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नयी दिल्ली: आम आदमी पार्टी का जिस वक्त गठन हुआ तब यह एक रुटीन राजनीतिक पार्टी न हो कर एक विचारधार थी जिससे हजारों लोगों के सपने जुड़े हुए थे। और इसके केन्द्र में थे –अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और कुमार विश्वास….तीन अभिन्न मित्र जो पार्टी के गठन के वक्त मजबूती से एक साथ खड़े थे लेकिन पांच वर्ष बाद आज यह तिकड़ी टूटती दिखाई दे रही है। आम आदमी पार्टी के गठन को इस महीने पांच वर्ष पूरे हो गए और इतने कम समय में ही इनके बीच विचारों की इतनी गहरी खाई दिखाई देने लगी है कि इनका एक साथ दिखाई देना लगभग असंभव सा प्रतीत होने लगा है। एक ओर हैं कवि से नेता बने कुमार विश्वास और दूसरी ओर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया।

 

दोनों गुटों के सूत्रों का मानना है कि दोस्ती में इस हद तक कड़वाहट आ चुकी है कि उनके बीच दोबारा मेल होने की आशा नहीं दिखाई देती। पिछले सप्ताह पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह बात दिखाई भी दी। विश्वास ने आरोप लगाया कि पहली बार वह इस उच्च स्तरीय बैठक में वक्ताओं में शामिल नहीं थे। विश्वास ने बाद में आप नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा था, ‘‘मुझे लगता था कि केवल कांग्रेस और भाजपा ही मुझसे भयभीत हैं।’’ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से 2014 में लोक सभा चुनाव लड़ने वाले विश्वास कुछ समय से पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं। विश्वास के करीबियों का मानना है कि यह दरार उस मंडली ने पैदा की है जो कि केजरीवाल के करीब हैं । उनका कहना है कि ये लोग विश्वास के खिलाफ हैं। विश्वास का मनना है कि पार्टी नेतृत्व ने उनकी अनदेखी की है। विवाद की एक वजह राज्य सभा सीट को ले कर संघर्ष भी है। दिल्ली विधानसभा में 67 सदस्यों वाली आप तीन सदस्यों को ऊपरी सदन में भेज सकती है।

केजरीवाल के करीबी माने जाने वाले एक नेता ने कहा कि राज्य सभा सदस्य बनने के बाद अगर विश्वास पार्टी पर ही हमले करने शुरू कर दें तो। इसके अलावा ओखला से विधायक अमानतुल्ला खान के साथ पार्टी के शीर्ष नेता के संबंध भी विश्वास के लिए परेशानी का सबब हैं। आपसी कलह का कारण भले कुछ भी हो लेकिन पार्टी के नेताओं का मानना है कि इससे पार्टी की छवि खराब हो रही है।

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