जयपुर। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एसटी-एससी एक्ट के उस ऐतिहासिक आदेश को केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार संसद में संशोधित एक्ट लाकर फिर से इस एक्ट के पुराने प्रावधानों को बहाल करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि बिना जांच पडताल और अनुसंधान के लिए एसटी-एससी एक्ट में मामले दर्ज नहीं हो और ना ही किसी की गिरफ्तारी की जाए, जब तक जांच में यह साबित ना हो जाए इस एक्ट का आरोपी पक्ष ने दुरुपयोग किया है। इस आदेश के बाद एसटी-एससी वर्ग उद्वेलित है और इसे लेकर आंदोलित है।
केन्द्र सरकार पर भी दबाव बनाया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ संसद में संशोधित एक्ट लाकर पुराने प्रावधानों को बहाल किया जाए। दलित संगठनों के दबाव में आकर केन्द्रीय केबिनेट ने इस पर मुहर लगा दी है। केबिनेट ने एससी-एसटी एक्ट को पुराने और मूल स्वरूप में लाने का फैसला किया है। बुधवार को कैबिनेट की बैठक में संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। केन्द्रीय मंत्री रविप्रसाद ने मीडिया को बयान दिया है कि मानसून सत्र में संशोधित एक्ट पेश किया जाएगा। इसमें एससी-एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18अ जोड़ी जाएगी। इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा।
21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है। इस आदेश के बाद दलित संगठनों ने दो अप्रैल को भारत बंद किया था, जिसमें कई शहरों में हिंसक आंदोलन हुए। इस हिंसा के विरोध में सवर्ण संगठनों ने भी भारत बंद का आह्वान किया था।