– राकेश कुमार शर्मा

जयपुर। राजस्थान भाजपा के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के धुर विरोधी माने जाने वाले वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी राजनीतिक दल बनाने की राह पर है। हाल ही जयपुर के बिडला सभागार में दीनदयाल वाहिनी की प्रदेश कार्यकारिणी के पहले प्रतिनिधि सम्मेलन में विधायक घनश्याम तिवाड़ी और उनके पुत्र दीनदयाल वाहिनी के प्रदेश सचिव अखिलेश तिवाड़ी ने राजनीतिक पार्टी बनाने के संकेत दिए, बल्कि दल बनाने के लिए प्रदेश भर में संगठनात्मक ढांचा कैसे रहेगा, उसकी रुपरेखा भी प्रतिनिधियों के सामने रखी। विधायक तिवाड़ी ने यह कहते हुए चौंकाया कि आगामी विधानसभा चुनाव में थर्ड फ्रंट बनेगा या नहीं, यह वे नहीं जानते, लेकिन हमने अगर फ्रंट खोला तो वह फस्र्ट फ्रंट ही बनेगा। भविष्य में दीनदयाल वाहिनी को जरुरत महसूस हुई तो राजनीतिक संगठन भी बनाया जा सकता है। जो चुनावों में पूरे प्रदेश में अपने प्रत्याशी भी उतार सकता है। प्रतिनिधि सम्मेलन में तिवाड़ी ने एक बार फिर चाणक्य बनकर चन्द्रगुप्त तैयार करने की बात दोहराते हुए गरजे, कि वे दो सौ ऐसे युवा तैयार करना चाहते हैं, जो चुनाव लड़ेंगे। इन्हीं को चन्द्रगुप्त बनाने का मेरा उद्देश्य है। तिवाड़ी ने नाम लिए बिना राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और सरकार के कामकाज पर तल्ख अंदाज में हमले बोले। प्रतिनिधि सम्मेलन में तिवाड़ी के इन बयानों की राजनीतिक गलियारों में खासी चर्चा है। चाहे वह उनकी पार्टी हो या दूसरे दल। हर कोई अपने तरीके से उनके बयानों के मतलब निकाल रहे हैं, लेकिन उनके बयानों से साफ है कि वे पूरे बगावती तेवरों में है। सरकार और पार्टी में भी तिवाड़ी के बागी तेवरों से हलचल मची हुई है। पार्टी के बड़े नेताओं का साथ होने और एक वर्ग विशेष की नाराजगी के डर के चलते चाहते हुए भी सरकार व प्रदेश पार्टी नेतृत्व इनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से बच रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक उनकी सोच है कि अगर तिवाड़ी पर अभी कार्रवाई की तो पार्टी के ही नाराज खेमा व तबका उनके साथ हो सकता है। भाजपा के पूर्व दिग्गज नेता डॉ. किरोडी लाल मीणा की तरह अगर तिवाड़ी ने भी कोई मोर्चा बना लिया तो आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है, वहीं  शेष बचे कार्यकाल में सरकार पर हमले तेज कर सकते हैं। एक परेशानी यह भी है कि   पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तिवाड़ी के खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में नहीं है, बल्कि उनका यह प्रयास है कि आपसी समझदारी से जो भी विवाद और मनमुटाव है, उसे पार्टी हित में दूर किया जाए। अभी तक दोनों पक्षों में आपसी समझदारी की बात दिखाई नहीं दे रही है। तिवाड़ी पूरे जोर-शोर से हमले कर रहे हैं तो प्रदेश सरकार व पार्टी नेतृत्व भी उनके बयानों और दीनदयाल वाहिनी बनाकर समानांतर संगठन खड़ा करने संबंधी गतिविधियों की पूरी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान तक पहुंचाकर कार्रवाई की बराबर मांग उठाता रहा है। लेकिन पार्टी अभी तक इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। तिवाड़ी के बागी तेवर विधानसभा चुनाव से पहले ही सामने आ चुके थे। विधायक का चुनाव लडऩे के दौरान भी उन्होंने सांगानेर विधानसभा के मतदाताओं और मीडिया के सामने यह बयान देकर चौंकाया दिया था कि प्रदेश में भाजपा सरकार बन रही है, लेकिन वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनती है तो वह उसके मंत्रिमण्डल का हिस्सा नहीं बनेंगे। स्पष्ट बहुमत से सरकार बनने के बाद भी वे अपने बयानों पर अड़े रहे। बताया जाता है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मंत्रिमण्डल में शामिल करने के लिए प्रयास किया, लेकिन तिवाड़ी नहीं माने।

वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद तो तिवाड़ी ज्यादा मुखर हो गए। गाहे-बगाहे वे भ्रष्टाचार और ख्रराब गर्वनेंस को लेकर सरकार को कठघरे में खड़े करते रहते हैं। करीब ढाई साल से प्रदेश भर में दौरे करके वे चाणक्य बनकर भ्रष्टाचार मुक्त समाज, आर्थिक न्याय और समतामूलक समाज के लिए अपनी ही सरकार के खिलाफ  चन्द्रगुप्त तैयार करने की बात कर रहे हैं। वे हर दौरे, सम्मेलन और सभा में यह कहने से नहीं चूकते हैं कि भाजपा सरकार में सामंती सोच के लोग काबिज हो गए हैं। ये लोग इस मरुधरा की धन-संपदा को लूटने में लगे हुए हैं। सरकार, पार्टी और संगठन पर हावी इन सामंती और व्यक्तिवादी सोच के व्यक्तियों को न तो पार्टी की नीतियों व सिद्धांतों से मतलब है और ना ही पार्टी के उन कार्यकर्ताओं व नेताओं के मान-सम्मान को तरहीज दी जा रही है, जिन्होंने इस पार्टी को एक पौधे से वटवृक्ष बनाया है। एक तरीके से तिवाड़ी ने सरकार के साथ पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को भी घेरे हुए हैं। दबी जुबान में पार्टी नेता व कार्यकर्ता भी तिवाड़ी के बयानों व कथनों को सही ठहराते कहते हैं कि सरकार और संगठन में विधायकों व कार्यकर्ताओं की पूछ पहले जैसी नहीं रही है। अब देखना है कि सरकार और तिवाड़ी के बीच जा रही जंग कहां जाकर खत्म होगी लेकिन यह तो तय है कि तिवाड़ी काफी आगे निकल चुके हैं। ऐसी चर्चा है कि अगर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने समय रहते कोई रास्ता नहीं निकाला तो मनमुटाव ज्यादा बढ़ेगा, वहीं यह पार्टी हित में भी नहीं होगा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री  वसुंधरा राजे और वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाडी के बीच खंीचतान का इतिहास काफी पुराना है और राजे के नेतृत्व में बनी पहली सरकार के वक्त ही इसकी नींव पड़ चुकी थी। हालांकि तब तिवाडी के साथ पार्टी नेताओं अच्छी खासी जमात थी और पर्दे के पीछे संघ का भी साथ था। ढाई साल पहले  हुए विधानसभा चुनाव के पहले और बाद में अधिकांश नेता राजे के पक्ष में हो गए हैं और तिवाड़ी अकेले पड़ गए। हालांकि इस दौरान वे अकेले ही सरकार से भिड़ते भी नजर आए। सांगानेर विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के ही एक कार्यक्रम में सांसद रामचरण बोहरा गुट के कुछ कार्यकर्ताओंं द्वारा की गई बदसलूकी नेे तिवाडी को वह अवसर दे दिया, जिसकी वे तलाश कर रहे थे। इस मामले को उठाते हुए उन्होंने पार्टी और सरकार पर जमकर हमले बोले।

