जयपुर. राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर नए सिरे से उथल-पुथल मच सकती है। दोनों प्रमुख पार्टियों में संगठनात्मक बदलाव इसका कारण होंगे। जहां एक ओर सत्ताधारी कांग्रेस में ब्लॉक लेवल से लेकर जिलाध्यक्ष के नामों का ऐलान कभी हो सकता है। वहीं, भाजपा में भी विधानसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले कुछ ऐसी ही तैयारी हो रही है। इस बीच नई जानकारी दोनों पार्टियों के प्रदेशाध्यक्ष बदलने की है। पार्टी सूत्रों के अनुसार गुटबाजी को रोकने में दोनों ही अध्यक्ष नाकाम रहे हैं। इसलिए प्रदेश में जल्द ही पार्टियों का नेतृत्व बदल सकता है। पड़ोसी राज्य गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही राजस्थान में भी 2023 विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। राजस्थान में दोनों ही पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी ने 2023 की तैयारियां शुरू कर दी हैं। मगर दोनों ही पार्टियों में चुनाव से ठीक एक साल पहले प्रदेश संगठन के मुखिया को लेकर स्थितियां स्पष्ट नहीं है। एक ओर कांग्रेस में जहां हाल ही में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्वाचन हुआ है। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस में लगातार सियासी संकट चल रहा है। नया अध्यक्ष बनने और संगठन में भी कई खेमेबाजी के चलते ये कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस राजस्थान में अपना प्रदेशाध्यक्ष बदल सकती है। अगर मुख्यमंत्री की सीट पर कोई बदलाव नहीं होता है तो पावर बैलेंसिंग के लिए प्रदेशाध्यक्ष की सीट दूसरे खेमे को जा सकती है। ऐसा हुआ तो प्रदेशाध्यक्ष बदलना तय है। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी में भी लगातार प्रदेश नेतृत्व को लेकर अंदरखाने सवाल उठते रहे हैं। बीजेपी में प्रमुख नेताओं के अलग-अलग दौरे और आपसी मनमुटाव के किस्से हाईकमान तक भी पहुंच चुके हैं। पिछले दिनों दिल्ली में हुई कोर कमेटी की बैठक में भी यह मसला उछला। कई वरिष्ठ नेताओं के सवाल उठाने के बाद बीजेपी में भी माना जा रहा है कि पार्टी चुनाव से पहले संतुलन साधेगी। ऐसा होता है तो बीजेपी में भी चेहरा बदलेगा। दोनों ही पार्टियों में बदलाव की संभावनाएं तो जताई जा रही हैं। मगर दोनों ही पार्टियों के संगठन के लिए चेहरा बदलना और फिर नए चेहरे को लाना टेढ़ी खीर है। इसका बड़ा कारण दोनों ही पार्टियों में खेमेबाजी चरम पर होना है। दोनों ही पार्टियों में हाईकमान को नया चेहरा घोषित करने से पहले खेमेबाजी को ध्यान में रखते हुए नए चेहरे का चयन करना होगा। भास्कर ने जब दोनों ही पार्टियों के कुछ नेताओं और राजनीतिक जानकारों से बात की तो उन्होंने इसे लेकर कई प्रमुख कारण गिनाए। दोनों ही पार्टियों में प्रदेश की कमान सौंपने से पहले यह अहम फैक्टर है। वर्तमान में कांग्रेस में गोविंद सिंह डोटासरा और बीजेपी में सतीश पूनिया प्रदेश संगठन के मुखिया के तौर पर ऐसे नाम हैं। जिनकी कल्पना किसी ने नहीं की थी।
भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही खेमेबाजी हाईकमान का सबसे बड़ा सिरदर्द है। बीजेपी में जहां वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल सहित कई नेताओं के अपने-अपने गुट हैं। ऐसे में सबको साथ रखते हुए एक ऐसा चेहरा तय करना हाईकमान के लिए मुश्किल होगा। इसके लिए सभी की हामी हो। हालांकि, बीजेपी में इस तरह के ठोस निर्णय होते रहते हैं। वहीं, कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच मनमुटाव सड़क पर आ चुका है। सीएम की कुर्सी को लेकर पहले से ही लड़ाई है। पीसीसी चीफ को लेकर भी किसी एक खेमे के नेता को पीसीसी चीफ बनाना आसान नहीं होगा। वहीं, दोनों गुट किसी एक चेहरे पर राजी हो जाएं ऐसा हो पाना भी कांग्रेस के वर्तमान हालातों को देखते हुए मुश्किल नजर आता है। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2023 विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में संगठन के मुखिया का चयन करना, वर्तमान मुखिया को बनाए रखना या हटाना सहित तमाम निर्णय दोनों ही पार्टियों के हाईकमान के लिए चुनौती से कम नहीं होंगे।

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