-राकेश कुमार शर्मा 

जयपुर। राजस्थान में भाजपा सरकार के तीन साल के राज में जयपुर के विकास और मुद्दों को लेकर पहली बार राजधानी जयपुर रीजन में आने वाले विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के विधायकों और सांसदों की बैठक सोमवार को यहां यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी की अध्यक्षता में हुई। इस बैठक ने सियासी भूचाल ला दिया है। इस बैठक में जयपुर के मंत्री-विधायकों का तीन साल से दबा गुबार बाहर आ गया, वहीं इस गुबार के बहाने सरकार और जेडीए की कार्यशैली को भी निशाने पर ले लिया है। मंत्री-विधायकों ने जिस उग्र तरीके से कृपलानी के सामने साफ कह दिया कि तीन साल में जेडीए ने उनकी नहीं सुनी और ना ही उनके बताए कार्यों पर गंभीरता से एक्शन लिया गया। उनके बयानों से साफ जाहिर है कि वे पूर्व जेडीसी शिखर अग्रवाल की कार्यशैली पर तो सवालिया निशान लगा रहे थे, वहीं सरकार और तत्कालीन यूडीए मंत्री राजपाल सिंह शेखावत को भी लपेटने से नहीं चूके। जिस तरह से बयान आए, उससे साफ है कि जेडीए में अफसरशाही हावी रही। मंत्री-विधायकों की नहीं सुनी गई और ना ही उनके बताए कार्य पूरे हो पाए। अफसरों ने काम सुने भी तो उन पर एक्शन नहीं लिया गया। ऐसे निरंकुश हालात में फिर भाजपा कार्यकर्ता और आम जनता के कार्य हो पाएंगे, यह भी सोचनीय बिन्दु है। मंत्री-विधायकों के तीखे तेवरों और बयानों ने भाजपा सरकार को भी कठघरे में ले लिया है। बयानों से लगता है कि मंत्री-विधायक सरकार से भी खफा दिखे, जेडीए की कार्यशैली को लेकर। जब उनकी सुनवाई नहीं हो रही थी तो उन्होंने सरकार तक बात पहुंचाई होगी, लेकिन उनके बयानों से लगता है कि वहां से भी उन्हें खास राहत नहीं मिल पाई। यहीं वजह है कि सभी विधायकों-मंत्रियों ने चुन-चुनकर जेडीए की निरंकुश कार्यशैली पर जमकर बरसे। सूत्रों का कहना है कि सभी के टारगेट पर तत्कालीन जेडीसी शिखर अग्रवाल रहे। वैसे भी शिखर अग्रवाल के कार्यकाल में मंत्री राजपाल सिंह शेखावत व उनके संबंध मधुर नहीं रहे। रिंगरोड, सर्किल हटाने, स्मार्ट सिटी, पृथ्वीराज नगर में नियमन शिविरों जैसे कई मुद्दे पर राजपाल सिंह और शिखर अग्रवाल के बीच तनातनी ही रही और सार्वजनिक तौर पर भी ये विवाद सामने आए। सरकार के बराबर की हैसियत रखने वाले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने भी बैठक में यह कहकर चौंका दिया कि दो साल में उनकी ही नहीं सुनी गई। ऐसे ही कुछ बयान केबिनेट मंत्री और जयपुर के कद्दावर नेता कालीचरण सराफ, मंत्री अरुण चतुर्वेदी और सांसद रामचरण बोहरा के थे। विधायक मोहन लाल गुप्ता, सुरेन्द्र पारीक ने भी कुछ इस तरह से अपनी पीडा बयां की। सभी ने एक-एक काम गिना-गिनाकर यूडीए मंत्री कृपलानी को बताए, जिन पर जेडीए ने अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया। इनके तीखे तेवरों से साफ संदेश है कि मंत्री-विधायक भी सरकार में हावी अफसरशाही से दुखी है। अफसरशाही से विवाद के कई मामले भाजपा-सरकार की बैठकों में भी विधायक-मंत्री उठा चुके हैं। मंत्री-विधायक इस बात से दुखी है कि काम नहीं होने से कार्यकर्ता-जनता नाराज हो रही है। पौने दो साल बाद विधानसभा चुनाव है। काम नहीं होंगे तो किस मुंह से जनता-कार्यकर्ताओं के बीच जाएंगे। मीडिया में मंत्री-विधायकों के बयान सामने आने से यह तो साफ हो गया कि तीन साल के जश्न कार्यक्रमों में भाजपा सरकार ने विकास के जो बडे-बड़े दावे किए, उन सभी दावों की हवा मंत्री-विधायकों के बयानों ने निकाल दी है। सरकार में अंदरखाने ठीक नहीं चल रहा है। वैसे भी सूबे में रह-रहकर विधायकों-कार्यकर्ताओं के काम नहीं होने के संबंध में उनके विद्रोही बयान सामने आते रहते हैं। हाल ही भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी प्रदेश प्रभारी वी.सतीश ने विधायकों-कार्यकर्ताओं की इसी मन-स्थिति और शिकायतों को भांपकर निर्देश दिए थे कि सरकार और मंत्री कार्यकर्ताओं की सुने। सरकार में अफसरशाही हावी देख उन्होंने मंत्रियों के निजी सचिवों से भी बैठक की बात कही थी। खैर जेडीए रीजन में विकास मुद्दों को लेकर आहूत इस बैठक ने सत्ता और संगठन की असलियत सामने लाकर रख दी है। मंत्री-विधायकों ने साफ संदेश दे दिया है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है। अब सरकार की बारी है कि वे किस तरह से अफसरशाही को कंट्रोल में करती है और अपने ही जनप्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं को सम्मान दिलाने के लिए ठोस फैसले लेकर राहत दिलाती है। सीधे तौर पर सरकार को संदेश है कि अफसरों की कार्यशैली सुधारी जाए, अन्यथा जयपुर की तर्ज पर दूसरे जिलों में भी ऐसे ही तीखे तेवर और बयान सामने आ सकते हैं।

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