-बाल मुकुन्द ओझा
रूस उक्रेन विवाद अभी थमा भी नहीं था की दुनिया में चीन ताइवान विवाद ने तीसरे महायुद्ध के खतरे से थर्रा कर रख दिया। इसे लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है। चीन अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति को लेकर बदनाम है। ताज़ा विवाद अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से उठ खड़ा हुआ है। चीन आज भी ताइवान को अपना अंग मानता आया है। उसे अमेरिका सहित किसी भी देश का ताइवान में हस्तक्षेप किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं है। चीन में वर्तमान में कम्युनिष्ट शासन है जबकि ताइवान डेमोक्रेट देश है। जिसका अपना संविधान और अपने चुने हुए नेताओं की सरकार है।चीन वन चाइना पॉलिसी के रास्ते पर चल रहा है। इसी के तहत वह ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है। दूसरी
तरफ ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है। चीन के आक्रामक रूख से यह आशंका जताई जा रही है कि ताइवान निकट भविष्य में युद्ध का अखाड़ा बन सकता है।
अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन बौखला गया है। ताइवान की स्वतंत्रता के पक्ष में अमेरिका खुलकर समर्थन कर रहा है। चीन ने ताइवान की सीमा के नजदीक युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया है। इसमें उसके अत्याधुनिक जे-20 विमान भी शामिल है। खबर यह भी है कि चीन के 21 लड़ाकू विमान ताइवान की सीमा में घुस गए हैं। चीन ने ताइवान और अमेरिका को इसका अंजाम भुगतने की धमकी दी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर दोनों देशों के बीच टकराव की वजह क्या है। पिछले 73 साल से दोनों देशों के बीच इसी बात को लेकर टकराव चल रहा है। दोनों देशों के बीच सिर्फ 100 मील की दूरी है। ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से काफी करीब है। ऐसे में टकराव की खबरें लगातार सामने आती रहती हैं। ताइवान की समुद्री सीमा में भी चीन लगातार घुसपैठ करता रहता है। चीन नहीं चाहता है कि ताइवान के मुद्दे पर किसी भी तरह का विदेशी दखल हो। इसके लिए हमें चीन की वन चाइना पॉलिसी को
समझना होगा। 1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने वन चाइना पॉलिसी बनाई। इसमें ना सिर्फ ताइवान को चीन का हिस्सा माना गया बल्कि जिन जगहों को लेकर उसके अन्य देशों के साथ टकराव थे, उन्हें भी चीन का हिस्सा मानते हुए अलग पॉलिसी बना थी। अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन इन हिस्सों को प्रमुखता से अपना बताता रहा हैं। यह विवाद 1644 से शुरू होती है। उस वक्त चीन में चिंग वंश का शासन था। तब ताइवान चीन का हिस्सा था। 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया। कहा जाता है कि विवाद यहीं से शुरू हुआ 1949 में चीन में गृहयुद्ध के दौरान माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली

राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया। हार के बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान पहुंच गई और वहां जाकर अपनी सरकार बना ली। इस बीच दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया। विवाद इस बात पर शुरू हुआ कि जब कम्युनिस्टों ने जीत हासिल की है तो ताइवान पर उनका अधिकार है। जबकि कॉमिंगतांग की दलील थी कि वे चीन के कुछ ही हिस्सों में हारे हैं लेकिन वे ही आधिकारिक रूप से चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए ताइवान पर उनका अधिकार है। तकनीक के मामले में वह दुनिया में नंबर एक पर है. ताइवान दुनिया में चिप बनाने के मामले में पहले नंबर पर है. यह देश लैपटॉप से लेकर महंगे फोन और घड़ियों का उत्पादन करती है। ताइवान की कंपनी वन मेजर दुनिया की बड़ी चिप निर्माता कंपनियों में एक है. दुनिया में चिप निर्माण के मामले में यह कंपनी
अकेले ही आधे से ज्यादा का उत्पादन करती है। इस तरह से कहें तो इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर फोन, लैपटॉप और जहाज से लेकर सैटेलाइट तक में इस्तेमाल होने वाले चिप के लिए पूरी दुनिया ताइवान पर ही निर्भर है। ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिका उसे सैन्य उपकरण बेचता है, जिसमें ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं। ओबामा प्रशासन ने 6.4 अरब डॉलर के हथियारों के सौदे के तहत 2010 में ताइवान को 60 ब्लैक हॉक्स बेचने की मंजूरी दी थी। वर्तमान हालत की विवेचना करें तो युद्ध की स्थिति में चीन के सामने ताइवान की सैन्य ताकत बहुत कम है। हालांकि, रूस यूक्रेन युद्ध को देखते हुए आज के दौर में किसी देश की सैन्य ताकत से नतीजों का अंदाजा लगाना सही नहीं होगा।

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