नयी दिल्ली। हिमालय, गंगा और समूचे क्षेत्र में पर्यावरण की रक्षा के लिये गोमुख, गंगोत्री क्षेत्र में जाने वाले पर्यटकों की संख्या पर अंकुश रखा जाना चाहिये और वहां जाने वाले पर्यटकों को अपने साथ किसी तरह के प्लास्टिक का सामान और मादक पदार्थ आदि ले जाने पर रोक होनी चाहिये। गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिये प्रयासरत डा. दुर्गेश आचार्य ने यह बात कही है। उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है जब केंद्र सरकार गंगा की साफ-सफाई के लिये नमामी गंगे परियोजना चला रही है। नमामी गंगे परियोजना केंद्र सरकार की गंगा की साफ-सफाई और स्वच्छता का प्रमुख कार्यक्रम है। राष्ट्रीय नदी गंगा को प्रदूषित होने से बचाने, उसका संरक्षण तथा पुनरूद्धार के मकसद से जून 2014 में 20,000 करोड़ रुपये के बजटीय खर्च के साथ इस कार्यक्रम को शुरू किया गया। डा. दुर्गेश ने ‘भाषा’ से यहां कहा, ‘‘गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिये बाल्यकाल से ही शिक्षा दी जानी चाहिये। गंगा किनारे पेड़ और तुलसी आदि वृक्ष लगाकर पर्यावरण की सुरक्षा की जानी चाहिये। गंगा के मैदानी इलाकों में होने वाली खेती बाड़ी और उससे जुड़ी समूची आर्थिक गतिविधियों की वृद्धि के लिये यह जरूरी है।’’ डा. दुर्गेश गोमुख से लेकर गंगासागर तक गंगा को साफ सुथरा और निर्मल बनाने के लिये जन जागरण अभियान में लगे हुये हैं।
उनका कहना है, ‘‘गोमुख में जाने वाले पर्यटकों की संख्या सीमित रखी जानी चाहिये। उसे पिकनिक स्थल नहीं बल्कि अध्यात्मिक भावना से ओत-प्रोत स्थल के तौर पर रखा जाना चाहिये। गोमुख- गंगोत्री जाने वाले पर्यटकों को अपने साथ किसी भी तरह के प्लास्टिक का सामान और मादक पदार्थ नहीं ले जाना चाहिये। इसकी जांच की जानी चाहिये।’’ डा. दुर्गेश आचार्य ने पिछले 25 साल के दौरान पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में गंगा स्वच्छता अभियान चलाया है। उत्तरकाशी में जन्मे दुर्गेश आचार्य ने रिषिकेश, देहरादून में विश्व शांति सद्भावना धाम की स्थापना की है। केन्द्र सरकार के नमामी गंगे कार्यक्रम के तहत दूषित जल-मल को शोधित करने का बुनियादी ढांचा खड़ा करने, नदियों के किनारों का विकास, जैव-विविधता, वनीकरण, जन-जागरण जैसे उपायों पर जोर दिया गया है।