Supreme Court

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के बाहर मारे गये गोवंश के मवेशियों का मांस रखने को अपराध की श्रेणी से हटाने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के अंतिम निस्तारण के लिए फरवरी में सुनवाई करना तय किया है। न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल और न्यायमूर्ति अभय मोहन सप्रे की पीठ ने फरवरी के तीसरे सप्ताह में किसी दिन सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध किया।शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि निजता के अधिकार को बुनियादी अधिकार घोषित करने वाले इस ऐतिहासिक फैसले से महाराष्ट्र में गायों, बैलों और साड़ों के वध के मामलों पर असर पड़ेगा।

बंबई उच्च न्यायालय ने पिछले साल छह मई को महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) कानून, 1995 की धारा 5 (डी) और 9 (बी) को रद्द कर दिया था।धारा 5 (डी) महाराष्ट्र के बाहर मारे गये गोवंश के मवेशियों के मांस को रखने को अपराध की श्रेणी में रखती है वहीं धारा 9 (बी) आरोपी पर यह साबित करने का बोझ डालती कि उसके पास से मिला मांस इन पशुओं का नहीं है।राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी।

शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को कहा था कि नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के बाद किसी व्यक्ति के पसंद के भोजन के अधिकार का संरक्षण अब निजता के तहत होगा।कई लोगों और संगठनों ने राज्य सरकार द्वारा गौकशी पर लगाई गयी पाबंदी को बरकरार रखने वाले उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी।महाराष्ट्र सरकार ने 1995 के कानून की धारा 5 (डी) और 9 (बी) को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।उच्च न्यायालय ने उन प्रावधानों को असंवैधानिक कहा था जिनमें महज गोवंश के मांस को रखने को अपराध करार दिया गया है।

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