– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। हैदराबाद के शोधार्थी छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या प्रकरण और जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देशविरोधी नारों व प्रदर्शनों का विवाद अभी देश भर में थम नहीं पा रहा है, वहीं जयपुर के एक शोधार्थी छात्र संजय सिंह से बीस हजार रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रदीप कुमार गोयल को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा रंगे हाथों गिरफ्तार करने की घटना और केन्द्रीय विश्वविद्यालय अजमेर के शोधार्थी मोहित चौहान की आत्महत्या प्रकरण ने राजस्थान के विश्वविद्यालयों व दूसरे उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध के नाम पर छात्रों के साथ हो रहे खिलवाड, अन्याय और दबाव की कार्यशैली को उजागर कर दी है, साथ ही शिक्षा के मंदिर और उसके पुजारी (शिक्षक) किस तरह व्यावसायिकता के दलदल में फंसे हुए हैं, उनका यह शर्मनाक कृत्य भी सामने ला दिया है। रिश्वत मामले में फंसे प्रोफेसर के कारनामे ने साबित कर दिया कि विश्वविद्यालय चाहे वे सरकारी हो या निजी, हर जगह शोध छात्रों के साथ आर्थिक के साथ शारीरिक व मानसिक शोषण किया जा रहा है। करीब पांच साल पहले शोध के नाम पर छात्रा से अस्मत मांगने और छेड़छाड़ की घटना में दो सहायक प्रोफेसरों की गिरफ्तारी प्रकरण से राजस्थान विश्वविद्यालय की छवि को शर्मसार कर दिया था। अब एक बार फिर प्रो.प्रदीप कुमार गोयल की गिरफ्तारी से विश्वविद्यालय की साख पर धब्बा लगा दिया है। इस घटना ने साबित कर दिया कि विश्वविद्यालय प्रशासन और शिक्षकों को छात्रों की पढ़ाई और शोध कार्यों से ज्यादा अपने व्यावसायिक हितों को पूरा करने पर जोर रहता है। जयपुर ही नहीं प्रदेश के उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर, कोटा, अजमेर के सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के भी हालात ऐसे ही हैं, वहां भी शोध छात्रों के साथ शोध के नाम पर रिश्वत, अस्मत और दूसरे काम करवाने का खेल चल रहा है। जो शिक्षकों के इशारों और उनकी जायज-नाजायज मांगों को पूरा करते रहते हैं, वे तो अपना शोध पूरा कर लेते हैं। जो अपने मान-सम्मान को बरकरार रखते हुए शिक्षकों की नाजायज मांगों का विरोध करते हैं, उन्हें कष्ट झेलकर और भारी दबाव में जैसे-तैसे अपनी थीसिस पूरी कर पाते हैं। कई ऐसे भी होते हैं, जो यह दबाव सह नहीं पाते हैं और आत्महत्या करके अपनी जिन्दगी को खत्म कर देते हैं। ऐसे ही दबाव को सहते हुए केन्द्रीय विश्वविद्यालय अजमेर के एक होनहार शोध छात्र मोहित चौहान ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। परिजनों की प्राथमिकी रिपोर्ट के मुताबिक, गाइड शिक्षकों की प्रताडऩा और दबाब को वह सह नहीं पाया और उसने खुदखुशी करके अपनी जान दे दी। इससे पहले भी एक अन्य शोध छात्र ने भी यहीं आरोप लगाते हुए खुदखुशी कर ली थी। महिला शोधार्थियों की स्थिति तो और भी खराब है। शिक्षक उनसे शारीरिक संबंध बनाने तक दबाव डाल देते हैं। शरीर को छूना और छेड़छाड़ तो सामान्य बातें हैं। हालांकि यह सभी शिक्षकों लागू नहीं है। बहुत से शिक्षक आज भी गुरु-शिष्य की परम्परा और सम्मान को बनाए हुए हैं। शिक्षक व अभिभावक के नाते अपने शिष्यों को उनकी शिक्षा, शोध और दूसरे कार्यों में भी पूरी मदद करते हैं और आगे भी बढ़ाते हैं, लेकिन प्रोफेसर प्रदीप कुमार गोयल जैसे शिक्षकों के कारण पूरे शिक्षक समाज पर उंगली उठ रही है।
-फैलोशिप राशि पर गिद्ध दृष्टि
विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर हर महीने पचास हजार से एक लाख रुपए तक के वेतन-भत्ते मिलते हैं। इतने अच्छे वेतन-भत्ते के बावजूद अधिकांश शिक्षक शोध छात्रों को मिलने वाली मामूली फैलोशिप, छात्रवृत्ति राशियों पर गिद्ध दृष्टि रखे हुए हैं। सरकार की ओर से देय फैलोशिप फीस व छात्रृत्ति के मामूली खर्चे से बमुश्किल जैसे-तैसे अपना अध्ययन-अध्यापन कर रहे छात्रों से बीस से तीस फीसदी राशि तक उनके गाइड शिक्षक वसूलते हैं। यहीं नहीं उनसे घर-परिवार के हर छोटे-बड़े काम भी करवाने से नहीं चूकते। संजय सिंह से बीस हजार रुपए लेते धरे गए प्रोफेसर गोयल का यह कृत्य राजस्थान विश्वविद्यालय में पहला मामला नहीं है, बल्कि इससे पहले भी शोध छात्र-छात्राओं से वसूली से लेकर अस्मत मांगने के प्रकरण सामने आ चुके हैं और गिरफ्ताारियां तक हो चुकी है। शोध छात्र संजय सिंह की हिम्मत से फैलोशिप बिलों को पास करने की एवज में जूलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. प्रदीप कुमार गोयल बीस हजार रुपए लेते धरे गए। ऐसा अन्याय हर शोध छात्र के साथ होता है और शोध तय समय पर पूरा हो जाए, इसके लिए छात्र हर तकलीफ सहते हुए अपने शिक्षकों की सही और गलत बातों को भी मानने को मजबूर रहते हैं। यह संजय सिंह की हिम्मत है कि उसने फैलोशिप राशि में से अंशदान मांग रहे अपने ही शिक्षक के खिलाफ ना केवल लडऩे के लिए खड़ा हुआ, बल्कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत करके शिक्षा व शिक्षा मंदिर को कलंकित करने वाले शिक्षक प्रदीप कुमार गोयल को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाकर समाज के सामने ऐसे शिक्षकों की पोल खोली, जो अपने ही छात्रों का आर्थिक शोषण करने में लगे हुए हैं। मात्र ढाई लाख रुपए के फैलोशिप बिल पास करने के एवज में गोयल ने बीस हजार रुपए मांगे। इससे पहले भी गोयल संजय सिंह से काफी पैसा ले चुके थे, जबकि यह पैसा शोधार्थियों को इसलिए दिया जाता है कि वे अपने विषय के शोध को बिना आर्थिक तंगी से पाए पूरी कर सके और अपने शोधों से समाज को राह दिखाए। इस राशि में से भी शिक्षक बंटवारा करने लगेंगे तो शोध छात्र कहां से पैसा लाएंगे। नौकरी करके शोध कार्यों को पूरा करना संभव नहीं है। इसलिए सरकार और विश्वविद्यालय शोध कार्यों के लिए बजट रखता है।
संजय सिंह के बयानों के मुताबिक, प्रो. गोयल की गैर वाजिब मांगों और हरकतों से वह इतना आजिज आ चुका था कि उसने एक बार तो फेलोशिप छोडऩे का मन बना लिया था, लेकिन फिर सोचा कि प्रो. गोयल मेरे साथ ही नहीं, दूसरे छात्रों के साथ भी ऐसा ही बुरा बर्ताव करते होंगे और पहले भी कई छात्र शिकार हुए होंगे। साथी शोध छात्र भी अपने ऐसे कई गाइड शिक्षकों के बारे में बता चुके हैं, जो फेलोशिप राशि में से पैसा मांगते हैं। घर-परिवार में काम करवाते हैं और विरोध करने पर प्रताडित करने से भी नहीं चूकते। ऐसे ही हालातों से संजय सिंह गुजरे तो उन्होंने इस व्यवस्था के खिलाफ लडऩे का फैसला किया। प्रो.गोयल और ऐसे ही दूसरे शिक्षकों को सबक सिखाने और शोध छात्रों में लडऩे की अलख जगाने के लिए संजय सिंह ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत करने की ठानी। सिंह की लिखित शिकायत पर ब्यूरो ने अपना जाल फैलाया, हालांकि अपनी होशियारी और चालबाजी से प्रो.गोयल पांच बार तो ब्यूरो के शिकंजे में आने से बचता रहा। लेकिन छठी बार बीस हजार रुपए लेते हुए प्रो.गोयल ब्यूरो अधिकारियों के हाथ चढ़ ही गए। गिरफ्तारी के दौरान प्रो.गोयल खुद को बेगुनाह बताते हुए फिर ऐसी गलती नहीं करने की गुहार लगाते रहे।
