-बाल मुकुन्द ओझा
लोकसभा चुनाव अभी दूर है मगर विपक्षी नेताओं के ख़याली पुलाव पकने शुरू हो गए है। भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की खिचड़ी फिर पकने लगी है। विपक्ष की एकता के नगाड़े बजने शुरू हो गए है। ताज़ा घटनाक्रम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल्ली यात्रा से जुड़े है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की धुरी बने है। नीतीश ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान राहुल गाँधी सहित अनेक विपरीत विचारधारा के नेताओं से भेंट कर 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इनमें आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, मार्क्सवादी नेता सीताराम चेचुरी, कम्युनिष्ट पार्टी के डी राजा, लोक दाल के ॐ प्रकाश चौटाला, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी सरीखे नेता शामिल है। जनता दल के विभिन्न धड़ों को एक झंडे के नीचे लाने के प्रयास शुरू हो गए है। 2019 में लोकसभा चुनाव में हार से हताश विपक्ष को नीतीश कुमार साधने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। आरजेडी जहां नीतीश को पीएम मैटेरियल बता रही है वहीं, पीएम कैंडिडेट की रेस से नीतीश खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनैतिक समीक्षकों का कहना है बंगाल में ममता और कांग्रेस, केरल में सीपीएम और कांग्रेस, आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस और कांग्रेस, तेलंगाना में केसीआर और कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रमुक और अन्ना द्रमुक, पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी और कांग्रेस में गठजोड़ की सम्भावना नहीं के बराबर है।
बिहार में सियासी उलटफेर के बाद भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते आभामंडल को धूमिल करने के प्रयास शुरू हो गए है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदलकर यूपीए खेमे में जाने के बाद वर्ष 2024 में होने वाले लोक सभा चुनावों के मद्ये नज़र देश में एक बार फिर विपक्ष की एकता के लिए जोरदार प्रयास किये जा रहे है। नीतीश को विपक्षी एकता का मेटेरियल बताया जाने लगा है इससे बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर असर पड़ने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ईडी और सीबीआई की मार से आहत यूपीए खेमा इससे बेहद खुश है। इस घटनाक्रम को लेकर विपक्ष में खुशी की लहर है। वर्तमान में विपक्ष कांग्रेस नीत यूपीए के साथ गैर कांग्रेस और गैर भाजपा की सियासत करने वाले दलों में विभाजित है। विपक्ष पहले से ही कई धड़ों में विभाजित है। गैर भाजपा और गैर कांग्रेस का नारा बुलंद करने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्र शेखर राव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लाख प्रयासों के बाद भी अब तक कोई सशक्त मोर्चा बन नहीं पाया है। ममता बनर्जी और चंद्र शेखर राव 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता बेदखल करने के लिए विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए एंटी बीजेपी और एंटी कांग्रेस अलायंस बनाने का आह्वान किया है। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के सम्बन्ध भी कांग्रेस से अच्छे नहीं है। राजद के तेजस्वी यादव भाजपा के खिलाफ बनने वाले किसी भी मोर्चे का आंख मूंद कर साथ देने को तैयार है। उड़ीसा के सीएम पटनायक और आंध्र के सीएम फ़िलहाल किसी मोर्चे के साथ नहीं है। हालाँकि इन दोनों की भाजपा के साथ नरमी किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भाजपा के सख्त खिलाफ है मगर कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं है। वाम मोर्चे की हालत सांप छुछुंदर जैसी है। अन्य क्षेत्रीय दल भी आपस में बंटे हुए है। विपक्ष की ऐसी स्थिति भाजपा के लिए सुखद कही जा सकती है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है वर्तमान में मोदी विरोधी एक मोर्चा बनने की संभावना कम है। इसका मुख्य कारण वे क्षेत्रीय पार्टियां है जिन्होंने अपने अपने राज्यों में कांग्रेस का वोटबैंक हथिया कर उसे सत्ताच्युत किया है। यूपी में अखिलेश यादव, तेलंगाना में मुख्यमंत्री केसीआर, आंध्र में मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी और बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टियां कांग्रेस से मेल मिलाप की इच्छुक नहीं है। जबकि बिहार में तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन की पार्टियां कांग्रेस से हाथ मिलाकर चल रही है। वामपंथी भी कांग्रेस के साथ है। इनमें कांग्रेस का वोट बैंक हथियाने वाली पार्टियां नहीं चाहती कि कांग्रेस उनके राज्यों में पैर पसारे वहीँ अन्य पार्टियां जिनके राज्यों में कांग्रेस प्रभावहीन है वे कांग्रेस को अपने साथ रखने के पक्षधर है। यही एकमात्र पेच है जो संयुक्त विपक्ष को एक होने के मार्ग में अवरोध खड़ा कर रहा है।

LEAVE A REPLY