Judicial-Activism

नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका एक ही परिवार का हिस्सा हैं और एक-दूसरे को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए। वहीं प्रधान न्यायाधीश और कानून मंत्री के बीच न्यायिक सक्रियता के मुद्दे पर बहस हो गई। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि तीनों अंग — विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका को इस बात पर माथापच्ची करनी चाहिए कि बदले परिदृश्य में कैसे आगे बढ़ें।

राष्ट्रीय कानून दिवस पर आयोजित समारोह में न्यायाधीशों और वकीलों की सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘वे एक ही परिवार के सदस्य हैं… हमें किसी को सही या गलत साबित नहीं करना है। हम अपनी ताकत के बारे में जानते हैं, हम अपनी कमियों को भी जानते हैं।’’ मोदी ने कहा कि अधिकारों के लिए लड़ते समय हमें अपने कर्तव्यों के बारे में नहीं भूलना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका संविधान की रीढ़ हैं और आपातकाल के समय इसी से देश को सहयोग मिला। मोदी ने किसी भी संस्थान के ठीक से संचालित होने के लिए आत्म नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था पर जोर दिया और बी आर अंबेडकर को उद्धृत किया कि किसी भी प्राधिकार के लिए सीमा होनी चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा सभा को संबोधित करने से पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के बंटवारे की याद दिलाई।

उन्होंने कहा कि शक्तियों के बंटवारे का सिद्धांत न्यायपालिका पर भी उतना ही लागू होता है जितना कार्यपालिका पर। कानून मंत्री की टिप्पणी का जवाब देते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि ‘‘एक-दूसरे के लिए सम्मान की भावना होनी चाहिए और किसी भी अंग द्वारा प्रधानता का दावा नहीं किया जा सकता।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रधानमंत्री का सपना है की भारत साक्षर, शिक्षित और डिजिटल रूप से सशक्त बने और न्यायपालिका इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ‘‘संवैधानिक प्रेरक की भूमिका निभा रहा है।’’

 

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