जयपुर। जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों राजपूताना राइफल्स में लेफ्टिनेंट उमर फयाज को उसके घर व घरवालों के सामने से ही हथियारबंद आतंकियों ने अपहरण किया और दूसरे दिन उसकी बेरहमी से हत्या कर बाजार में फैंक गए। उसके जनाजे में आतंकियोंं ने पथराव किया और गोलियां चलाई। हालांकि जनाजे में आए लोग डरे नहीं, बल्कि देश के इस वीर सपूत को पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उमर की शहादत के बाद उसके शुभचिंतकों, परिजनों और दोस्तों ने उसकी स्मृति में एक वीडियो तैयार किया है, ताकि उसकी कुर्बानी हमेशा जिंदा रहे। यह वीडियो कश्मीर की वादियों के साथ पूरे देश में जोश फैला रहा है। वीडियो में उमर फयाज कह रहा है कि मैंने जिनकी हिफाजत की कसमें खाई, उन्होंने ही मेरा कत्ल कर डाला। आतंक और आतंकवाद को कश्मीर व कश्मीरियत के खिलाफ बताते हुए संदेश दे रहे हैं कि कश्मीरियों को तय करना होगा, यहां कायर रहेंगे या दिलेर। बुरहान वानी रहेगा या उमर फयाज हिन्दुस्तानी…. उमर फयाज की जुबानी, पढ़े-देखे वीडियो……

मैं उमर फ याज बोल रहा हूं……..
मैं उमर फ याज हूं, मेरे वालिद एक किसान हैं। मैं उनका इकलौता बेटा। मेरा शौक हॉकी खेलना, अभी 8 जून को मैं 23 पार करने वाला हूं। ये मेरी मां जमीला है. पर ये रो क्यों रही है? क्योंकि मैं अब जिंदा नहीं हूं। मेरा कसूर क्या था, बस इतना भर कि मैं कश्मीरी होकर भी हिंदुस्तानी था. मेरी ममेरी बहन की शादी होनी थी। उसने कहा, शादी मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन हैं, तुम्हें आना ही होगा। इसलिए मैंने इंडियन आर्मी में भर्ती के बाद पहली बार छुट्टी ली थी। राजपुताना राइफ ल्स में बतौर लेफ्टिनेंट 10 दिसंबर को ही मेरी कमीशनिंग हुई थी। मेरे आने की खबर कश्मीर के दुश्मनों तक पहुंच गई। कुछ हथियारबंद नकाबपोश मेरी बहन के सामने ही मुझे खींच ले गए और अगले दिन गोलियों से छलनी मेरा शरीर शोपियां के हरमन चौक पर मिला। मेरी कातिल कौन थे? मेरे खून के दाग किसके दामन पर लगे? वो कौन थे, जो एक कश्मीरी और कश्मीरियत के दुश्मन थे? मेरी शहादत के जिम्मेदार ना पाकिस्तानी थे, ना हिंदुस्तानी, वो मेरे अपने कश्मीरी थे। जिनकी हिफ ाजत की कसमें खाई थीं, वो ही मेरे खूनी निकले। महज मेरे नहीं, ये पूरी घाटी के दुश्मन हैं। ये वो हैं जो कश्मीरियत को आगे नहीं बढ़ते देखना चाहते। फ ौज मेरे जैसे नौजवानों के ख्वाबों की ताबीर कर रही है। घाटी के बाशिंदे डरेंगे नहीं, क्योंकि वो जानते हैं कि डर के आगे जीत है। कश्मीरियत की जीत। ये एक फैयाज की बात नहीं। ये घाटी फैयाजों की टोली है। अमनोचमन के लिए मैंने तो अपनी कुर्बानी दे दी। अब तय कश्मीरियों को करना है कि घाटी में किलकारियां गूंजें या बंदूकें। हाथों में पत्थर हों या गुलाबी सेब। डोलियां उठें या जनाजे निकलें। घाटी जन्नत बने या जहन्नुम। तय करना होगा यहां कायर रहेंगे या दिलेर। बुरहान वानी रहेगा या उमर फ याज हिंदुस्तानी.

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