उदयपुर। वोटों की खातिर सरकारें क्या-क्या नहीं करतीं। खुद ही नियम बनाती हैं और उनको खुद ही तोड़ती हैं और जब जिम्मेदार जनप्रतिनिधि ही अपनी जिम्मेदारी में कोताही बरते तब छुटभैये नेताओं का तो हौसला पूछो ही मत। मामला नगर निगम उदयपुर से जुड़ा हुआ है जिसके महापौर चन्द्रसिंह कोठारी की सख्ती पिछले दिनों शहर के एक मॉल को सीज करने में जगजाहिर हो चुकी है, उन्हीं महापौर की सरपरस्ती में मातहत अधिकारियों ने खाद्य सुरक्षा योजना में दफ्तर में बैठे-बैठे ही ऐसी खानापूर्ति कर दी कि कोई राह चलता व्यक्ति भी सवाल उठा दे।
जी हां, खाद्य सुरक्षा योजना में उदयपुर नगर निगम ने अपने स्तर पर ही शहर में साइकिल रिक्शा चालकों की उपस्थिति दर्ज करा दी है। वह भी इकाई या दहाई की संख्या में नहीं बल्कि पूरे 495 साइकिल रिक्शा चालक शहर में बताए गए हैं। हकीकत यह है कि उदयपुर की भौगोलिक स्थिति के चलते आज तक यहां साइकिल रिक्शा चल ही नहीं पाए। ऊंची-नीची घाटियों पर बसे उदयपुर में साइकिल रिक्शा सफ ल नहीं हो सकते। कभी यहां तांगे चलते थे, वे भी अब बंद हो चुके हैं। उनकी जगह धुआं उड़ाते टेम्पो ले चुके हैं। यहां तक की माल ढोने में भी साइकिल रिक्शा नहीं हैं। माल ढुलाई में ठेला ढकेलने वाले जरूर हैं। ऐसे में 495 साइकिल रिक्शा चालक अचानक कहां से पैदा हो गए, इस संख्या ने सवाल उठा दिए हैं।
दरअसल माजरा यह है कि खाद्य सुरक्षा योजना में वोटर्स को लुभाने के चक्कर में आनन-फ ानन में दफ्तर में बैठे-बैठे ही गरीब परिवारों का सर्वे कर दिया गया। इस सर्वे में ही लोगों के नाम के आगे उनका व्यवसाय ‘मनÓ से अंकित कर दिया गया। इसमें भी नियमों की अवहेलना हुई, जो काम निगम को नहीं करना था वह भी निगम ने कर दिया। गरीबों के प्रति अधिकारियों की संवेदनशीलता पहली बार नजर जरूर आई, लेकिन कागजों में अंकित हो चुके आंकड़े अब इस संवेदनशीलता के पीछे की कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

दो तरह की श्रेणियां

खाद्य सुरक्षा में पात्र को ही लाभ मिले, इसके लिए दो तरह की श्रेणियां बनाई गई। पहली श्रेणी में अंत्योदय, बीपीएल, स्टेट बीपीएल, अन्नपूर्णा, मुख्यमंत्री वृद्धजन समान योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, मुख्यमंत्री एकल नारी योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना, मुख्यमंत्री विशेष योग्यजन पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांग पेंशन योजना, मुख्यमंत्री निराश्रित पुनर्वास योजना, सहरिया एवं कथौड़ी जनजाति परिवार, कानूनी रूप से निमुक्त बंधुआ मजदूर परिवार, वरिश्ठ नागरिक जिनका स्वतंत्र राशन कार्ड व अन्य जरूरी नियमों में आते हों, को शामिल किया गया। इन्हें सीधा-सीधा खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ मिलना हैं।

