Kishan-Mukti-Yatra
New Delhi: Swaraj Abhiyan leaders Prashant Bhushan, Shanti Bhushan and Yogendra Yadav during a press conference after the launch of their new political patry 'Sawraj India' in New Delhi on Sunday. PTI Photo by Shahbaz Khan (PTI10_2_2016_000216B)
नई दिल्ली। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की अगुआई में चल रहे ‘किसान मुक्ति यात्रा’ ने बेतिया, सिवान, गोपालगंज, देवरिया, आजमगढ़, बलिया, गोरखपुर, बनारस, इलाहाबाद, होते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तीसरे चरण यात्रा सम्पन्न कर ली है। किसान मुक्ति यात्रा के इस तीसरे चरण कि शुरूआत 2 अक्टूबर को चम्पारण के गांधी आश्रम से की गई, जिसने 10 दिनों के अपने सफर में 3 राज्यों के 27 जगहों का दौरा किया। तीसरे चरण की यात्रा का समापन आज उत्तर प्रदेश के गजरौला में हुआ। इससे पहले के दो चरणों में दक्षिण भारत समेत 12 राज्यों, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली की यात्रा की गई। मंदसौर गोलीकांड के बाद देश भर के 180 किसान संगठन एक साथ आकर किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।
‘किसान मुक्ति यात्रा’ का मकसद देश भर के किसानों को एकजुट कर राजनीतिक ताकत बनाना है। इसी उद्देश्य से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (अकङरउउ) का गठन किया गया, जिसमें भारत के अलग-अलग हिस्सों में संघर्षरत 180 से अधिक किसान संगठन एक मंच पर साथ आये हैं। स्वराज इंडिया का जय किसान आंदोलन भी अकङरउउ का एक अभिन्न हिस्सा है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने किसानों से जुड़ी दो मांगों को चिन्हित किया है व इसी को लेकर आंदोलनरत हैं। पहला, किसानों को सभी प्रकार के कर्जे से मुक्त किया जाए। और दूसरा, उसके उपज को ड्योढ़ा दाम मिले। स्वराज अभियान के जय किसान आंदोलन के सह संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा है कि किसानी एकजुटता आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। इससे पहले दशकों से भारत के किसान खेमों में बंटा था। कभी क्षेत्र के आधार पर, कभी अलग-अलग फसल की खेती के आधार पर, तो कभी तक की जाति और मजहब के नाम पर किसान विभाजित थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज समूचे देश का किसान अपने विरूद्ध दशकों से किये जा रहे अन्याय/शोषण के खिलाफ एकजुट हो रहा है। यही ‘किसान मुक्ति यात्रा’ की सफलता है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वी एम सिंह ने कहा कि किसानों को अपने हक हासिल करने के लिये संगठित होने पड़ेगा। और अकङरउउ यह लड़ाई तब तक जारी रखेगी जब तक किसानों को घाटे, कर्जे, आत्महत्या से मुक्ति नही मिल जाती। केंद्र के मोदी सरकार कि किसान विरोधी नीतियों के चलते अपना समर्थन वापस लेने वाले लोकसभा सांसद राजू शेट्ठी ने कहा है कि सरकार ने जो चुनाव के वक़्त किसानों से वादा किया था आज उससे वह मुकर गई है, नरेंद्र मोदी ने घोषणापत्र में किसानों को फसल का ड्योढ़ा दाम देने का वादा किया था, लेकिन आज पीछे हट गई है। यह देश के अन्नदाताओं के साथ अन्याय और धोखा है। आज खेती की लागत बढ़ रहा है और साथ-साथ घर चलाने का खर्चा भी। किसानों को उसके उपज के ठीक दाम नही मिलने के कारण किसान की आमदनी उस अनुपात में नही बढ़ रही है। वह घाटे में रहने के बाबजूद खेतों में पसीना बहाकर फसल उपजाता है। फिर भी कर्जे से मुक्ति नही मिलती। आज किसानी घाटे का धन्धा बन गयी है। किसानी आज अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। किसान अपने बेटे को किसान नही बनाना है। खेती किसानी को बचाने के लिए यह जरूरी है कि इसे मुनाफे का सौदा बनाया जाए। इसके लिए यह आवश्यक है कि किसानों की ऋण मुक्ति और उसकी उपज के पूरे दाम की राष्ट्रीय नीति बने और दोनों एकसाथ लागू हों।
भारत सरकार के आँकड़े के मुताबिक पिछले 20 सालों 300000 किसानों ने आत्महत्या की है। जबकि केवल पिछले एक साल में 12500 किसान कर्जे, घाटे, आमदनी संकट की वजह से अपनी जान दे दी। चिंता की बात है कि किसानों में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। आज औसतन हर 40 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है। यह कोई साधारण बात नहीं है। इतने व्यापक और गहरे कृषि संकट के बाद भी सरकार किसानों का सुध नहीं लेती है, जाहिर है खेती किसानी सरकार की प्राथमिकता में नही है। किसानों के दुख दर्द को वह समझना नही चाहती है। इसलिए किसानों को अब एकजुट होकर खुद ही सत्ता का विकल्प बनना होगा। अपने हक के लिये लड़ना होगा। स्वराज इंडिया देश के अन्नदाताओं को बेहतर गरिमा सुरक्षा और सम्मान की जिंदगी हासिल करने के संघर्ष में हरपल मजबूती से उनके साथ खड़ा है। देश भर की यात्राओं के बाद इस साल के 20 नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान मुक्ति संसद” का आयोजन होगा, जिसमें 180 किसान संगठनों के साथ ही समूचे देश के किसान भी जुटेंगे। यहाँ पहुंचकर किसान खेती से जुड़े विभिन्न आयामों पर चर्चा करेंगें। वे अपनी मांगों को रखेंगे, अपने लिए नीतियां बनाएंगे और सरकार पर उन नीतियों को लागू करने का दबाब भी बनाएंगे।

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