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नई दिल्ली । अगर 16 वर्ष से कम उम्र की किशोरी मर्जी से किसी शख्स के साथ संबंध बनाए तो नियमानुसार अदालत किशोरी के माता-पिता के बयान को ही सही मानकर कानून के अनुरूप कार्यवाही करती है। इसके उलट दिल्ली हाई कोर्ट के सामने आए ऐसे ही एक मामले में किशोरी के बयान को तवज्जो दी गई और इस आधार पर आरोपी की सजा भी कम की गई। पेश मामले में 14 वर्षीय किशोरी ने कुबूल किया कि वह मर्जी से आरोपी के साथ गई थी। दोनों पति-पत्नी की तरह जीवन बिता रहे थे। कानून के मुताबिक, संबंध बनाने के लिए स्वीकृति देने की न्यूनतम आयु 16 वर्ष है। ऐसे में लड़की के साथ बनाए गए संबंधों को दुष्कर्म ही माना जाएगा, लेकिन पीड़िता की मर्जी के कारण विशेष परिस्थिति मानते हुए हाई कोर्ट ने दोषी की सजा को सात साल से घटाकर पांच साल में तब्दील करने का निर्णय लिया।

न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा – 376 (दुष्कर्म) का संशोधित कानून फरवरी 2014 में अमल में आया था। पूर्व के कानून में न्यूनतम सात साल की सजा दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन केवल विशेष परिस्थिति में ही सात साल से कम सजा दी जा सकती है। निचली अदालत ने युवक को अपहरण करने का भी दोषी पाया था। इस अपराध से युवक को बरी कर दिया गया। किशोरी सितंबर 2011 में घर से संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गई थी। करीब 15 दिनों बाद किशोरी के पिता मुरादाबाद स्थित युवक के घर पहुंचे, जहां किशोरी आरोपी के साथ रहती हुई मिली। वह दोनों को लेकर दिल्ली आया और युवक को जांच अधिकारी के हवाले कर दिया।

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