– राम शर्मा
पिछले दिनों नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने जो आकड़े जारी किए वे राजस्थान के लिए चिंताजनक है। प्रदेश में अपराधों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में प्रदेश में  हर तरह के अपराध बढ़े हैं। फिर चाहे महिलाओं पर अत्याचार का मामला हो, हत्या हो या अन्य किसी प्रकार के अपराध। हालांकि सरकार का इस मामले में तर्क है कि थानों में एफआईआर दर्ज करने की सहूलियत से इन आंकड़ों में वृद्धि हुई है। लेकिन वास्तविकता यह है कि आम आदमी पुलिस में जब ही जाता है, जब उसकी मजबूरी हो। इसलिए बढ़ती एफआईआर का सीधा सीधा अर्थ बढ़ते अपराध ही है।  बढ़ते अपराध एक अच्छे समाज की निशानी नहीं है। जिस समाज में अपराध बढ़ रहे हों, इसका मतलब है कि वहां कानून का डर कम हो रहा है। पहले हम एनसीआरबी के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं, फिर देखेंगे कि बढ़ते अपराधों के लिए कौनसे कारक जिम्मेदार है।
एनसीआरबी के अनुसार देश में रेप के सबसे अधिक मामले राजस्थान में हुए। ये मामले पिछले साल की तुलना में 19 प्रतिशत तक बढ़ गए। वर्ष 2021 में देशभर में दर्ज कुल 31,677 रेप के मामलों में से 6337 राजस्थान में थे। इसमें भी 1453 रेप केस नाबालिग बच्चियों के साथ हुए है। राजस्थान में पिछले वर्ष हर दुष्कर्म की चौथी पांचवीं घटना नाबालिग बच्चियों के साथ हुई है।  दुष्कर्म के मामलों में राजस्थान पिछले वर्ष भी टॉप पर रहा। वर्ष 2019 में भी यहां सबसे ज्यादा 5 हजार 997 केस दर्ज हुए। जनता उस पिछले साल 24 मई की उस घटना को आज भी नहीं भूली होगी,  जब जयपुर में लॉकडाउन के दौरान एक महिला से एंबुलेंस में गैंगरेप हुआ। इसी साल पाली जिले के तखतगढ़ में दस वर्षीय बालिका की हत्या कर शव कुएं में डाल दिया गया। क्या राजस्थान इससे शर्मसार नहीं होगा? शायद ही कोई दिन जाता होगा, जब अखबार में दुष्कर्म जैसी घटनाएं सुर्खियां नहीं बनतीं।
चिंताजनक बात यह है कि राजस्थान आर्थिक अपराधों में भी पीछे नहीं है। यहां इकोनोमिक क्राइम में 16.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति ने बच्चों को भी नहीं बख्शा।  नेशनल क्राइम ब्यूरो भी इस बात को प्रमाणित करता है। यहां  पिछले साल बच्चों की प्रताडऩा के 7653 मुकदमें दर्ज हुए हैं। बच्चों के प्रति अपराध में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
देशभर की मेट्रोपोलिटन सिटीज में ब्लाइंड मर्डर मामलों में राजस्थान की राजधानी जयपुर पहले स्थान पर है। एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में 19 शहरों को शामिल किया गया है। इसमें बताया गया है कि जयपुर में एक वर्ष में 118 लोगों की हत्या हुई है। इसमें 85 पुरुष और 33 महिलाओं की हत्या हुई। वहीं वर्षभर में हत्याएं ऐसी है, जिन्हें ब्लाइंड मर्डर की श्रेणी में रखा गया। यानि इनके हत्यारों का आज तक पता नहीं चल पाया।
प्रदेश में साइबर क्राइम लगातार बढ़़ रहे हैं। पिछले चार वर्ष में अब तक 125-130 करोड़ की रुपए की ऑनलाइन ठगी हो चुकी है। जिसमें से सौ करोड़ की राशि तो अब तक रिकवर नहीं हुई। राज्य में साइबर ठग ठगी के नए नए तरीके निकालकर अपराधों को अंजाम देते हैं। साइबर ठगी रोकने के लिए मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों राज्य के 32 जिलों में साइबर थाने खोलने की घोषणा की थी, लेकिन यह घोषणा अब तक पूरी तरह अमल में नहीं लाई गई।
