kaangres ne seebeeaee ke daayarektar aalok varma ko chhuttee par bhejane ke maamale mein supreem kort mein yaachika daakhil kar dee hai. raaphel deel maamale mein aalok varma ko chhuttee par bheje jaane kee atakalen hai

– सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ निजी चैनल के कार्यक्रम में शामिल होते हुए कहा कि सोशल मीडिया सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। न्यायपालिका, लोकतंत्र , लाइव स्ट्रीमिंग सहित कई मुद्दों में अपनी राय रखी।
नई दिल्ली. देश के मुख्य न्यायधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ निजी चैनल के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 70 सालों में हमने अगिनत संस्कृति विकसित की है। इसमें से एक है अविश्वास की संस्कृति है, जो हमारे अधिकारियों को निर्णय नहीं लेने देती है। इसका एक कारण यह है कि न्यायालय के पास मामलों का बैकलॉग है। अविश्वास की संस्कृति है जो हमारे अधिकारियों को निर्णय नहीं लेने के लिए मजबूर करती है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। अक्सर नीति और वैधता के दायरे में क्या अंतर है। इसके बारे में अंतर करना बहुत आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश के द्वारा कही गई हर बात अंतिम नहीं होती है। न्यायपालिका की ढांचागत जरूरतों को पूरा करने की जरूरत है। हमारे देश की कुछ अदालतों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं है, जो न्यायपालिका के सामने कठोर वास्तविकता है। हमने ई-कोर्ट सर्विस को कॉमन सर्विस सेंटर्स के साथ मर्ज करने की कोशिश की है ताकि जो सर्विस हम नागरिकों को प्रदान करते हैं वह भारत के हर ग्राम पंचायत तक पहुंच सकें।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि करुणा और सहानुभूति की भावना अनसुनी व अनदेखी आवाज सुनने की क्षमता प्रणाली को बनाए रखती है। यह भावना सुनिश्चित करने की कुंजी है कि कानून उत्पीड़न का एक साधन न बने। इसे उन सभी लोगों को देखना चाहिए जो कानून को संभालते हैं, न कि केवल न्यायाधीशों को। पूरे भारत में कानूनी पेशे की संरचना सामंती है। हमें अब कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए पहुंच बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जब हमने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए केसों की सुनवाई शुरू की है तो कई महिला वकील सामने आई हैं। लाइव स्ट्रीमिंग ने महिला वकीलों को इस पेशे में आने की अनुमति दी है।

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