इस गिरफ्तारी ने विश्वविद्यालयों में शोध के नाम पर चल रहे छात्रों के आर्थिक, शारीरिक व मानसिक शोषण को तो सामने ला दिया, साथ ही एक सबक उन शिक्षकों के लिए दिया, जो अपने शोध कर रहे छात्रों को यह कहकर डराते-धमकाते हैं कि अगर उनकी जायज-नाजायज मांगों को नहीं मानी तो भविष्य बर्बाद कर देंगे और उनका शोध पूरा नहीं होने देंगे। उन शिक्षकों को समझना होगा कि अगर छात्र चाहे तो वे भी गैर कानूनी और नाजायज मांगोंं को लेकर शिक्षकों को कानूनी कठघरे में ले सकते हैं। बस छात्रों को थोड़ी हिम्मत और धैर्य के साथ अपनी बात विश्वविद्लाय प्रशासन, कानूनी एजेंसियां और मीडिया तक पहुंचानी होगी। इस घटना के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को भी सोचना चाहिए कि शोध छात्रों के साथ ऐसा अन्याय भविष्य में नहीं हो, इसके लिए वे शिक्षकों पर तो लगाम रखे और एक स्वच्छ और ईमानदार शिक्षकों की एक ऐसी कमेटी बनाए, जो शोध छात्रों व अन्य छात्रों की शिकायतों पर त्वरित सुनवाई कर उन्हें राहत दिला सके। तभी छात्रों का विश्वास कायम रह सके और शिक्षा मंदिर को कलंकित करने वाले शिक्षकों पर नजर रखी जा सकेगी।
– ऐसी क्या पढ़ाई, जो बच्चों की जान ले लें

अजमेर का केन्द्रीय विश्वविद्यालय भी शोध छात्रों के आत्महत्याओं के चलते सूबे में चर्चाओं का केन्द्र बना हुआ है। पिछले महीने पांच फरवरी को गणित में शोध कर रहे मोहित चौहान और उससे पहले भौतिक विज्ञान के शोधार्थी विमल चौधरी की आत्महत्या की घटनाओं ने इस विश्वविद्यालयों को सुर्खियों में ला दिया था। दोनों शोध छात्रों की मौत के पीछे उनके परिजनों और दोस्तों का आरोप रहा, कि उनके गाइड शिक्षक शोध के बहाने उन्हें घर-परिवार के काम करवाते थे। फैलोशिप फीस में अंशदान देने की नाजायज मांगे करते थे। उनकी मांग पूरी नहीं करने पर शोध कार्यों को गलत बताकर बार-बार करवाकर बेइज्जत करते थे। मोहित चौहान के पिता दिनेश चौहान ने उनके बेटे की शोध गाइड प्रोफेसर विद्योत्तमा जैन व दो अन्य प्रोफेसरों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज करवाया है। रिपोर्ट में तीन प्रोफेसरों पर मोहित पर नाजायज परेशान करने का आरोप लगाया है। इसी प्रताडऩा से तंग आकर मोहित ने विश्वविद्यालय प्रशासन से उसका गाइड बदलने के लिए दो बार आवेदन किया था, लेकिन प्रशासन ने उनकी मांग नहीं सुनी। मोहित की मौत से बदहास हुए उनके पिता दिनेश चौहान ने शिक्षा व शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसी पढ़ाई से क्या फायदा, जो बच्चों की जान ले ले। पेशे से किसान दिनेश चौहान कहते हैं, कि पाई-पाई पैसा जोड-जोड कर बेटे को पढ़ाया। मुझे पता होता कि यह पढ़ाई मेरे बच्चे की जान ले लेगी तो मैं अपने लाडले को पढ़ाता ही नहीं। ऐसे ही कुछ हालातों और दबावों को सहन करते हुए शोधार्थी विमल चौधरी भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए। उनके दोस्तों और परिजनों के मुताबिक, शिक्षकों ने उसका शोध पेपर रोक दिया था, जिसके चलते वे काफी दबाव और अवसाद में था। इसी दबाव व अवसाद में आकर उसने आठ महीने पहले आत्महत्या कर ली थी। ऐसे ही एक छात्र जोगवेन्द्र सिंह शेखावत ने भी विश्वविद्लाय प्रशासन द्वारा परेशान करने पर कुलपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति देेने की मांग तक कर डाली थी।
विमल चौधरी की आत्महत्या के बाद छात्रों ने काफी आंदोलन भी किया, लेकिन प्रशासन ने इससे सबक नहीं लिया और ना ही दोषी शिक्षकों पर कोई ठोस कार्रवाई की। इसी का नतीजा रहा कि शिक्षकों की कथित प्रताडना से तंग आकर मोहित चौहान ने आत्महत्या करके केन्द्रीय विश्वविद्यालय की शैक्षणिक व्यवस्था को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया। छात्रों का आरोप है कि दोनों शोधार्थियों ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उनके गाइड शिक्षकों की गलत मांगों और प्रताडऩा ने छात्रों को ऐसा कदम उठाने को मजबूर कर दिया कि वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए। छात्रों का आरोप है कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि शिक्षकों की ओर से की गई हत्या है। ऐसे शिक्षकों पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए। वैसे दोनों मामलों में प्राथमिकी दर्ज हुई है और मामले में जांच चल रही है।