राज्य सरकार निरंतर यह दावा करती है कि वह अवैध खनन रोकने के प्रति गंभीर है। लेकिन खनन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद है कि उनके निशाने पर पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी  से लेकर आम लोग तक है। आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं। एक जनवरी 19 से लेकर अब तक 9 हजार 22 एफआईआर दर्ज हुई है। इनमें दस हजार 876 गिरफ्तारियां हुई है। इस वर्ष में ही अब तक 1334 गिरफ्तारियां हो चुकी। बजरी माफियाओं ने पूर्वी राजस्थान के कई क्षेत्रों में पुलिस व आमजन पर हमले किए हैं। नागौर और बाडमेर सहित कई जिलों में बजरी माफियाओं का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। ब्रज क्षेत्र में तो अवैध खनन रोकने के लिए संत विजयदासजी को अपने आप को बलिदान देना पड़ा। अवैध खनन ने ब्रज चौरासी कोस के आदिब्रदी और कनकाचंल क्षेत्र को खोखला कर दिया। वहां संतों का आंदोलन अब भी जारी है। राज्य सरकार के मंत्री आंदोलनरत संतों को धमका रहे हैं।
लूट और डकैती जैसी वारदातें अब आम हो गई है।  बदमाश दिनदहाड़े सडक़ों पर आतंक मचा रहे हैं। डकैती और लूट के मामलों में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अभी हाल ही जोधपुर के व्यवसायी के घर से 10 करोड़ रुपए की लूट हो गई। तीन दिन पहले फलौदी के व्यापारी से बदमाश 81 लाख रुपए दिन दहाड़े छीन ले गए। सितम्बर में जयपुर के व्यवसायी के साथ ऐसी ही घटना हुई,जिसमें गोदाम मालिक के हाथ पैर बांध कर लुटेरे आलमारी से पैसे निकालकर ले गए। इसी प्रकार अनुसूचित जाति व जनजाति पर अत्याचार के मामले पिछले साल की तुलना में 28.28 प्रतिशत तक बढ़े हैं।
क्राइम में ही नहीं भ्रष्टाचार में भी राजस्थान अव्वल है। इंडिया करप्शन सर्वे और ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के हाल ही हुए सर्वे में राजस्थान को सर्वाधिक भ्रष्ट प्रदेशों की श्रेणी में माना गया है। सर्वे में 78 प्रतिशत ने माना कि उन्होंने अपना काम करवाने के लिए कभी न कभी रिश्वत दी है।  भ्रष्टाचार का आलम यह है कि एसीबी ने इस साल शुरुआत के छह माह में ही भ्रष्टाचार के 267 मामले दर्ज कर लिए हैं। बढ़ते अपराधों को लेकर विपक्ष  हमेशा सत्तारूढ दल पर हमलावर रहता है। लेकिन क्या बढ़ते अपराधों के लिए केवल सरकार ही जिम्मेदार है? इन अपराधों पर नियंत्रण क्या पुलिस की कार्रवाई पर्याप्त है? क्या अपराधियों में कानून के शासन का डर खत्म हो गया? क्या समाज का गिरता नैतिक स्तर इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? मोबाइल का अनियंत्रित उपयोग और सूचनाओं की बाढ़ क्या इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? इन सवालों के जवाब खोजने ही होंगे। प्राथमिक तौर पर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार जिम्मेदार है। इसलिए अपराधों पर नियंत्रण भी उसकी ड्यूटी है। पुलिस की ढिलाई से भी अपराधियों के हौसले बुलंद है। प्रशासनिक व पुलिस के कामों में दखलदांजी से पुलिस का मनोबल टूटा हुआ है। लेकिन इस सब के इतर कुछ अन्य कारण भी है, जिन पर सरकार और समाज सभी को मनन करना होगा? किसी भी समाज में केवल कानून के राज से समस्याएं हल नहीं हो सकती। उसके लिए समाज के नैतिक स्तर का उच्च होना जरूरी है। आज समाज में नैतिक मूल्यों की पुनस्र्थापना की सख्त जरूरत है। स्कूलों में नैतिक शिक्षा का विषय अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। कानून का पाठ भी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए, ताकि बढ़े होकर वह यह समझ सके कि किस अपराध की क्या सजा है? समाज में आर्थिक असमानता अपराधों का बड़ा कारण है। सरकारों को इस दिशा में भी सोचना होगा। तब ही हम एक स्वस्थ, सुखी और अपराधमुक्त समाज का निर्माण कर पाएंगे।

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