अलवर. जिले में रविवार को अनोखा नजारा दिखा। 80 वर्षीय मोतीलाल के निधन के बाद बगुला घर के चौक के बीच में अर्थी पर आकर बैठ गया। करीब 2 घंटे तक बगुला वहीं रहा। जब मोतीलाल को श्मशान लेकर पहुंचे तो वह बगुला वहां भी पहुंच गया। अंतिम संस्कार करने के बाद लोग घर आ गए। बगुला चिता के बिल्कुल बगल में बैठा दिखा। यह घटना आसपास के गांव में चर्चा का विषय बानी रही। कदपुरा गांव निवासी मोतीलाल लकवा ग्रसित थे। इलाज के दौरान 7 जनवरी को सुबह साढ़े 5 बजे उनकी मौत हो गई। इसके बाद सुबह सात बजे उनकी अर्थी लगाई गई। कुछ ही देर बाद एक बगुला अर्थी पर आकर बैठ गया। तब घर में महिलाएं विलाप कर रही थीं। बगुला अर्थी पर ही बैठा रहा। यह देख परिवार के लोग भी हैरान हो गए। असल में पहले बगुला इस तरह घर आता नहीं दिखा। आसपास के खेतों में ताे बगुले बहुत हैं। लेकिन इस तरह मोतीलाल के घर पर पहली बार ही देखा गया।
– अंत तक श्मशान में रहा बगुला
घर पर अर्थी पर बैठे बगुला पर मतृक के भांजे हरीराम ने गुलाल डाल दिया था। इसके बाद भी वह वहां से नहीं गया। 7 जनवरी को ही सुबह 10 बजे श्मशान पर गए। वहां मोतीलाल का अंतिम संस्कार कर दिया। उसी समय बगुला वहां भी पहुंच गया। असल में बगुले पर गुलाल लगा था। इससे ग्रामीण समझ गए कि बगुला तो वही है। ग्रामीण अंतिम संस्कार कर वापस चलने लगे तब भी बगुला वहीं था। जो अंत तक वहीं रहा।
ग्रामीणों ने बताया कि अंतिम संस्कार के समय भी बगुला चिता के बगल में बैठा रहा। जबकि वहां तक आग की तपन थी। जिसके कारण ग्रामीण दूर खड़े थे। लेकिन बगुला बहुत पास में खड़ा रहा। 9 जनवरी को मोतीलाल के घर पर तिए की बैठक थी। यहां आने वालों के बीच भी यही चर्चा रही। हालांकि अंतिम संस्कार के बाद बगुला नजर नहीं आया। लेकिन आसपास के गांवों में भी अर्थी पर बैठे बगुले की कहानी की खूब चर्चा है।

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