जयपुर। राजस्थान के सरिस्का समेत अन्य राज्यों के कई बाघ परियोजना क्षेत्रों में बाघों के सफाए के बाद आई जागरूकता का असर नजर आने लगा है। यह असर केवल राजस्थान या भारत में नहीं बल्कि समूची दुनिया में दिखलाई दे रहा है। इस त्रासदी के बाद के बाद अंतराष्ट्रीय स्तर पर बाघ संरक्षण के लिए एक नई सोच विकसित हुई और कई कदम उठाए गए। शिकारियों पर शिकंजा कसा गया। बाघ विहिन हुए परियोजना क्षेत्रों में बाघों का पुनर्वास किया गया। नतीजा यह रहा कि बाघों की संख्या में इजाफा हुआ जो बाघ संरक्षण की दिशा में एक अच्छा संकेत है लेकिन, अभी भी बाघ संरक्षण की बजाय पर्यटन हावी हो रहा है और बाघ संरक्षण इलाकों में प्रबंधन ढुलमुल है। इन हालातों पर काबू  नहीं किया गया तो स्थिति वर्ष 2004-05 जैसी हो सकती है। वन विभाग के अफसरों की लापरवाही और शिकारियों के बुलन्द हौसलों के कारण वर्ष 2004-05 में सरिस्का बाघ विहिन हो गया था। प्रदेश के दूसरे बाघ परियोजना क्षेत्र रणथंभौर में भी बाघों की संख्या में भी जबरदस्त कमी आ गई। उस समय केवल 26 बाघ रणथंभौर में होने का दावा वन विभाग ने किया था, हालांकि इस आंकड़े को लेकर भी संदेह है। अफसरों की लापरवाही का आलम यह था कि बाघ विहिन हो चुके सरिस्का में भी वे बाघ गिनाते रहे। यानि कई साल तक केवल कागजों में ही बाघों की संख्या गिनाई जा रही थी। मीडिय़ा में यह मामला उछला तो सरकार जागी और जांच हुई तो हकीकत सामने आई कि सरिस्का में एक भी बाघ नहीं है। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई।  स्टाफ की भर्ती हुई, निगरानी के लिए कैमरे लगे, बाघों के रेडियो कॉलर बांधा गया। शिकारियों की धरपकड़क की गई है। एक अन्य महत्वपूर्ण काम बाघ पुनर्वास का हुआ। 28 जून 2008 को रणथंभौर से एक बाघ सुल्तान को सरिस्का शिफ्ट किया गया। देश में हेलीकॉप्टर से बाघ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का यह पहला मामला था। इसके बाद तो अकेले सरिस्का में आठ बाघ-बाघिन हवाई मार्ग या सड़क मार्ग से ले जाकर पुनर्वासित चुके है। मध्य प्रदेश के पन्ना में भी बाघों की शिफ्टिंग हुई। सरिस्का में शिफ्टिंग के चार साल बाद कुनबा बढऩा शुरू हुआ और वर्तमान में वहां 14 बाघ है। रणथंभौर में भी कुनबा बढ़ा। वर्ष 2004-05 में वहां बाघों की संख्या 26 थी, जिसके अब 62 होने का अनुमान है। देश के अन्य राज्यों में स्थित बाघ परियोजना क्षेत्रों में भी बाघों की संख्या 10 साल में बढ़ी है। इससे पहले गिरावट का दौर चल रहा था। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक दस साल पहले भारत में बाघों की संख्या 1411 थी, जिसके अब करीब 2300 होने का अनुमान है। इसी तरह दुनिया में देशभर में इस सदी के शुरूआत में तीन हजार बाघ बचे थे, जबकि वर्तमान में यह संख्या साढ़े चार हजार होने का अनुमान है।

