Uttar Pradesh, the first state to agree on the draft of the three divorce bill

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने तीन तलाक को लेकर केन्द्र के प्रस्तावित विधेयक के मसौदे से सहमति व्यक्त की है। उत्तर प्रदेश ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री योगी की अध्यक्षता में कल शाम हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में तीन तलाक पर प्रस्तावित विधेयक के मसौदे पर रजामंदी जाहिर की गयी। मसौदे में तीन तलाक या तलाक-ए-बिदअत को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध करार देते हुए इसके दोषी को तीन साल कैद की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही तीन तलाक देने पर पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण का खर्च भी देना होगा। राज्य सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह और श्रीकांत शर्मा ने यहां संवाददाताओं को बताया कि केन्द्र ने राज्य सरकार को वह मसौदा भेजते हुए 10 दिसम्बर तक उस पर राय देने को कहा था। मंत्रिपरिषद की सहमति मिलने के बाद इसे वापस केन्द्र के पास भेजा जायेगा। एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश तीन तलाक सम्बन्धी विधेयक के मसौदे पर सहमति देने वाला पहला राज्य है। इस विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में पेश किये जाने की सम्भावना है। इस बीच, आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने मसौदे की व्यावहारिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब उच्चतम न्यायालय पिछली 22 अगस्त को तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर चुका है यानी अब तलाक एक बिदअत कभी हो ही नहीं सकती, तो इसके खिलाफ कानून का क्या मतलब है। उन्होंने कहा कि केन्द्र के मसौदे में तीन तलाक देने वाले को तीन साल की कैद और परित्यक्त पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देने की बात कही गयी है। सवाल यह है कि जब शौहर जेल चला जाएगा तो वह गुजारा भत्ता देने के लिये धन कहां से लाएगा। मौलाना ने कहा कि राज्य सरकारों को किसी समुदाय से जुड़े कानून के मसौदे पर रजामंदी देने से पहले कम से कम उस कौम के नुमाइंदों से सलाह-मशविरा तो कर ही लेना चाहिये। ना तो केन्द्र सरकार और ना ही प्रदेश की योगी सरकार ने ऐसा करने की जहमत उठायी है। इस बात की क्या गारंटी है कि दहेज विरोधी कानून की तरह इस कानून का भी दुरुपयोग नहीं होगा। यह सब इस्लामी शरीयत में सीधी दखलंदाजी है।

तीन तलाक के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाली आल इण्डिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर का भी कहना है कि केन्द्र सरकार तलाक-ए-बिदअत के खिलाफ कानून को अंतिम प्रारूप देने से पहले इस तलाक के खिलाफ काम करने वाले संगठनों से भी राय-मशविरा करें। इस साल गत 22 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद देश में तीन तलाक के 68 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें उत्तर प्रदेश अव्वल है। उच्चतम न्यायालय द्वारा पाबंदी लगाये जाने के बावजूद देश में तीन तलाक के बढ़ते मामलों के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने ‘मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन आफ राइट्स आन मैरिज बिल’ का मसौदा तैयार किया है। इसे विभिन्न राज्य सरकारों के पास विचार के लिये भेजा गया है। इस मसौदे को केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई वाले अन्तरमंत्रालयी समूह ने तैयार किया है। प्रस्तावित कानून केवल तलाक-ए-बिदअत की स्थिति में ही लागू होगा और इससे पीड़ित महिला अपने तथा अपने बच्चों के भरणपोषण के लिये गुजारा भत्ता पाने के लिये मजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटा सकेगी। प्रस्तावित विधेयक के तहत ईमेल, एसएमएस तथा व्हाट्सएप समेत किसी भी तरीके से दी गयी तीन तलाक को गैरकानूनी माना गया है।

LEAVE A REPLY