नयी दिल्ली। देश के विभिन्न हिस्सों में कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों एवं किसानों की मौत की रिपोर्ट के बीच सरकार कीटनाशक प्रबंधन विधेयक को संसद से पारित कराने पर विचार कर रही है ।तत्कालीन संप्रग सरकार ने वर्ष 2008 में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक संसद में पेश किया था, लेकिन उसे पारित नहीं किया जा सका ।कृषि मंत्रालय के सूत्रों ने ‘‘भाषा’’ को बताया कि सरकार कीटनाशक प्रबंधन संबंधी विधेयक को संसद से पारित कराना चाहती है जो किसानों के हितों को पूर्ति करने वाला है।साल 2016 में संसद के मानसून सत्र के दौरान कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 को नए सिरे से चर्चा एवं पारित किये जाने के लिये कामकाज की सूची में शामिल किया गया था लेकिन यह पारित नहीं हो सका ।इस विधेयक पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रिपोर्ट पेश कर चुकी है । संसद की मंजूरी मिलने पर यह कीटनाशक अधिनियम 1968 का स्थान लेगा ।इस विधेयक में कीटनाशक को नये सिरे से परिभाषित किया गया है । इसमें खराब गुणवत्ता, मिलावटी या हानिकारक कीटनाशकों के नियमन एवं अन्य मानदंड निर्धारित किये गए हैं ।इसमें कहा गया है कि कोई भी कीटनाशक का तब तक पंजीकरण नहीं हो सकता है जब तक कि उसके फसलों या उत्पादों पर पड़ने वाले प्रभाव तय नहीं होते जो खाद’य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत निर्धारित हों । इसमें कीटनाशक निर्माताओं, वितरकों एवं खुदरा विक्रेताओं के लाइसेंस की प्रक्रिया तय की गई है ।सरकार ने नवंबर 2014 में लोकसभा में हुकुमदेव नारायण यादव के प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री संजीव बालयान ने कहा था कि कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 संसद में लंबित है जिसमें कीटनाशकों के संदर्भ में गलत तरीके से ब्रांडिंग करने, खराब गुणवत्ता और हानिकारक प्रभावों के संदर्भ में दंड का प्रावधान है ।
महाराष्ट्र समेत देश के कई हिस्सों में कथित तौर पर जहरीले कीटनाशकों की वजह से पिछले दिनों कुछ किसानों की मौत की रिपोर्ट को देखते हुए हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट (सीएसई) ने कीटनाशकों के उपयोग के बारे में ठोस दिशा निर्देश तैयार करने तथा श्रेणी 1 के कई कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है । संगठन ने इस तरह के जहरीले कीटनाशकों के असुरक्षित इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कीटनाशक प्रबंधन वाले एक विधेयक की मांग की है ।सीएसई के उप महानिदेशक चंद्रभूषण ने कहा है कि कीटनाशक के जहर से महाराष्ट्र में हुई मौतों के पीछे की वजह देश में बड़े पैमाने पर कीटनाशक प्रबंधन में बरती जा रही लापरवाही है । सरकार ने वर्ष 2008 में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक संसद में पेश किया था, लेकिन उसे पारित नहीं किया गया है।बिल को पारित कराने की आवश्यकता पर बल देते हुए चंद्रभूषण ने कहा है कि जब तक सरकार अपने कीटनाशकों के प्रबंधन संबंधी नियमों और विनियामक संस्थानों में सुधार नहीं करती, तब तक कीटनाशक के उपयोग से मृत्यु का यह सिलसिला जारी रहेगा।महाराष्ट्र के किसान कार्यकर्ता गणेश ननोटे ने कहा कि कीटनाशकों के कारण काफी संख्या में किसानों की ऐसी मौतें हुई जिन्हें रोका जा सकता था। कृषि विभाग कीटनाशकों के प्रबंधन में पूरी तरह से विफल रहा है ।उन्होंने कहा कि अनेक ऐसे कीट-पतंगे पर्यावरण मित्र होते हैं, उनकी प्रजातियां इन खतरनाक रसायनों के चलते लुप्त होती जा रही हैं। हालांकि बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराना भी बड़ी चुनौती है । कर्ज के जाल में फंसा किसान जोखिम उठाकर कीटनाशकों के इस्तेमाल को कुछ हद तक मजबूर है ।ननोटे ने कहा कि हमें प्राकृतिक उपायों की ओर ही लौटना होगा और जैविक खेती और जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा देना होगा । जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद के कारण जैविक कीटनाशक माह भर में ही भूमि में अपघटित हो जाते हैं, और इनका कोई अंश अवशेष नहीं रहता । यहीं कारण है कि इन्हें पारिस्थितिकीय मित्र के रूप में जाना जाता है ।सीएसई के रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में मोनोक्रोटोफ़ोस, ऑक्सिडेमेटेन-मिथाइल, एसेफेट और प्रोफेनोफोस जैसी कीटनाशकों को मृत्यु और बिमारियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मोनोक्रोटोफ़ोस, ऑक्सिडेमेटेन-मिथाइल को अत्यधिक खतरनाक (वर्ग-1 का) माना है। मोनोक्रोटोफ़ोस को 60, फोरेट को 37, ट्रायाफोस को 40 और फॉस्फैमिडोन को 49 देशों में प्रतिबंधित किया गया है।