-डॉ. गरिमा संजय दुबे
होली का आना,
जैसे हो जीवन पर रंगों का जादू,
सा छा जाना,
मन हो रंगे, तन हो रंगे,
हो रंगों का अजब-सा ताना-बाना,
लिए कलम बैठी थी मैं,
होली पर कुछ लिखने का था ठाना,
सोचा क्या लिखूं? होली पर कोई तराना,
या लिखूं कि सबकी होली का क्यों एक सा न हो पाना?
लिखूं उस होली के बारे में जो,
धधकती है हर दिल में,
होते हुए अन्याय को देखकर?
या लिखूं उस होली पर जो,
सुलगती रहती है भूखे पेटों में,
व्यर्थ फेंके जाने वाले भोजन को देखकर?

लिखूं उस होली के बारे में जिसकी,
चिंगारियां फू ट पड़ती हैं,
देखकर स्त्री पर होते अत्याचार को?

या लिखूं उस होली पर जो,
कसकती-तडफ़ती रहती है, अनाथों के मन में,
मां के हाथ की पूरणपोली के स्वाद,
और पिता की गोद के लिए?

लिखूं उस होली के बारे में जो,
फ डफ़ ड़ाती हैं अपनी लपटें,
उस मजदूर के मन में जो,
बनाता है अनगिनत मकान,
पर होता नहीं उसका अपना कोई घर?

या कि लिखूं उस होली पर जब,
कड़कड़ाती ठंड में फु टपाथ पर,
बैठा बच्चा देखता है अमीर के कुत्ते को,
स्वेटर पहने?

क्या भूखे पेट, नंगे बदन और दु:ख से बोझिल आंखों को,
भी खूबसूरत लगते होंगे पलाश, टेसू?,
क्या महुआ की गमक,
देती होगी मादक संदेश उन्हें भी?

क्या रंगों का रंग भी सुनहरा, हरा, नीला, पीला, हरा, गुलाबी, लाल,
होता होगा अनाथों के लिए भी?
या होता है उनकी गरीबी की तरह स्याह सूखा?

फिर सोचा नहीं त्योहार दु:ख मनाने के लिए नहीं,
ये तो होते हैं सृजन के लिए,
इस दिन हर दु:ख भुला गरीब से गरीब भी,

रंग देता है अपने दुखों को गुलाबी रंग से,
रंगीन शीतल जल से करता है कोशिश,
अपने अंदर की धधकती होली को
ठंडा करने की,

होली संदेश है रंगों के घुल-मिल जाने का,
अपने रंगों में संवेदनाओं का एक रंग और मिलाना,
सुलगने देना अच्छाई की आग को,

और रंगों का यह उत्सव मनाते रहना।
और रंगों का यह उत्सव मनाते रहना।।

-जनप्रहरी एक्सप्रेस की ताजातरीन खबरों से जुड़े रहने के लिए यहां लाइक करें।

LEAVE A REPLY