-बाल मुकुन्द ओझा
भारतीय राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र को लेकर सियासत गर्मायी हुई हैं। रिटायरमेंट को लेकर लोग तरह तरह के कयास लगा रहे है। सोचने विचारने की बात है क्या राजनीति में भी रिटायरमेंट की उम्र होनी चाहिए। असल में 2014 में केंद्रीय सत्ता में वापसी के बाद भाजपा ने सम्मानजनक रिटायरमेंट का नियम बना कर 75 साल से ज़्यादा आयु वाले नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया। भारत में राजनीति में रिटायरमेंट का विचार भाजपा केतत्कालीन महासचिव नानाजी देशमुख ने दिया था। उनका कहना था कि 60 साल की उम्र हो जाने के बाद नेता को भी रिटायर हो जाना चाहिए। जनता पार्टी की सरकार के पतन के बाद उन्होंने ख़ुद को राजनीति से अलग कर लिया था। चित्रकूट जाकर ग्राम विकास के मिशन में जुट गए थे। राजनीति से रिटायरमेंट समाजवादी नेता मधु लिमये ने भी लिया। जनता पार्टी में
बिखराव के बाद वह भी रोजाना की राजनीति से अलग हो गए। नानाजी देशमुख और मधु लिमये, दोनों ने राजनेताओं के सामने उच्च आदर्श प्रस्तुत किए। मधु लिमये भारतीय और गोवा के स्वाधीनता आंदोलन के भी सेनानी थे। संसद के सदस्य रहे। लेकिन, उन्होंने कोई पेंशन नहीं ली। उनका कहना था कि पेंशन के लिए आंदोलन का हिस्सा या संसद सदस्य नहीं बना। महाराष्ट्र में चाचा-भतीजे की लड़ाई में उम्र की एंट्री हुई है। शरद पवार के भतीजे और डिप्टी सीएम अजित पवार ने एनसीपी नेताओं की बैठक में चाचा शरद पवार पर हमला करते हुए कहा कि पहले आपने इस्तीफा दिया, फिर वापस लिया। आपकी उम्र 80 पार हो गई। आप रिटायर क्यों नहीं होते। रिटाटरमेंट की उम्र कहीं 58 साल है तो कही 60 साल। भाजपा में यह 75 है। आपकी उम्र ज्यादा हो गई है। आप आशीर्वाद दीजिए। डिप्टी सीएम अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को 82 साल की उम्र का हवाला देकर रिटायर होने की सलाह दी तो एनसीपी चीफ ने तुरंत पलटवार भी किया है. शरद पवार ने कहा, उम्र मायने नहीं रखती. 82 हो या 92… इससे फर्क नहीं पड़ता. मैं एनसीपी का अध्यक्ष भी हूं. जब तक अच्छा काम कर रहा हूं, एक्टिव पॉलिटिक्स में बना रहूंगा. अजित और शरद पवार की बयानबाजी से राजनीति में भी रिटायरमेंट को लेकर सवाल उठने लगे हैं. दरअसल, आम तौर पर किसी भी नौकरीपेशा लोगों की एक रिटायरमेंट ऐज होती है. लेकिन भारतीय राजनीति में शायद ऐसा कुछ तय नहीं है।
राजनीति में उम्रदराज नेताओं की बात करें तो प्रकाश सिंह बादल को पहले नंबर पर पाएंगे। बादल ने 94 साल की उम्र में विधान सभा का चुनाव लड़कर एक रिकार्ड कायम किया था। हालाँकि इस चुनाव में बादल को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। अन्य सक्रीय नेताओं की बात करे तो नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला 84 साल के हैं। जनता दल (सेक्युलर) के अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा 90 साल के है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 80 पार हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष शिबू सोरेन 79 साल के हैं। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी. तब 75+ नेताओं को ना तो मंत्री बनाने और ना पार्टी में कोई पद देने का फैसला लिया गया। इसके तहत लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के अलावा 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। जिनमें शांता कुमार, बीसी खंडूरी, हुकुम देव यादव, कारिया मुंडा, बिजया चक्रवर्ती के नाम शामिल है । मोदी सरकार में 75 की उम्र पूरी होने पर कलराज मिश्रा, नजमा हेपतुल्ला को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। भाजपा के इस कदम से सियासत में युवा नेताओं की एंट्री संभव हुई। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों से उठने लगी थी कि क्या राजनेताओं की रिटायरमेंट की आयु होनी चाहिए? क्या नेताओं की उम्र उनके निर्वाचन क्षेत्र की प्राथमिकताओं को प्रभावित करती है? इसी के साथ अजीत पवार ने एक बार फिर रिटायरमेंट की उम्र का शगूफा छोड़कर गुगली फेंक दी है।

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