PM Narendra Modi
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jaipur. मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। हमारा देश, इन दिनों एक तरफ वर्षा का आनंद ले रहा है, तो दूसरी तरफ, हिंदुस्तान के हर कोने में किसी ना किसी प्रकार से, उत्सव और मेले, दीवाली तक, सब-कुछ यही चलता है और शायद हमारे पूर्वजों ने, ऋतु चक्र, अर्थ चक्र और समाज जीवन की व्यवस्था को बखूबी इस प्रकार से ढाला है कि किसी भी परिस्थिति में, समाज में, कभी भी lullness  ना आये। पिछले दिनों हम लोगों ने कई उत्सव मनाये। कल, हिन्दुस्तान भर में कृष्ण जन्म-महोत्सव मनाया गया। कोई कल्पना कर सकता है कि कैसा व्यक्तित्व होगा, कि, आज हजारों साल के बाद भी, हर उत्सव, नयापन लेकर के आता है, नयी प्रेरणा लेकर के आता है, नयी ऊर्जा लेकर के आता है और हजारों साल पुराना जीवन ऐसा, कि जो आज भी समस्याओं के समाधान के लिए, उदाहरण दे सकता हो, प्रेरणा दे सकता हो, हर कोई व्यक्ति, कृष्ण के जीवन में से, वर्तमान की समस्याओं का समाधान ढूंढ सकता है। इतना सामर्थ्य होने बावजूद भी कभी वो रास में रम जाते थे, तो कभी, गायों के बीच तो कभी ग्वालों के बीच, कभी खेल-कूद करना, तो कभी बांसुरी बजाना, ना जाने विविधताओं से भरा ये व्यक्तित्व, अप्रतिम सामर्थ्य का धनी, लेकिन, समाज-शक्ति को समर्पित, लोक-शक्ति को समर्पित, लोक-संग्राहक के रूप में, नये कीर्तिमान को स्थापित करने वाला व्यक्तित्व। मित्रता कैसी हो, तो, सुदामा वाली घटना कौन भूल सकता है और युद्ध भूमि में, इतनी सारी महानताओं के बावजूद भी, सारथी का काम स्वीकार कर लेना। कभी चट्टान उठाने का, कभी, भोजन के पत्तल उठाने का काम, यानी हर चीज में एक नयापन सा महसूस होता है और इसलिए, आज जब, मैं, आपसे बात कर रहा हूँ, तो, मैं, दो मोहन की तरफ, मेरा ध्यान जाता है। एक सुदर्शन चक्रधारी मोहन, तो दूसरे चरखाधारी मोहन। सुदर्शन  चक्रधारी मोहन यमुना के तट को छोड़कर के, गुजरात में समुन्द्र के तट पर जा करके, द्वारिका की नगरी में स्थिर हुए और समुन्द्र के तट पर पैदा हुए मोहन, यमुना के तट पर आकर के, दिल्ली में, जीवन के, आखिरी सांस लेते हैं। सुदर्शन चक्रधारी मोहन ने उस समय की स्थितियों में, हजारों साल पहले भी, युद्ध को टालने के लिए, संघर्ष को टालने के लिए, अपनी बुद्धि का, अपने कर्तव्य का, अपने सामर्थ्य का, अपने चिंतन का भरसक उपयोग किया था और चरखाधारी मोहन ने भी तो एक ऐसा रास्ता चुना, स्वतंत्रता के लिए, मानवीय मूल्यों के जतन के लिए, व्यक्तित्व के मूल तत्वों को सामर्थ्य दे – इसके लिए आजादी के जंग को एक ऐसा रूप दिया, ऐसा मोड़ दिया जो पूरे विश्व के लिए अजूबा है, आज भी अजूबा है। निस्वार्थ सेवा का महत्व हो, ज्ञान का महत्व हो या फिर जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव के बीच मुस्कुराते हुए आगे बढ़ने का महत्व हो, ये हम, भगवान कृष्ण के सन्देश से सीख सकते हैं और इसीलिये तो श्रीकृष्ण, जगतगुरु के रूप में भी जाने गए हैं – “कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम”।

 

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