– राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। जयपुर  के आराध्य श्री गोविन्ददेव जी की तरह मोतीडूंगरी के गणेश जी महाराज का मंदिर भी लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। यहां स्थापित प्राचीन गणेश प्रतिमा चमत्कारिक मानी जाती है। जयपुर ही नहीं प्रदेशभर से भक्त गणेश जी महाराज के दर्शनार्थ आते हैं। शहर की मुख्य सड़क जवाहर लाल नेहरु मार्ग पर मोतीडूंगरी दुर्ग की तलहटी पर भगवान गणेश जी का मंदिर है। इसी के पास पूर्णतया संगमरमर से निर्मित व कलात्मक शैली का लक्ष्मीनारायण का मंदिर (बिडला मंदिर) भी आस्था और आकर्षण का केन्द्र है। बुधवार को तो हजारों भक्त सुबह से रात तक दर्शनार्थ आते रहते हैं। गणेश चतुर्थी पर भक्तों का मेला लग जाता है। लाखों भक्त लम्बी-लाइनों में लगकर भगवान के दर्शन करके खुद को धन्य पाते हैं। गणेश मंदिर के पास ही हनुमानजी, मां दुर्गा और शिव-परिवार का भी भव्य मंदिर है। बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी भी गणेश मंदिर व बिडला मंदिर देखने पहुंचते हैं।

तांत्रिक विधि-विधान से स्थापना

प्रदेशवासियों की आस्था का केन्द्र गणेश जी महाराज की प्रतिमा काफी प्राचीन और चमत्कारिक है। इस प्रतिमा को जयपुर राजघराने के राजा सवाई माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर (मावली, उदयपुर) से लाई गई थी। मावली में यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी। बताया जाता है कि ईस्वी सन 1761 में महारानी ने अपने पीहर से यह गणेश प्रतिमा मंगवाई। उस समय प्रतिमा की आयु पांच सौ वर्ष बताई जाती थी। सेठ जय राम पालीवाल यह प्रतिमा लेकर जयपुर आए थे और उनकी निगरानी में ही मोतीडूंगरी दुर्ग के नीचे तलहटी में गणेशजी महाराज का छोटा सा भव्य मंदिर बनाया गया। सवाई राजा माधोसिंह गणेश व उनकी पटरानी यहां पूजा-अर्चना करने आते थे। मंदिर में गणेश प्रतिमा की स्थापना पूरे तांत्रिक अनुष्ठान से की गई थी। यहां की गणेश प्रतिमा प्रदेश के सभी गणेश मंदिरों में सबसे बड़ी बताई जाती है। इस प्रतिमा के पीछे शुभ-लाभ व आगे रिद्धी-सिद्धी अंकित है। यहां की मुख्य विशेषता गणेश जी की प्रतिमा का बायीं ओर वक्राकार होना है। मंदिर में पूजा अर्चना का कार्यक्रम तड़के से ही शुरु होकर रात्रि शयन काल तक चलता है। प्रतिदिन सात आरतियां होती है। सुबह पांच बजे मंगला आरती से इसका शुभारंभ होता है। प्रात 9.30 बजे गणेशजी प्रतिमा का श्रृंगार कर आरती की जाती है। मंगला आरती व श्रृंगार के बीच में भोग लगाया जाता है। सायंकाल सूर्यास्त के समय संध्या आरती होती है। जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल होते हैं। रात्रि 9.30 बजे शयन आरती कर मंदिर के कपाट मंगल कर दिए जाते हैं। दिन में तीन बार भगवान को भोग लगाया जाता है। सुबह मंूग के लड्डूओं का भोग लगता है। फिर दिन में चूरमा, दाल, सब्जी, चपाती का और रात्रि में सब्जी व पूडी का भोग लगता है।  सप्ताह में एक दिन प्रति बुधवार को दाल, बाटी व चूरमा का भोग लगता है। गणेशजी महाराज को लगने वाला भोग देशी घी से बनता है और यह भोग मंदिर की रसोई में ही बनता है। प्रसाद भी देशी घी में बने व्यंजनों का लगता है। बहुत से भक्त विवाह एवं अन्य शुभ आयोजनों के दौरान रसोई मेंं बने व्यंजनों का पहला भोग भगवान को लगाते हैं। हजारों भक्त रोजाना दर्शन को आते हैं। बुधवार को तो यह संख्या चालीस-पचास हजार को पार कर जाती है। गणेश चर्तुथी पर लाखों भक्त दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। सुबह से देर रात तक लम्बी लाइनें लगती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से भी हजारों लोग आते हैं। इस उपलक्ष में मेला भी लगता है। गणेश चतुर्थी पर एक सप्ताह तक धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं। गणेश जी की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार होता है। प्रतिमा को सिंदूर का चोला लगाया जाता है और हीरों से जडि़त सोने-चांदी का मृकुट पहनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन शाम को गणेशजी की भव्य शोभायात्रा शहर में निकाली जाती है, जो जयपुर के सबसे प्राचीन गढ़-गणेश मंदिर तक जाकर इसे विराम दिया जाता है। गणेश चतुर्थी पर मोदकों की झांकी लगाई जाती है, जिसके दर्शन के लिए लाखों भक्त आते हैं। भक्तों को नि:शुल्क प्रसाद भी दिया जाता है। मंदिर में सिंजारा महोत्सव के दौरान प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जाता है और सिंजारे की मेहन्दी धारण करवाई जाती है। इस मौके पर भगवान को नोलड़ी का नौलखा हार, मोती-पन्ना व माणक, सोने-चांदी से विशेश श्रृंगार होता है। गणेश चतुर्थी के अलावा प्रत्येक बुधवार को मेला भी लगता है। वहीं हर माह अभिषेक समारोह एवं पुष्य नक्षत्र के दिन पंचामृत से गणपति का अभिषेक होता है। विवाह समेत अन्य काज शुभ हो और भगवान का आशीर्वाद रहे, इसके लिए भगवान गणेश जी महाराज को न्यौता दिया जाता है। जयपुर में शायद ही ऐसा कोई हो, जो अपने पुत्र-पुत्री के विवाह के मौके पर गणेशजी महाराज को न्यौते नहीं, वो भी चूरमा बाटी और पूडी-हलुवा के भोग के साथ। वाहन खरीदने वाले भी पहले यहां आकर पूजा करवाते हैं। उसके बाद ही वाहन को घर लेकर जाते हैं। यहीं नहीं गणेश जी महाराज के नाम से रोज सैकड़ों पत्र भक्तों के आते हैं। इनमें वैसे तो अधिकांश विवाह, सवामणी व अन्य शुभ आयोजनों के होते हैं। हालांकि कई ऐसे मनौती के पत्र भी आते हैं, जिनमें भक्त अपनी इच्छाओं का वर्णन करके उसके पूरा होने का आशीर्वाद मांगते हैं और काज पूरा होने पर सवामणी, भोग-प्रसाद, चोला चढ़ाने की मनौती भी लेते हैं। खास बात यह है कि यहां आने वाले हर आमंत्रण और मनौती पत्र को भगवान की प्रतिमा के सामने पढ़ा जाता है और भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना की जाती है।

 

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