-राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड कंटेम मैटर में आज सोमवार को अपना फैसला सुनाया। फैसले में भले ही सम्मानीय कोर्ट ने मीडिया संस्थानों के खिलाफ कंटेम नहीं मानी हो, लेकिन मजीठिया वेजबोर्ड के विवादित बिन्दुओं की स्पष्ट व्याख्या करके एक तरह से लम्बे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों और गैर पत्रकारों को राहत दी है। मीडिया संस्थानों ने मजीठिया वेजबोर्ड की जिन धाराओं की गलत व्याख्या (20जे, बेरिबल पे समेत अन्य भत्ते) कर पत्रकारों व गैर पत्रकारों को पैसा देने से बचते रहे हैं, उनके बारे में सुप्रीम कोर्ट के सम्मानीय न्यायाधीश रंजन गोगोई व जस्टिस नवीन सिंहा ने स्पष्ट तौर पर अपनी राय रखी है।

जो मीडियाकर्मियों के पक्ष में है। इस फैसले से आगे की कानूनी लड़ाई में लेबर कोर्ट सुप्रीम कोर्ट की कानूनी राय से बंधे रहेंगे। उसके बाहर अब लेबर कोर्ट नहीं जा सकेंगे। वैसे कंटेम के इस मामले को समझने के लिए कुछ कानूनी पहलुओं को समझना जरुरी है। पहला अवमानना याचिका में सिर्फ उस मूल आदेश के ऑपरेटिव प्रोर्शन को ना मानना का मामला चलाया जा सकता है। तीन जजेज के मूल आदेश के बाहर के कोई बिन्दु अवमानना याचिका की सुनवाई में नहीं उठाए जा सकते हैं। तब मूल आदेश में 20जे, बेरिबल पे समेत अन्य विवादित बिन्दु शामिल थे। ये बिन्दु बाद में तब सामने आए, जब मीडिया संस्थानों ने मीडियाकर्मियों को वेजबोर्ड के तहत पैसा नहीं दिया। अवमानना याचिका में जानबूझकर अवमानना सिद्ध होना जरुरी है।

7 फरवरी 2014 के आदेश में 20जे व दूसरे विवादित बिन्दु शामिल थे। जिनके चलते मीडिया संस्थान कर्मचारियों को पैसा देने से बच रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने लम्बी सुनवाई के दौरान यह तो समझ लिया था कि मीडिया संस्थानों ने किसी भी कर्मचारी को मजीठिया वेजबोर्ड के तहत बढ़ा हुआ वेतनमान और एरियर नहीं दिया है। लेकिन उसके समक्ष यह चुनौती भी थी कि कानूनी सीमाओं में रहते हुए वह मीडियाकर्मियों को राहत कैसे दें। सुनवाई में आए कानूनी दृष्टांतों व एक्ट के तहत मीडियाकर्मियों को वेजबोर्ड का हक दिलाने के लिए एक गली निकाली है। सीधा आदेश देने के बजाय कोर्ट ने अपने आदेश में वेजबोर्ड के अधिकांश विवादित बिन्दुओं की सही तरीके से परिभाषित कर दिया और मीडियाकर्मियों के विवादों के निस्तारण की जिम्मेदारी लेबर कोर्ट को दी। यहां पर यह भी समझना जरुरी है कि मूल आदेश में इन विवादित बिन्दुओं के नहीं होने से वह अपने आदेश में इन बिन्दुओं पर कोई फैसला नहीं दे सकता था।
– ऐसे काम आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड का पैसा दिलाने के लिए लेबर कोर्ट को जिम्मेदारी दी है। लेबर और इंडस्ट्रियल एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि छह महीने में श्रमिकों के मामले का निस्तारण किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मीडियाकर्मियों को लेबर कोर्ट में बेजबोर्ड लेने के लिए रिकवरी दावे लगाने होंगे। हालांकि राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में पहले से ही मीडियाकर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट में कंटेम याचिकाओं के साथ लेबर कोर्ट में भी वसूली के परिवाद दाखिल कर रखे हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश में तो राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर के पत्रकार व गैर पत्रकारों के मामले लेबर कमिश्नर से सुनवाई के बाद लेबर कोर्ट में करीब आठ-नौ महीने ही आ चुके हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के विवादित बिन्दुओं के संबंध में स्पष्ट व्याख्या कर देने से मीडिया संस्थान लेबर कोर्ट को गुमराह नहीं कर सकेंगे और कोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट की राय के बाहर नहीं जा सकेंगी। एक तरह से लेबर कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने मीडियाकर्मियों को हक दिलाने की जिम्मेदारी सौंप दी है। मीडिया संस्थान विवादित बिन्दुओं को ढाल बनाकर पैसा देने से बचते रहे, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश से मीडिया संस्थान पैसा देने से बच नहीं सकेंगे। जिस तरह से मीडियाकर्मियों ने एकजुट होकर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती है। उस आदेश के साथ लेबर कोर्ट में भी पूरी एकजुटता के साथ अपने हक के लिए लड़ेगी।

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