सरकार पर गरजे

दीनदयाल वाहिनी के प्रतिनिधि सम्मेलन में विधायक घनश्याम तिवाड़ी अपनी ही सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा, पहले सरकार चलाने के लिए मंत्री बनाए जाते थे, लेकिन अब सरकार को बचाने के लिए मंत्री बनाए जा रहे हैं। सरकार के मंत्रियों को कोई पावर नहीं है और ना ही कोई निर्णय ले पाते हैं। सरकार रिटायर्ड अफसरों के भरोसे चल रही है और वे ही सुपर केबिनेट के रुप में सरकार चला रही है। जब अफसरों का सुपर केबिनेट है तो मंत्रियों को कौन पूछेगा। तिवाड़ी ने यह भी कहा कि जनता सीएस राजन और दूसरे नौकरशाह को नहीं जानती है, बल्कि जनता मंत्री के पास आती है, लेकिन उन्हें कोई अधिकार नहीं दे रखे हैं। अफसर उनकी सुनते तक नहीं है। परामर्श देने वाले अफसरों का क्या जाता है। पहले भी वे खा रहे थे और आगे भी खाते रहेंगे। मंत्रियों का हक मारा जा रहा है। प्रदेश में गवर्नेंस नाम की कोई चीज नहीं है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। चारों तरफ लूट मची है। बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं। अपराध बढ़े रहे हैं। महिला अत्याचार व दुष्कर्म के मामलों पर कोई अकुंश नहीं है। अब तक पार्टी कार्यकारिणी बन नहीं पाई है। कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही। तीन-तीन माह में होने वाले बैठकें तीन साल में हो रही है। इस बारे में कोई आवाज उठाए तो उसकी जुबान खींच लेते हैं। तिवाड़ी ने यह भी आरोप लगाया कि राज्यसभा चुनाव में ऐसे लोगों को भी टिकट दे दिया, जिन्हें अस्सी लाख कार्यकर्ता जानते तक नहीं है। पीपीपी मोड पर चहेते लोगों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। सरकारी स्कूलें और रोडवेज बसें बंद की जा रही है। बाडमेर में भरपूर तेल निकल रहा है, लेकिन रिफाइनरी नहीं लग पा रही है। पार्टी की विचारधारा को भुला दिया गया है। किसानों की जमीन कंपनियों को देने के लिए विशेष निवेश क्षेत्र का बिल लाया जा रहा है। श्रमिक नीतियों में बदलाव करके कर्मचारी व श्रमिकों को शोषण किया जा रहा है। आपस में लड़ाकर प्रदेश की सामाजिक समरसता को खतरे में डाल दिया गया है। तिवाड़ी ने कहा कि पार्टी में जो लोग विचारधारा और सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाहते है, वे दीनदयाल वाहिनी की ओर देख रहे हैं। प्रदेश में हम सामाजिक समरसता और आर्थिक न्याय के लिए काम करेंगे। तिवाड़ी ने वहां मौजूद प्रतिनिधियों को गांव-ढाणी में दीनदयाल वाहिनी के विस्तार करने का आह्वान किया। सम्मेलन में दीनदयाल वाहिनी के सचिव अखिलेश तिवाड़ी ने संगठन के एक्शन प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि 25 सितम्बर को सक्रिय सदस्य बनाने का अभियान शुरु किया जाएगा। कार्ड होल्डर सदस्य बनाएं जाएंगे और बूथ स्तर तक संगठन तैयार किया जाएगा। यह भी बताया कि दीनदयाल वाहिनी की 125 विधानसभा क्षेत्रों और 30 जिलों में कार्यकारिणी बन चुकी है। शेष विधानसभा क्षेत्रों में भी कार्यकारिणी गठन किया जा रहा है। घनश्याम तिवाड़ी की तरह उनके पुत्र अखिलेश तिवाड़ी ने भी भाजपा सरकार पर जमकर हमले करते हुए कहा कि सरकार की नाकामी और कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने से प्रदेश में ज्वालामुखी फूट रहा है, लेकिन दिल्ली को यह दीपक लग रहा है। एक सामंती सोच के व्यक्ति के हवाले पूरे राज्य को दे दिया। कार्यकर्ताओं में हताशा है। जो कोई बोलता है तो उसे डराया धमकाया जाता है। जनता व किसान पीस रहे हैं। उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। उन्होंने जल्द ही प्रदेश में आंदोलन शुरु करने के भी संकेत दिए।

