Warrior

जयपुर/बीकानेर : भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने कहा कि वर्तमान विश्व परिदृष्य और बदलते आतंकवाद के माहौल को देखते हुए सैन्य युद्धाभ्यास ‘अजेय वारियर-2017’ जैसे संयुक्त युद्धाभ्यास समय की जरूरत है। भारत-पाक सीमा के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में भारत-ब्रिटिश संयुक्त युद्धाभ्यास श्रृंखला का तीसरा युद्धाभ्यास ‘अजेय वारियर-2017’ के समापन पर पत्रकारों से सिंह ने कहा कि संयुक्त युद्धाभ्यास आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्या के निवारण की दिशा में छोटा लेकिन एक सही कदम है। इस युद्धाभ्यास का आगाज 1 दिसंबर को हुआ था। लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने दोनों देशों के जवानों एवं सैन्य अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि इस युद्धाभ्यास के दौरान दोनों देशों के जवानों एवं अधिकारियेां ने अभ्यास के दौरान आंतकवाद का किस तरह से खात्मा हो, इस पर अपनी समझ को विकसित किया है।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सेना के पास इराक, अफगानिस्तान में आंतकवाद से निपटने और भारतीय सेना के पास जम्मू कश्मीर सहित अन्य स्थानों पर विषम परिस्थितियों में मुकाबला करने का जो अनुभव है उसका यहां पर आदान प्रदान किया गया। यह आने वाले समय में आतंकवाद से निपटने में काम आएगा। दोनों देशों की सेनाओं का इससे हौसला, तकनीक और विषम परिस्थितियों में आतंक का सामना करने का अनुभव बढ़ा है।

इस अवसर पर भारत में ब्रिटिश उच्च आयुक्त सर डोमिनिक अस्कुइथ :केसीएमजी: ने कहा कि भारत और ब्रिटेन का रिश्ता पुराना है। प्रथम विश्व युद्व के दौरान भी दोनों देशों की सेनाओं के जवानों ने संयुक्त रुप से मुबाकला किया था। इस युद्वाभ्यास में भी ब्रिटेन और भारत की उसी जगह के जवानों ने भाग लिया है जिन्होंने प्रथम विश्व युद्व में भाग लिया था। यह बहुत ही गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि इस युद्धाभ्यास में दोनों देशों के रक्षा सहयोग की दिशा में एक बड़ा लक्ष्य हासिल करने में सहायता की, इससे भविष्य में दोनों देशों की सेनाओं के सैन्य संबंध और अधिक गहरे होंगे।

गौरतलब है कि दुनियाभर में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए इस युद्धभ्यास का पहला संस्करण 2013 में भारत के बेलगांव और ब्रिटेन के वेस्टडाउन कैम्प, सेलिसबरी ट्रेनिंग एरिया में 2015 में सम्पन्न हुआ। इस युद्धाभ्यास में दोनों सेनाओं के कम्पनी स्तर के 120 जवानों ने हिस्सा लिया। इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य दोनों सेनाओं के अपने-अपने अनुभव और कार्यपणाली को एक दूसरे से साझा करना था। मौजूदा परिदृष्य में शुरू किया गया यह युद्धाभ्यास धीमी गति से शुरू होकर 48 घण्टे में अपनी चरम चीमा पर पहुंच गया। इससे दोनों देशों के सैन्य दलों को एक दूसरे के अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिला। युद्धाभ्यास के व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर मेहमान सेना को राजस्थान की समग्र सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराया गया और विश्व विख्यात भारतीय व्यंजनों से उनकी महमान नवाजी भी की गई।

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