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नयी दिल्ली : तम्बाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनी को लेकर शीर्ष न्यायालय ने आज कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि ‘नागरिकों का स्वास्थ्य प्राथमिकता’ है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने तम्बाकू उत्पादों के पैकेजिंग क्षेत्र में 85 प्रतिशत हिस्से पर सचित्र चेतावनी छापने का नियम अनिवार्य किया था, जिस पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस आदेश को रद्द करने से सचित्र चेतावनी के बारे में सरकार का पुराना आदेश स्वत: लागू हो जाएगा जिसमें 40 फीसद सचित्र चेतावनी छापने की बात कही गई है। शीर्ष न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर और न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी है।

पीठ ने तम्बाकू विनिर्माताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इस दलील को खारिज कर दिया कि इससे संबंधित कंपनियों के कारोबार पर असर पड़ेगा। न्यायालय ने कहा, ‘‘….हम यह सोचने के लिए इच्छुक है कि नागरिक का स्वास्थ्य सर्वोच्च है और उसे इससे अवगत होना चाहिए कि कौन सी चीज उसके स्वास्थ्य को खराब कर सकता है या उस विपरीत प्रभाव डालता है।’’ पीठ गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘हेल्थ फॉर मिलियन्स ट्रस्ट’ और उमेश नारायण द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर 12 मार्च को अंतिम सुनवाई करेगी और दोनों पक्षों से इस बीच अपना पक्ष रखने को कहा है।

केंद्र की ओर से पेश महान्यायवादी के के वेणुगोपाल और वकील आर बालसुब्रमण्यन ने कहा कि उच्च न्यायालय की फैसले पर रोक लगाए जाने की जरुरत है और 85 प्रतिशत सचित्र चेतावनी की इजाजत दी जानी चाहिए क्योंकि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा शिक्षित नहीं है।

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