कई नेता पहुंचे

सम्मेलन में प्रदेश भर से करीब डेढ़ हजार प्रतिनिधि शामिल हुए, वहीं भाजपा के कई पूर्व विधायक, नेता और पदाधिकारियों ने कार्यक्रम में शिरकत की। पूर्व विधायक मोतीलाल खरेरा, मूलसिंह शेखावत व गोपीचंद गुर्जर, करौली के पूर्व जिलाध्यक्ष महेन्द्र मीणा, कैलाश शर्मा, ठाकुर सदानंद गौड़ व शिवकुमार सैनी, चूरु के पूर्व जिलाध्यक्ष पंकज गुप्ता, अजमेर के पूर्व जिला अध्यक्ष नवीन शर्मा, भरतपुर के पूर्व अध्यक्ष गिरधारी तवा व आत्मा सिंह, अलवर के पूर्व अध्यक्ष शशिकांत बोहरा, सीकर के पूर्व अध्यक्ष पवन मोदी, दौसा के रतन तिवाड़ी, भाजपा जयपुर शहर महामंत्री अजय पारीक, उपाध्यक्ष विमल अग्रवाल, जयपुर देहात भाजपा उपाध्यक्ष अवधेश शर्मा, युवा मोर्चा के पूर्व महामंत्री छगन मागूर समेत भाजपा के मोर्चों व प्रकोष्ठों के पदाधिकारी शामिल हुए। बड़ी संख्या में जयपुर जिले के भाजपा कार्यकर्ता भी मौजूद रहे।

मजबूती की ओर बढ़ते कदम

सियासी गलियारों में चर्चा है कि पण्डित दीनदयाल वाहिनी के मार्फत विधायक घनश्याम तिवाड़ी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लगे हैं। संगठन को मजबूत करके पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रहे हैं। चर्चा है कि घनश्याम तिवाड़ी ने भविष्य के राजनीतिक हालातों को भांपते हुए अभी से जमीनी ताकत को मजबूत करने में लग गए हैं। जिस तरह सरकार और मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि उनमें मनमुटाव काफी गहरा गया है। वे कहीं न कहीं आशंकित है अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर। राजनीति में कुछ भी संभव है।

जैसे पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह जैसे वरिष्ठ पार्टी नेता को टिकट नहीं देकर कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाकर उन्हें तगड़ा झटका दिया। निर्दलीय चुनाव जोर-शोर से भी लड़ा, लेकिन वे हार गए। संभतया ऐसा ही कुछ अंदेशा तिवाड़ी को भी है। यहीं वजह है कि वे अपने सालों पहले गठित किए गए दीनदयाल संस्थान को सक्रिय कर दिया है और उसे जमीनी तौर पर मजबूत करने के प्रयासों में भी तेजी से लगे हुए हैं। भविष्य में भी दोनों नेताओं (घनश्याम तिवाड़ी व मुख्यंत्री वसुंधरा राजे) के बीच यह टकराव न केवल बढ़ेगा, बल्कि किसी न किसी नतीजे तक पहुंचने की भी संभावना है। दोनों नेताओं में आपसी समझाइश से कोई न कोई रास्ता निकल जाएगा, अन्यथा भाजपा के पूर्व वरिष्ठ नेता व मंत्री रहे डॉ. किरोडी लाल मीणा की तरह कहीं उन्हें भी पार्टी छोडने पर मजबूर होना पड़े या विवाद बढने पर पार्टी से निष्कासित होने, विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने जैसे नुकसान भी झेलने पड़ सकते हैं। हालांकि अभी दोनों तरफ सधी हुई चालें चली जा रही है। विधानसभा चुनाव दूर है। ऐसे में दोनों पक्ष एक-दूसरे को तौलने में लगे हुए हैं। इतना तय जरुर है कि तिवाड़ी दीनदयाल संस्थान के माध्यम से खुद को जमीनी स्तर पर मजबूत कर रहे हैं ताकि चुनाव से पहले उन्हें किसी तरह की राजनीतिक संकटों का सामना नहीं करना पड़े।

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