नई दिल्ली। मुम्बई में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार पाकिस्तान में स्थित लश्कर ए तैयबा व दूसरे आतंकी संगठनों के कैम्पों पर हमला करना चाहती थी। लेकिन किसी कारणवश यह संभव नहीं हो सका। हमले के वक्त देश के तत्कालीन विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने यह बात कही है। एक अंग्रेजी अखबार में छपे साक्षात्कार में मेनन का मानना था कि आतंकी हमले से देश की सेना और सुरक्षाबलों पर लगे अक्षमता के दाग को हटाने के लिए यह योजना बनी थी। आतंकियों के खिलाफ तीन दिन तक चली कार्रवाई को पूरी दुनिया ने टीवी पर देखा था। उस समय मेनन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया गया था। उन्होंने अपनी किताब इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फ ॉरेन पॉलिसी में भी इस बात का जिक्र किया है। उनका कहा था कि उस समय सैन्य कार्रवाई नहीं करने, राजनयिक तथा अन्य विकल्पों पर विचार करने का फैसला वक्त और स्थान के हिसाब से सही था। पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के सवाल पर मेनन ने कहा था कि सरकार में उच्च स्तर पर विचार के बाद यह तय हुआ था कि हमला करने से ज्यादा फ ायदा हमला ना करने से होगा। हमले से पूरा पाकिस्तान सेना के साथ खड़ी हो जाती और तत्कालीन चुनी गई आसिफ अली जरदारी की सरकार को खतरा पैदा हो जाता। 2008 में 26 नवंबर को पाकिस्तान से आए लश्कर के 10 आतंकियों ने मुंबई पर हमला कर दिया था, जिसमें 26 विदेशी नागरिकों समेत 166 लोगों की मौत हो गई थी। उरी में हुए आतंकी हमले के बाद पीओके में सेना की जवाबी कार्रवाई में सात आतंकी शिविर ध्वस्त हो गए और 50 आतंकी मारे गए।

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