– छात्रा से अस्मत मांगी, अश्लील फोटो बना ब्लैकमेल किया

राजस्थान विश्वविद्यालय को शर्मसार करने वाली घटना तो याद ही होगी, जब 27 जून, 2011 को गांधी नगर थाने में एक शोध छात्रा ने भौतिक विज्ञान के दो प्रोफेसरों पर शोध के बदले अस्मत मांगने और अश्लील फोटो बनाकर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करवाई थी। शोध छात्रा का आरोप था कि उसके गाइड शिक्षक प्रोफेसर आर.के.सिंघल और एस.एन.ठोलिया ने शोध के बदले अस्मत मांगी और उसके साथ कई बार छेडछाड भी की गई। जब इसका विरोध किया तो उन्होंने बदनाम करने की धमकी दी। शिक्षकों ने ब्लैकमेल करने के लिए फर्जी तरीके से उसके अश्लील फोटो बना लिए और उन्हें दिखाकर संबंध बनाने का दबाव बनाया और जब बात नहीं बनी तो इन्होंने अश्लील फोटो को रिश्तेदारों और जहां छात्रा काम करती थी, वहां तक भेज दिए। मजबूरन शिक्षकों के खिलाफ मामला दर्ज करवाना पड़ा। पुलिस ने दोनों शिक्षकों को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ चालान पेश किया। इस मामले ने राजस्थान विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को हिलाकर रख दिया था। साथ ही शोध छात्रों के साथ छात्राओं के साथ हो रही शारीरिक शोषण और यौन संबंध बनाने की लालसा को भी उजागर कर दिया। शिक्षकों के ऐसे कृत्यों के चलते पहले भी विश्वविद्यालय की साख दाव पर लगती रही है। शोधार्थी छात्रों के शोषण के लिए ही नहीं, बल्कि फेल को पास करने, कॉपियां बदलने और नंबर बढ़ाने के एवज में पैसे लेने के कारनामे यहां के शिक्षकों द्वारा किए जा चुके हैं। नाइजीरिया के तीन अनुत्तीर्ण छात्रों से मोटी रकम लेकर पास कर देने के मामले में विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसर और तीन कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। कॉपियां बदलने, नंबर बढ़ाने और समेत दूसरे भ्रष्ट मामलों को लेकर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में दर्जनों मामले चल रहे हैं। यह मामले दर्शाते हैं कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों, कर्मचारियों और प्रशासन को शैक्षणिक व्यवस्था के प्रति कोई लगाव नहीं है। नौकरी के साथ ज्यादा पैसा कैसे कमाया जाए, यह इनकी मानसिकता रह गई है।
– खाना बनाने से लेकर करवाते हैं घर की सफाई

राजस्थान विश्वविद्यालय में शोध कर रहे छात्रों का कहना है कि अधिकांश गाइड शिक्षक फेलोशिप फीस में से राशि लेते हैं। अगर कोई नहीं दे और विरोध करे तो उसका शोध पूरा नहीं होने देते। भविष्य खराब करने की धमकी देते हैं। यहीं नहीं शोध छात्रों से घरों का कामकाज करवाते हैं। घरेलू सामान मंगवाना आम बात है। कई शिक्षक तो सामान खरीदने के लिए पैसे भी नहीं देते हैं, वे भी छात्रों को अपनी जेब से खर्च करने पड़ते हैं। कई शिक्षकों के बच्चों को स्कूल से लाने-ले-जाने के साथ उन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी भी निभानी पडती है। शोध छात्राओं का यह भी कहना है कि शिक्षकों के मेहमान आने पर उनकी रसोई तक संभालनी पड़ती है और हर वो काम करना पड़ता है, जो एक नौकरानी करती है। साइंस के शोधार्थियों को तो ज्यादा प्रताडित किया जाता है। उनसे विश्वविद्यालय की लैब के साथ शिक्षकों के घरों में बनी निजी प्रयोगशालाओं की साफ- सफाई करवाई जाती है और निजी प्रोजेक्टों में भी कार्य करवाया जाता है। शिक्षकों के इन कार्यों का विरोध करने और शिकायत किए जाने पर शोध छात्रों को धमकाया जाता है। कुछ शिक्षक तो ऐसे हैं, जो अभद्र भाषा से बात करते हैं। कई बार तो मारपीट तक कर देते हैं। भविष्य खराब होने के डर के चलते हर कोई उनकी बातों को मानने को मजबूर है।

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