RSS
राजस्थान के ये वाद्ययंत्र आपको कर देंगे मोहित, देखना है केशव विद्यापीठ आएं
जयपुर। धरती धोरां री के नाम से मशहूर राजस्थान के लोक संस्कृति और संगीत के प्रतीक परम्परागत वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी आज शुक्रवार से जामडोली में केशव विद्यापीठ में शुरु हुई। इस प्रदर्शन में राजस्थान के एक सौ आठ वाद्य यंत्रों को सजाया गया है। हर छोटे-बड़े वाद्ययंत्र यहां देखे जा सकते हैं। चाहे वे राजस्थान के ख्यातनाम कलाकारों से जुड़े वाद्य-नाद हो या आदिवासियों के वाद्य यंत्र, यहां बहुत से सुंदर तरीके से सजाए गए हैं। उन यंत्रों का संक्षिप्त इतिहास दर्शाया गया है। वाद्य यंत्रों को लेकर लोगों में उत्साह रहा। सैकड़ों लोग यंत्रों को देख मंत्र मुग्ध हो गए। यह प्रदर्शनी दो दिन तक चलेगी। तीसरे दिन पांच दिसम्बर को वैशाली नगर में घोष वादकों का पथ संचलन होगा, जो छह किलोमीटर लम्बा होगा। प्रदर्शनी में सारंगी, तबले, हारमोनियम, बांसुरी,खरताल, अलगोजा समेत दूसरे वाद्य यंत्र हैं।
शिविर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत, अखिल भारतीय सह-शारीरिक प्रमुख जगदीश चंद्र एवं अखिल भारतीय अधिकारी रामचंद्र भी रहेगें। संघ के रमेश चन्द्र अग्रवाल ने बताया कि इस घोष स्थल को राजस्थानी रंग में सजाया है। व्यवस्थाओं के स्थल को ठिकाणा गोविन्द देव नाम दिया है। घोष वादक स्वयंसेवकों के आवासों को सम्बधित जिले के वाद्ययंत्रों का नाम दिया है, जिसमें शेखावाटी क्षेत्र के सीकर, झुंझुनू एवं चूरू जिले से आने वाले वादक स्वयंसेवकों के आवास परिसर को ढाणी चंग, जयपुर के स्वयंसवकों के आवास को मोरचंग ढाणी और भरतपुर, अलवर के स्वयंसेवको के आवास को ढाणी इकतारा नाम दिया गया है। इसी तरह अलगोजा, खरताल आदि वाद्य यंत्रों के नाम से नामकरण किया है। सरसंघचालक के आवास को बाबोसा रो ठिकाणों, भोजनालय का रसोड़ा, जल-घर को पनघट, मैदान को घोष रमण, स्मृति मन्दिर को सुहावणा दरसन, बौद्धिक पांडाल को ग्यान गोठ का नाम दिया है। वहीं फ्लैक्स के स्थान पर टाट पट्टी को मिट्टी एवं गोबर का लेप कर उस पर चूने से लेखन किया गया है। बैकड्रॉप के स्थान पर सूखी लकड़ी की फ्रेम और नाम पट्टिकाओं का प्रयोग हो रहा है।

LEAVE A REPLY