की पुश्तैनी हवेली में चंद्रशेखर आजाद करीब दो माह तक ठहरे। इस हवेली को क्रांतिकारियों ने अपने ठहरने व शस्त्रागार के तौर पर काम में लिया। राजवैद्य शुक्ल का जुड़ाव रियासत के राजपरिवार से था। जबकि जयपुर रिसायत को अंग्रेज अपना गहरा मित्र मानते थे। ऐसे में पं. मुक्ति नारायण पर एकाएक कोई शक भी नहीं करता था।

-अच्छे मित्र थे आजाद और अवधेश नारायण
गरम दल के नेताओं में अपनी खास जगह रखने वाले चंद्रशेखर बाल अवस्था में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। वर्ष 1925 से 1931 तक वे अक्सर जयपुर आते-जाते रहे। जहां राजवैद्य मुक्तिनारायण शुक्ल के परिवार से उनके करीबी संबंध रहे। उनके बेटे अवधेश नारायण आजाद के अच्छे मित्रों में थे। यहां तक की वे राजवैद्य को चाचा कहकर संबोधित करते थे। इसी के चलते वे अपने हथियार उनके घर रखते थे तो युवाओं में देशप्रेम की भावना जगाने के साथ ही हथियारों का प्रशिक्षण देते। आजाद खुद संस्कृत के छात्र होने के कारण हवामहल के सामने स्थित जयपुर संस्कृत कॉलेज के छात्रों से सीधे संवाद में रहे और उन्हें प्रेरित भी किया।

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