labour law

जयपुर। राज्य सरकार के गोसेवा के नाम पर सरकारी कर्मचारियों के वेतन से एक से तीन रुपए रोज काटे जाने के फैसले के खिलाफ राज्य कर्मचारी विरोध में उतर आए हैं। सरकार के इस फैसले को कर्मचारियों की जेब काटना करार देते हुए इसे कर्मचारी विरोधी मानसिकता करार दिया है। इस फैसले से कर्मचारी स्तब्ध है और अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा है। इस फैसले से सरकार की कर्मचारियों के प्रति भावना एवं चरित्र स्पष्ट हो गया है। राज्य सरकार ने सत्तारूढ़ होते ही स्टेशनरी भत्ते को समाप्त कर कर्मचारियों की जेब काटना प्रारम्भ कर दिया था जो आज भी बदस्तूर जारी है। सरकार कर्मचारी विरोधी फैसले करके उन्हें हडताल के लिए मजबूर कर रही है।
अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ ने सरकार के इस निर्णय की निंदा करते हुए कर्मचारियों से अपील की है कि यह दमन की पराकाष्टा है, इस संकट की घडी में कर्मचारी एकजुट होकर सरकार का सामना करने को तैयार रहें। महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के.के. गुप्ता ने बयान जारी कर कहा कि सरकार कर्मचारियों की जेब काटकर सेठ साहूकारों को लाभ पहुचा रही है। सरकार कर्मचारियों की शालीनता को कमजोरी नहीं समझे, इतिहास साक्षी है कर्मचारियों ने पूर्व में भी दमन के खिलाफ लडाई लडकर सरकारें बदली है। महासंघ के प्रदेश महामंत्री तेजसिंह राठौड ने कहा कि सरकार ने वर्ष 2016-17 के बजट में 125 करोड़ रूपये का प्रावधान गो सेवा के लिए किया। फिर भी गायों के नाम पर कर्मचारियों के वेतन से राशि काटने की मंशा कर्मचारियो के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। प्रदेश का कर्मचारी पहले से ही कर्मचारी विरोधी नीतियों को लेकर आंदोलनरत है। सरकार का यह फैसला ”आग में घी” के रूप में कार्य करेगा एवं कर्मचारी आंदोलन को परवान चढाने में मदद करेगा। महासंघ ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार समय रहते कर्मचारियों की मांगो का निराकरण करे, 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को शीघ्र लागू करें एवं पूर्व के वेतन आयोगों में रही विसंगतियों को दूर करने का कार्य करें। सरकार कर्मचारियों को मिल रही सुविधाओं में कटौती का इरादा बंद करे अन्यथा इसके गंभीर परिणाम होंगे।

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