दूसरी श्रेणी में होना था सत्यापन

दूसरी श्रेणी में जो वर्गीकरण किया गया, उनमें संबंधित विभागों की तस्दीक वाले प्रमाण पत्र जरूरी किए गए। इन प्रमाण पत्रों को राशन डीलर को जमा कराना जरूरी किया गया ताकि व्यक्ति का प्रमाणीकरण रसद विभाग तक हो सके। इस श्रेणी में मुख्यमंत्री जीवन रक्षा कोष, समस्त सरकारी हॉस्टल में अंत:वासी, एकल महिलाएं, श्रम विभाग में पंजीकृत निर्माण श्रमिक, पंजीकृत अनाथालय एवं वृद्धाश्रम एवं कुष्ठ आश्रम, कच्ची बस्ती में निवास करने वाले सर्वेक्षित परिवार, कचरा बीनने वाले परिवार, घरेलू श्रमिक, गैर सरकारी सफ ाईकर्मी, स्ट्रीट वेंडर, साइकिल रिक्शा चालक, कुली, कुष्ठ रोगी एवं कुष्ठ रोग मुक्त व्यक्ति, घुमंतु व अद्र्धघुमंतु जातियां जैसे वन वागरिया, गाडिय़ा लुहार, भेड़ पालक, वनाधिकारी पत्राधारी परम्परागत वनवासी शामिल हैं।

व्यवसाय अंकित, प्रमाण पत्र का पता नहीं
-नगर निगम ने सूचियों में ही लाभार्थी की श्रेणी अंकित कर दी, लेकिन उन्हें प्रमाण पत्र जारी नहीं किए। राशन डीलरों ने जब प्रमाण पत्र मांगने शुरू किए तब इस बात का खुलासा हुआ। राशन डीलरों के पास जब सीधी सूचियां पहुंची तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि पूरे शहर में कोई साइकिल रिक्शा नहीं चलता, ऐसे में इतने साइकिल रिक्शा चलाने वाले कहां से आ गए। यहां यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि वार्ड में रहने वाले लाभार्थियों की हकीकत राशन डीलर से ज्यादा कौन जान सकता है।

महापौर के वार्ड में साइकिल रिक्शा चालक मतलब वाहन चालक

दफ्तर में बैठे-बैठे हो गए। इस सर्वे में खुद महापौर का वार्ड भी सवालों के घेरे में है। यहां तो सरकार द्वारा निर्धारित श्रेणी से हटकर एक नई श्रेणी बन गई। इनमें गैर सरकारी सफ ाईकर्मी के आगे कोष्ठक में ‘प्राइवेट नौकरीÓ जोड़ दिया गया और साइकिल रिक्शा चालक के आगे कोष्ठक में ‘वाहन चालकÓ जोड़ दिया गया। अब सवाल यह उठता है कि गैर सरकारी सफाईकर्मी की प्राइवेट नौकरी वेदांता जैसे रुप में हो तो तब वह खाद्य सुरक्षा का पात्र कैसे होगा और साइकिल रिक्शा चालक यदि वाहन चालक है तो वह साइकिल रिक्शा चालक की श्रेणी में कैसे आ सकता है। महापौर के वार्ड चार में ऐसे चार गैर सफ ाई कर्मी और आठ साइकिल रिक्शा चालक हैं।
—————————–
एक नजर उदयपुर के आंकड़ों पर
अंत्योदय परिवार: 3502
बीपीएल परिवार: 3328
मुख्यमंत्री वृद्धजन समान योजना: 2
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना: 11
मुख्यमंत्री एकल नारी योजना: 28
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना: 6
मुख्यमंत्री निराश्रित पुनर्वास योजना: 1
कानूनी रूप से निमुक्त बंधुआ मजदूर परिवार: 87
वरिश्ठ नागरिक स्वतंत्र राशन कार्ड वाले: 40
मुख्यमंत्री जीवन रक्षा कोष: 1
एकल महिलाएं: 247
श्रम विभाग में पंजीकृत निर्माण श्रमिक: 4621
कच्ची बस्ती में निवास करने वाले सर्वेक्षित परिवार: 3459
कचरा बीनने वाले परिवार: 20
घरेलू श्रमिक: 6469
गैर सरकारी सईकर्मी 602
स्ट्रीट वेंडर: 190
साइकिल रिक्शा चालक: 495
कुली: 26

LEAVE A REPLY