In corruption cases such as Panama paper will be up until the end when Modi Govt Swaraj India

दिल्ली। 2014 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर सत्ता में आई भाजपा आज अपने ही मूल वादे से मुकर चुकी है। मोदी सरकार ने पनामा पेपर और ऐसे कई भ्रष्टाचार के मामलों में चुप्पी साध ली है। दुनिया भर में जिस पनामा पेपर के आधार पर पकडे़ गये लोगों पर कार्यवाई हो रही है, वहीं हमारे देश में ‘ज़ीरो टॉलरेंस ऑन करप्शन’ की बात करने वाली मोदी सरकार भ्रष्टाचार के ऐसे संगीन मामलों पर चुप्पी साधे बैठी है। स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेश यादव व मीडिया सेल के प्रभारी आशुतोष की ओर से जारी बयान में कहा कि पनामा पेपर्स में भारत में कई मशहूर हस्तियों के नाम आये हैं। अमिताभ बच्चन का नाम पनामा पेपर्स में आया है लेकिन सरकार टैक्स चोरी के इस मामले की जाँच करने की बजाए उनको जीएसटी का प्रचारक बना रही है। इन पेपर्स में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के बेटे और बीजेपी सांसद अभिषेक सिंह का भी नाम है, गौतम अदानी के भाई, डीएलएफ़ चेयरमैन के पी सिंह जैसे कई लोगों के नाम हैं।

ज्ञात हो कि रमण सिंह के बेटे का नाम अगस्ता वेस्टलैंड मामले में भी आया था। इस पूरे मामले को उजागर करते हुए प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने प्रेस काँफ्रेंस करके सारे दस्तावेज़ पेश किये थे। अगस्ता A-109 हेलीकॉप्टर में हुए घोटाले की जाँच को लेकर सितंबर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता और एंटी-करप्शन क्रूसेडर प्रशांत भूषण की याचिका पर अबतक छः अलग-अलग तारीख में जस्टिस दीपक मिश्रा व् अन्य की बेंच ने सुनवाई की है। ‘ज़ीरो टॉलेरेंस ऑन करप्शन’ भी मोदी सरकार का जुमला ही साबित हो रहा है। भ्रष्टाचार के संगीन मामलों में ग़ज़ब की चुप्पी है। किसी भी मामले में कोई जाँच नहीं, सिर्फ मामले को दबाने की कोशिश है।
मोदी सरकार ने कालाधन रोकने के नाम पर नोटबंदी किया जिसका कुप्रभाव देश आज भी झेल रहा है। लेकिन उससे कितना कालाधन आया ये बताना तो दूर, सरकार को यही नहीं पता कि नोटबंदी से कितने नोट आये। इस सरकार ने मौजूदा भ्रष्टाचार-निरोधक संवैधानिक संस्थाओं को भी कमज़ोर करने का काम किया है। लोकपाल कानून बनने के कई साल बाद भी मोदी सरकार आज तक लोकपाल नियुक्त नहीं कर पायी है। भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ लड़ाई में यह सरकार निकम्मी साबित हुई है।
स्वराज इंडिया माँग करती है कि पनामा पेपर्स में जिन लोगों के नाम आए हैं उनपर लगे आरोपों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच हो। साथ ही, अगस्ता वेस्टलैंड, सहारा बिड़ला डायरी जैसे कई मामलों में हुए भ्रष्टाचार की भी स्वतंत्र जाँच की जाए। ‘ज़ीरो टॉलेरेंस ऑन करप्शन’ सिर्फ जुमला नहीं रहे, भ्रष्टाचार का राजनैतिक और संस्थागत समाधान निकले।

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