नई दिल्ली। लोकसभा के चुनाव हो या फिर विधानसभाओं के चुनाव, तकरीबन हर चुनावों में प्रमुख पार्टियों की नजरें दलितों और अल्पसंख्यक वोटों पर ही गड़ी रहती है। इसके पीछे एक कारण यह भी होता है कि अगड़ों का वोट बैंक तो बंधा रहता है, ऐसे में सेंधमारी के लिए पिछड़ों का वोट बैंक ही शेष रह जाता है। जहां मतदाताओं को रिझाकर अपने पक्ष में किया जा सकता है। यही वजह रही कि बसपा जहां दलित और मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने को लेकर जुटी रही। जहां पार्टी ने अधिकतर सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव मैदान में उतारे। वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी इन्हें अपने पक्ष में करने को जुटी रही। मतदान हुआ तो फिर सवाल उभरे कि मुस्लिम वोटों का क्या हुआ? दलितों ने किसे वोट डालो? जाट और यादवों का रुझान किस ओर रहा? लेकिन चुनाव परिणामों ने उन सभी कयासों पर विराम लगाते हुए भाजपा को भारी बहुमत दे दिया। यूं तो चुनाव प्रचार के दौरान राज्य की 19 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम समाज के वोट पाने के लिए बसपा और सपा में कांटे की टक्कर देखने को मिली। लेकिन कई मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को जीत मिली। इससे यह साफ हो गया कि इन इलाकों में मुस्लिम वोट सपा और बसपा में बंटा, जिससे भाजपा की जीत तय हो गई। या फिर मुस्मिल समाज ने भी भाजपा को वोट दिया। मुस्लिम बहुल 59 विधानसभा सीटों पर सपा (29 प्रतिशत) और बसपा (18 प्रतिशत )ने कुल 47 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। जबकि इन इलाकों में एक चौथाई वोटर मुस्लिम हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों पार्टियों को मुस्लिमों का समर्थन मिला। अंतर मात्र यह रहा कि भाजपा ने इनके अतिरिक्त अन्य वोटों (39 प्रतिशत कुल मत का) को अपनी ओर मोडऩे में कामयाब रही। भाजपा ने अपने विरोधियों के मुकाबले कुल 39 सीटों पर कब्जा जमाया। जबकि सपा को 17 सीटें मिली तो बसपा खाता भी नहीं खोल पाई। जो यह साबित करता है कि सपा का मुस्लिम वोट बैंक बरकरार रहा।
इसी तरह दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने को लेकर भाजपा व बसपा में कड़ी टक्कर देखने को मिली। विशेषकर गैर जाटव वोटों के लिए। यूपी में दलित कुल 21 प्रतिशत है। लेकिन चुनाव में बसपा का दलित वोट बैंक थोड़ा प्रभावित हुआ। इस चुनाव में बसपा को केवल 19 सीटें ही मिले, लेकिन फिर भी विगत लोकसभा चुनाव (2014) की तुलना में उसे ज्यादा वोट मिले। विधानसभा चुनाव में बसपा को 24 प्रतिशत मत मिले, जबकि लोकसभा में यह आंकड़ा 23 फीसदी था। यूपी की आरक्षित 85 सीटों में से 40 सीटें भाजपा के खाते में गई। ऐसे में भाजपा को इस चुनाव में सभी जातियों के वोट मिले। जिसमें कुछ हिस्सा दलितों का भी हो सकता है। वोट शेयर के मामले में बसपा का दलित वोट बैंक करीब-करीब बरकरार रहा। जबकि लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी जाट भाजपा के पक्ष में ही खड़े रहे।
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