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चिŸाौड़गढ़। नाम जीव और षिव के बीच की कड़ी है। नाम साधन है और साध्य भी है। नाम हमारी वृŸिा और भगवान को जोड़ने वाली षृंखला है। कलियुग में राम नाम ही बीज मंत्र है। हरि नाम में इतनी ताकत है कि भक्त का विनाष नही हो सकता है। उक्त उद्गार षहर के बून्दी रोड़ रामद्वारा परिसर में रविवार को राम चरित मानस पर प्रवचन करते हुए युवा संत दिग्विजय राम जी महाराज ने व्यासपीठ से व्यक्त किये।

षहर के देहली गेट स्थित रामद्वारा परिसर में आयोजित चातुर्मास सत्संग के दूसरे दिन ही रामद्वारा परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजनों की मौजुदगी के बीच रविवार को रामचरित मानस के सन्दर्भ में संतश्री ने कहा कि रामचरित मानस आध्यात्मिक ग्रन्थ ही बल्कि कल्याणकारी काव्य भी है। रविवार को संतश्री ने रामचरित मानस के बारें में बताते हुए कहा कि जीवन में प्रतिक्षा और धैर्य हमें बहुत कुछ दिला देते है। सत्संग के बिना विवेक नही होता है और श्रीराम की कृपा के बिना वह सत्संग सहज मिलता नही है। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। जैसे हमारा अपनापन हमारे नाम से है, वैसे ही भगवान की भगवत् सŸाा उसके नाम में है। हम आज जो नाम जपते है वही नाम अंत तक बना रहता है। पानी जैसे षरीर के लिए जीवन है वैसे ही नाम मन के लिए जीवन बन जाना चाहिए। युवा संत श्री दिग्विजय राम जी महाराज ने कहा कि यदि सही कहा जाए तो जैसे सांस रूकती है और आदमी की मृत्यु होती है वैसे ही नामस्मरण के सिवाय जीवन मृत्यु सा लगना चाहिए। नामस्मरण कभी भी पूर्ण नही होता है। नाम स्मरण के कारण भगवान की समीपता प्राप्त होती है। समझदार व्यक्ति को अकारण विकल्पों के बारें में सोचना नही चाहिए और सीधे नामस्मरण प्रारंभ कर देना चाहिए। संतश्री ने कहा कि नामस्मरण ही षंकाएं मिटाएगा और धीरे धीरे विकल्पों को भी रोकेगा। राम नाम जपने का उद्देष्य स्थूल से सूक्ष्म के पार जाना है। अहंकार का त्याग कर परमात्मा में तन्मय हो जाना चाहिए।

युवा संत श्री दिग्विजय राम जी महाराज ने प्रवचन के दौरान बताया कि जो नामस्मरण करेगा और भगवान का ध्यान रखेगा, उसके भगवत् प्राप्ति की जिज्ञासा अपने आप निर्माण होगी। भगवान का नाम ही वास्तव में सच्चिनादंन स्वरूप सद्वस्तु है। नाम सत्कर्म की नींव है और चोटी भी है। नाम से जिसे प्रेम हो जाता है उसका सर्वाधार स्वयं भगवान बन जाता है यह ध्रुव सत्य है। भगवान का रूप आनंदमय है और उसकी समीपता नामस्मरण के कारण प्राप्त होती है। उसकी कृपा होने में देरी नही लगती है। भगवान और उसका नाम एकरूप होने के कारण इन दोनों के बीच में कोई बाधा आ ही नही सकती। नामस्मरण के कारण कलि की सŸाा नश्ट होती है। नामस्मरण के कारण षरीर पुण्यमय बनता है। नामस्मरण एक मात्र ऐसा साधन है जो सभी समय, सभी स्थानों में सभी अवस्थाओं में कर सकते है। भगवान का नामस्मरण करने की आदत लग गई तो दुःख की तीव्रता कम हो जाती है। भगवान का नामस्मरण प्रमुख है। अखण्ड नामस्मरण के लिए पवित्र और पवित्र की भावना का बंधन नही होता। अखण्ड नामस्मरण ही पवित्रता है। नामस्मरण को महत्व देकर उसे निरंतर लेते रहने का प्रयास करना चाहिए, उसका अभ्यास बढ़ाना चाहिए। किसी भी प्रकार की आपŸिा आने पर भी नामस्मरण करना छोडना नही चाहिए। इस मौके पर रामस्नेही संत श्री रमताराम जी महाराज भी व्यासपीठ के निकट विराजित रहे।

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