-ढिलाई होते ही बढ़े शिकार

सरिस्का में बाघों के सफाए की  खबरों के बाद केन्द्र और राज्य सरकार जागी। देशभर में धरपकड़ हुई और कुख्यात संसार चन्द समेत कई तस्कार गिरफ्त में आए जिससे बाघों के शिकार पर बहुत कुछ हद तक अंकुश लगा था लेकिन, अब ढुलमुल नीतियों के चलते शिकार की घटनाएं बढ़ रही है। पिछले साल यानि की 2015 में 69 बाघों की मौत देशभर में हुई। जबकि इस साल पहले छह महीने में ही 59 बाघों की मौत हो चुकी है। इनमें आधिकांश मामले शिकार से जुड़े है। इसी तरह बाघ अंगों की बरामदगी के मामले में भी देश में बढ़े है। पिछले साल आठ मामले सामने आए थे जबकि इस साल जून तक 15 मामले सामने आ चुके है। राजस्थान में भी इस साल एक बाघ की मौत हुई थी जबकि इस साल छह महीने में तीन बाघ मर चुके है। इनमें एक बाघिन की मौत पिछले महीने प्राकृतिक कारणों से हुई है। कोर एरिया में बसे गांवों के पुनर्वास का काम भी सुस्त पड़ा है। राजनीतिक कारणों से रणथ्ंाभौर और सरिस्का में बसे गांव शिफ्ट नहीं किए जा रहे है। बाघ संरक्षण के लिए बनी कमेटियों ने इन गांवों को बाघों की सुरक्षा में खतरा माना है। जो सही भी है। क्योंकि बाघ शिकार के कई मामले ऐसे हैं जिनमें स्थानीय ग्रामीणों की लिप्तता पाई गई है। अपने पालतु पशुओं की सुरक्षा के लिए कुछ मामलों में ग्रामीणों ने ही  बाघ तथा अन्य वन्यजीवों को मार डाला।

-बदल गई अफसरों की सोच

दस साल में अफसरों की सोच भी बदल गई है। स्थिति यह है कि 10 साल पहले जब सरकार ने अफसरों पर कार्रवाई की तो वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग हो गए थे लेकिन, अब धीरे-धीरे लापरवाह होते जा रहे है। इसका नतीजा है कि रणथंभौर और सरिस्का में प्रबंधन बिगड़ रहा है। अवैध खनन, कटान और चराई की घटनाएं बढ़ रही है। वन विभाग का अमला रणथंभौर से लापता बाघों का पता लगाने में विफल साबित हो रहा है। होटल मालिकों की लॉबी के दबाव में अफसर फैसले ले रहे है। वन्यजीव संरक्षण की बजाय पर्यटन से कमाई प्रमुख लक्ष्य बन रहा है।

-बाघ की प्राइवेसी में दखल

इंटरनेशनल टाइगर डे 29 जुलाई को मनाया गया। दुनियाभर में टाइगर कंजर्वेशन के लिए बातें हुई। इसी दरम्यान राजस्थान में टाइगर के कंजर्वेशन के खिलाफ एक बड़ा कदम सरकारी स्तर पर उठाया गया और वह भी होटल मालिकों की लॉबी और पर्यटन माफिया के दबाव में। कमाई के लिए सरकार ने रणथंभौर नेशनल पार्क के क्रिटिकल टाइगर हैबिटाट में जोन संख्या छह से 10 तक के रूट्स को एक अगस्त से पर्यटन के लिए खोलने की घोषणा की है। और एक अगस्त को ये रूट्स खोल भी दिए हैं। असल में यह कदम टाइगर की प्राइवेसी में सीधा सीधा हस्तक्षेप है। जुलाई से सितम्बर तक मानसून सक्रिय रहता है और इस दौरान वन्यजीवों में प्रजनन काल भी रहता है। उनकी सुरक्षा और प्राइवेसी के लिए इन तीन महीनों में वन्यजीव अभयारण्यों में पर्यटकों का प्रवेश बन्द रहता है। ऐसे में बाघ परियोजना क्षेत्रों के आसपास स्थित होटलों का ऑफ सीजन रहता है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। लंबे समय से चल रही इस व्यवस्था को समाप्त करने के लिए होटल मालिक और पर्यटन माफिया सरकार पर इसे बन्द करने के लिए दबाव बनाए हुए थे। दूसरी तरफ शाही रेल पैलेस ऑन व्हिल्स तथा रॉयल राजस्थान ऑन व्हिल्स का भी फेरा भी इस दौरान रहता है। पार्क बन्द रहने से इस दौरान आने वाले सैलानी टाइगर सफारी से वंचित हो जाते है। जबकि पर्यटन विभाग शाही रेल के प्रचार-प्रसार में इसका खास तौर पर उल्लेख करता है। इसको लेकर पहले भी विवाद हो चुके हैं। इसे देखते हुए पर्यटन विभाग से भी वन विभाग को प्रस्ताव मिला था। जिसके आधार पर वन विभाग ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथरिटी से भी मंजूरी मांगी थी लेकिन, ऑथरिटी ने यह मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। अफसरों ने इसका बीच का रास्ता निकालते हुए रणथंभौर के आधे हिस्से में एक अगस्त से सफारी शुरू कर दी। इसको लेकर वन्यजीव प्रेमियों में खासा आक्रोश है और सॉशियल मीडिया के माध्यम से इन्होंने अपना रोष जाहिर किया है। उनका कहना है कि यह कदम बाघ की निजता में सीधा-सीधा दखल है और इससे वन्यजीव संरक्षण प्रभावित होगा। दूसरे यह कदम पर्यटकों के लिए भी सुरिक्षत नहीं है। इस दौरान सड़कें खराब होने से दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है।

