Banipark-ice-factory-Case

जयपुर। बनीपार्क थाना इलाके में अग्रवाल आईस फैक्ट्री के नाम से चर्चित बेशकीमती 9396 वर्गगज सरकारी जमीन को खुर्द-बुर्द कर राजकोष को 3.26 करोड रुपए की क्षति के मामले में आरोपी विजय मेहता निवासी सी-14,15 जमुना नगर, सोडाला ने सोमवार को सीबीआई की निचली कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में कोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर 9 फरवरी तक न्यायिक हिरासत में जेल भ्ोज दिया। मामले में सीबीआई ने विजय मेहता के अलावा अभियुक्त शैलेंद्र गर्ग के खिलाफ भी चालान पेश किया था। उपरोक्त दोनों आरोपी मैसर्स अग्रवाल आइस फैक्ट्री, बनी पार्क के तत्कालीन पार्टनर है।

यह है मामला:-
नगर निगम में विद्याधर नगर जोन के तत्कालीन जोन आयुक्त जगरूप सिह यादव ने बनीपार्क थाने में 17 मई, 2002 को भीमसेन गर्ग सहित 22 व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप था कि अभियुक्तों ने बदनियती से मैसर्स अग्रवाल आईस फैक्ट्री की जो भूमि आईस फैक्ट्री लगाने के लिए दी गई थी, बंद होने पर भूमि सरकार को न देकर गैरकानूनी रूप से बेईमान व कपट पूर्वक जरिए रजिस्ट्री द्बारा अलग-अलग व्यक्तियों को विक्रय कर दी। जबकि ना क्रेता और ना ही विक्रेता को उक्त भूमि पर कोई कानूनी अधिकार था। किये गये अपराध से स्थानीय निकाय/सरकार को करोडों रुपए कि सदोष हानि कारित की। जांच अधिकारी डिप्टी सत्येन्द्र सिंह, एएसपी गिर्राज मीणा, निरीक्षक जंहागीर खान, योगेन्द्र जोशी एवं हरिमोहन शर्मा ने अनुसंधान कर 31 जनवरी, 2003 को अदम सबूत में एफआर दे दी। बाद में 17 अप्रैल, 2015 को हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपा था।

सरकार की है विवादित जमीन:-
14 अप्रैल, 1947 को सचिव, शहरी विकास बोर्ड ने जगन प्रसाद को उसकी ओर से 3 अप्रैल को दी गई अर्जी पर आईस फैक्ट्री लगाने के लिए किराए पर औधोगिक प्रयोजनार्थ दी। 23 मई 1947 को 9396 वर्ग गज जमीन 99 वर्ष की लीज पर जगन प्रसाद को दी गई थी और लीज पीरियड खत्म होने के बाद भूमि वापस सरकार में निहित हो जायेगी। शर्त थी कि बिना अनुमति जमीन को खुर्द-बुर्द नहीं करेगा लेकिन जगन प्रसाद ने 7 अप्रैल, 1948 को कालीचरण व वंशीधर के साथ एक भागीदारी फर्म बनाई और फर्म का नाम अग्रवाल आईस फैक्ट्री रखा। लेकिन 4 नवम्बर,1949 को 13370 रुपए लेकर हिस्सा राशि लेकर जगन फर्म से अलग हो गया।

बाद में कई भागीदार बनते गए और अलग होते गए। 1974 में उद्योग विभाग ने फर्म को रजिस्ट्रेशन नंबर दिये। 17 मई, 1999 को उद्योग विभाग एवं भागीदारों के बीच 99 वर्ष की लीज डीड निष्पादित की गई। शर्त थी कि 2 साल में कोल्ड स्टोरेज नहीं बना, जमीन सरकार की होगी। लेकिन कोल्ड स्टोरेज बनने की बजाय आईस फैक्ट्री ही बंद हो गई। पूर्व पार्टनर कस्तूरचंद के नाम से फर्जी व्यक्ति ने 1999 को प्रदूषण बार्ड से फैक्ट्री चालू करने की अनुमति मांगी। लेकिन बोर्ड के राजेश ठाकुरिया ने पत्र को बिना जांचे जल्दबाजी में क्षेत्र को आवासीय बता कर अनुमति नहीं दी।

सीबीआई ने यह माना अपराध:-
1997 व 2000 को एक नई भागीदारी विलेख बनी, जिससे फर्म में शैलेंद्र सिंह, विजय मेहता, सुचिस शुक्ला, रमेश सुखानी, विक्रम सुखानी, राजकुमार भाटिया एवं कमला भाटिया भागीदार बने एवं बाद में रहे। फर्म के सभी कार्यो के लिए विजय मेहता को अधिकृत किया गया। 4 अक्टूबर, 2008 को भीमसेन गर्ग का स्वर्गवास हो गया। उसके बाद 18 मार्च, 2009 को एक नई भागीदारी विलेख मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेंडिग बनीं। भागीदारी विलेख में ओवर राइटिग की गई। 2 मार्च से 4 सितम्बर, 2000 तक विजय मेहता ने उक्त भूमि बिना इजाजत व बिना भू-उपयोग परिवर्तन किये 28 प्लाटों की 32 रजिस्टि्रयां अपने ही लोगों एवं कर्मचारियों के नाम करवाई। डीएलसी दर से नीचे की कीमत पर हुई रजिस्ट्री से प्राप्त पैसे शैलेंद्र गर्ग ने बैंक से निकाले व उपयोग में लिया।

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