मेक्सिको।17 से 24 जनवरी 2018 के बीच धर्ममीमांसा एवं पंथ में प्राणियों का स्थान (एनिमल्स इन थियोलॉजी एंड रिलीजन) विषय पर माइंडिंग एनिमल्स इंटरनेशनल इनकॉरपोरेटेड ने अंतरराष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया था । इस परिषद में 22 जनवरी 2018 को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से पशु-पक्षी आध्यात्मिक स्पंदन समझ सकते हैं, तो मनुष्य क्यों नहीं ? (इफ एनिमल्स कैन परसीव स्पिरिच्युअल वायब्रेशन्स, व्हाय कान्ट ह्यूमन्स ?) विषय पर या महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी तथा सह लेखक डॉ. मुकुल गाडगीळ द्वारा लिखा शोधनिबंध उत्तर अमरिकी देश मेक्सिको की निवासी कु. मारीयाला ने प्रस्तुत किया ।
वर्ष 2004 में त्सुनामी के कुछ घंटे पूर्व पशु-पक्षी समुद्री सतह से अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों में पलायन कर गए थे । इन प्राकृतिक आपदाओं में 14 देशों के लगभग 2 लाख से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हुई; पर उसकी तुलना में पशु-पक्षियों की मृत्यु की मात्रा अत्यल्प थी । ऐसे में प्रश्?न उत्पन्न होता है कि पशु-पक्षियों में ऐसी कौनसी क्षमता है, जिसके कारण जो मनुष्य को समझ में नहीं आया, वह उन्हें समझ में आ गया ? उन्हें यह उनकी पर्यावरण परिवर्तन संबंधी सजगता के कारण समझ में आया ?
अथवा सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान क्षमता के कारण ? अथवा इन दोनों के कारण ? ऐसी कुछ घटनाओं के कारण महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय पशु-पक्षियों की आध्यात्मिक आयाम को समझने की क्षमता के विषय में शोध करने हेतु प्रेरित हुआ और विविध प्रयोगों के माध्यम से यह शोध किया गया । इसमें यह ध्यान में आया कि सत्त्वगुणप्रधान पशु-पक्षी सात्त्विक जबकि रज-तमगुणप्रधान पशु-पक्षी असात्त्विक घटकों का (उदा. संगीत, खाद्यपदार्थ, वस्तु, वास्तू एवं व्यक्ति का) चयन करते हैं । साथ ही, यह भी ध्यान में आया कि रज-तमगुणप्रधान पशु-पक्षी सात्त्विक वातावरण में तथा सात्त्विक पशु-पक्षी असात्त्विक वातावरण में अधिक समय तक नहीं रह पाते । यह शोध कुत्ता, गाय, घोडा, खरगोश, मुर्गा, तोता आदि पालतु पशु-पक्षियों के संदर्भ में किया गया । शोध प्रस्तुति में विविध प्रयोगों के वैशिष्ट्यपूर्ण वीडियो भी दिखाए गए तथा इस विषय से संबंधित वैशिष्ट्यपूर्ण निष्कर्ष भी प्रस्तुत किए गए । पशु-पक्षियों की ही भांति मनुष्य में भी सूक्ष्म स्पंदन समझने की प्राकृतिक क्षमता होती है, परंतु व्यावहारिक बातों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण वह अपनी यह क्षमता खो बैठा है । सूक्ष्म आयाम के ज्ञान की यह क्षमता नियमित उपासना कर मनुष्य पुन: प्राप्त कर सकता है और इससे वह अपने आसपास का संसार व्यापक दृष्टिकोण से अधिक भलीभांति समझ सकता है, ऐसा शोधनिबंध प्रस्तुत करते हुए कु. मारीयाला ने अंत में बताया । भारतीय संस्कृति का महत्त्व आध्यात्मिक स्तर पर अनुभूत होने के कारण मेक्सिको में शोधनिबंध प्रस्तुत करते समय विदेशी होते हुए भी कु. मारीयाला इन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुसार साडी पहनी थी ।

