– टोंक में बाघ की दहाड़ बजट में दबी

टोंक के आमली में बाघ की दहाड़ पर बजट में दब गई है। केन्द्र सरकार ने आमली में प्रस्तावित टाइगर सफारी प्रोजेक्ट के लिए पैसे की मदद से इनकार कर दिया है। राजस्थान सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए 115 करोड़ रूपए की मांग की थी। रणथंभौर टाइगर प्रोजेक्ट के बफर जोन में शामिल टोंक जिले की उनियारा तहसील के आमली फॉरेस्ट ब्लॉक में टाइगर सफारी डवलप करने का प्रोजेक्ट राज्य सरकार ने करीब सालभर पहले केन्द्र सरकार को भेजा था। जिसे केन्द्र सरकार ने बजट की कमी के चलते मंजूर नहीं किया है। हाल में लोकसभा में सांसद सुखबीर जौनपुरिया ने इस संबंध में सवाल पूछा था। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से इस संबंध में स्पष्ट किया है कि सरकार की ओर से टाइगर सफारी डलवप करने का प्रस्ताव मिला है लेकिन, बजट की वजह से राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। दरअसल राज्य सरकार ने रणथंभौर में ट्यूरिस्ट के प्रेशर का देखते हुए आमली में टाइगर सफारी शुरू करने का फैसला लिया है। यह फॉरेस्ट ब्लॉक रणथंभौर की सीमा पर है और इसे अब रणथंभौर टाइगर प्रोजेक्ट के बफर एरिया में भी शामिल कर लिया गया। प्लान के मुताबिक यहां पर रणथंभौर से तीन टाइगर शिफ्ट कर टाइगर सफारी शुरू करना है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों का मानना है कि इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से रणथंभौर में ट्यूरिस्ट का दबाव कम होगा साथ ही रणथंभौर के टागइर को भी नया एरिया मिलेगा। टाइगर पापुलेशन अधिक होने से रणथंभौर छोटा पडऩे लग गया है और टेरटरी को लेकर टाइगर्स में झगड़ा होने की आशंका बनी रहती है। सफारी डवलप होने से ट्यूरिस्ट के लिए टाइगर की साइटिंग भी आसान होगी तथा ट्यूरिज्म बढऩे से सरकार को भी रेवन्यू मिलेगी।

–  वाइल्ड लाइफ बोर्ड से मिल चुकी हैं मंजूरी

राज्य सरकार ने करीब सालभर पहले यह प्रोजेक्ट बनाया था। जनवरी 2015 में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अध्यक्षता में आयोजित राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया था। आमली फॉरेस्ट ब्लॉक 1300 हैक्टेयर का है जिसमें से 900 हैक्टेयर का एरिया टाइगर सफारी के लिए चिन्हित किया गया है। बाकी 400 हैैक्टेयर का एरिया यहां रणथंभौर टाइगर प्रोजेक्ट के कोर में बसे मोहम्मदपुरा गांव के विस्थापितों को बसाया जाना था।

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